१९. पूंजीवादी उत्पादन नहीं छोड़ पाया है। इसलिए मालों का कोई उत्पादक. मालों के अन्य मालिकों के सम्पर्क में माये बिना ही परिचलन के क्षेत्र के बाहर मूल्य का विस्तार कर ले और उसके फलस्वरूप मुद्रा को या मालों को पूंजी में बदलने में कामयाब हो पाये, यह असम्भव है। प्रतः पूंजी का परिचलन के द्वारा उत्पन्न होना असम्भव है और उसका परिचलन से अलग जन्म लेना भी उतना ही असम्भव है। पूंजी का जन्म परिचलन के भीतर होते हुए भी उसके भीतर नहीं होना चाहिए। इस तरह हम एक बोहरे नतीजे पर पहुंच गये हैं। हमें मालों के विनिमय का नियमन करने वाले नियमों के माधार पर मुद्रा के पूंजी में बदलने की इस तरह व्याख्या करनी है कि हमारा प्रस्थान-बिंदु सम मूल्यों का विनिमय हो।' हमारे मित्र भीयुत पन्नासेठ को, बो अभी बीज-म में ही पूंजीपति है, चाहिए कि अपने मालों को उनके मूल्य पर खरीदें, उनको उनके मूल्य पर ही बेचें और फिर भी परिचलन के प्रारम्भ में उन्होंने जितना मूल्य उसमें गला था, क्रिया के अन्त में उससे अधिक मूल्य परिचलन से बाहर निकाल ले जायें। श्रीयुत पन्नासेठ का परिचलन के क्षेत्र में और परिचलन के बाहर भी पूर्ण विकसित पूंजीपति के रूप में विकास होना चाहिए। समस्या को हमें इन परिस्थितियों में हल करना है। Hic Rhodus, hic saltal (यह रोउस है, यहीं कूब पड़ो।) . इसके पहले हम जितनी खोज कर चुके हैं, उससे पाठक ने यह समझ लिया होगा कि हमारे इस कथन का अर्थ केवल यह है कि किसी माल का दाम और मूल्य एक होने पर भी पूंजी का निर्माण सम्भव होना चाहिए, क्योंकि हम यह नहीं कह सकते कि पूंजी का निर्माण दाम और मूल्य में कोई अन्तर होने के फलस्वरूप होता है। यदि दाम सचमुच मूल्यों से भिन्न है, तो हमें सबसे पहले दामों को मूल्यों में परिणत करना चाहिए। दूसरे शब्दों में, हमें इस अन्तर को पाकस्मिक मानकर चलना पड़ेगा, ताकि हम घटना पर उसके विशुद्ध रूप में विचार कर सकें और ऐसी विघ्नकारक परिस्थितियां, जिनका इस क्रिया से कोई सम्बंध नहीं है, हमारे विचारों में कोई बाधा न डाल सकें। इसके अलावा हम यह भी जानते हैं कि दामों को मूल्यों में परिणत करना कोई वैज्ञानिक क्रिया मात्र नहीं है। दामों में लगातार पानेवाले उतार-चढ़ाव, उनका बढ़ना और घटना, एक दूसरे का असर रद्द कर देते हैं और एक प्रोसत दाम में परिणत हो जाते हैं, जो उनका छिपा हुमा नियामक होता है। ऐसे हर व्यवसाय में, जिसमें कुछ समय लगता है, यह मौसत दाम सौदागर या कारखानेदार के पथ- प्रदर्शक तारे का काम करता है। सौदागर अथवा कारखानेदार जानता है कि जब काफ़ी लम्बे समय का सवाल होता है, तब माल न तो पोसत से ज्यादा दामों पर पौर न कम दामों पर विकते है, बल्कि वे अपने पोसत दामों पर ही विकते है। इसलिए यदि वह इस मामले के बारे में थोड़ा भी सोचता है, तो वह पूंजी के निर्माण की समस्या को इस तरह पेश करेगा: यह मान लेने के बाद कि दामों का नियमन प्रोसत दाम के द्वारा-यानी अन्त में मालों के मूल्य के द्वारा-होता है, हम पूंजी की उत्पत्ति का क्या कारण बता सकते है ? शब्दों का प्रयोग मैने इसलिए किया है कि, ऐडम स्मिथ, रिकारों और अन्य लोगों के विश्वास के प्रतिकूल , प्रोसत दाम मालों के मूल्यों से सीधे मेल नहीं बाते। अन्त में"
पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/१९३
दिखावट