पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/२०१

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१९८ पूंजीवादी उत्पादन U तुरत नहीं पहुंच जाता। दूसरे हरेक माल की तरह इस मान का मूल्य भी उसके परिचलन में प्रवेश करने के पहले से ही निश्चित होता है, क्योंकि उसपर सामाजिक मम की एक निश्चित मात्रा बर्ष हो चुकी होती है। लेकिन इस माल का उपयोग मूल्य इसी बात में निहित है कि बाद में इस शक्ति का प्रयोग किया जाये। मन-शक्ति के हस्तांतरण और प्राहक द्वारा उसके सचमुच हस्तगतकरण-या एक उपयोग-मूल्य के रूप में उसके व्यवहार में लाये जाने-के बीच समय का अन्तर होता है। लेकिन वहां कहीं किसी माल के उपयोग-मूल्य की बिक्री के द्वारा रस्मी हस्तांतरण के साथ ही वह माल सचमुच परीवार को नहीं सौंप दिया जाता, वहाँ परीवार की मुद्रा साधारणतया भुगतान के साधन का काम करती है। ऐसे प्रत्येक देश में, जिसमें पूंजीवादी ढंग का उत्पावन पाया जाता है, यह रिवान होता है कि जब तक मम-शक्ति का करार में निश्चित समय तक, वैसे, मिसाल के लिए, एक सप्ताह तक, प्रयोग नहीं कर लिया जाता, तब तक उसके वाम नहीं दिये जाते। इसलिए, हर जगह मम-शक्ति का उपयोग मूल्य पूंजीपति को पेशगी ने दिया जाता है। मजदूर अपनी मन-शक्ति के प्राहक को नाम पाने के पहले ही उसके उपयोग की इजाजत दे देता है, हर जगह वह पूंजीपति को उधार देता है। यह उपार महब कोई हवाई चीन नहीं होता 1,-इसका सबूत न सिर्फ यह है कि पूंजीपति का दिवाला निकलने पर मजदूरी के पैसे अक्सर दूब जाते हैं, बल्कि यह भी कि उसके इससे कहीं अधिक स्थायी अनेक दूसरे नतीजे भी होते हैं। फिर भी, मुद्रा चाहे खरीदारी के साधन का काम करे और चाहे . 1॥ 'श्रम के दाम सदा उसके समाप्त होने के बाद चुकाये जाते हैं।" ("An Inquiry into those Principles Respecting the Nature of Demand" &c. LATT om Faura और उससे सम्बन्धित सिद्धान्तों की समीक्षा, इत्यादि'], पृ० १०४।) "Le credit com- mercial a dù commencer au moment où l'ouvrier premier artisan de la pro- duction, a pu, au moyen de ses économies, attendre le salaire de son travail jusqu'à la fin de la semaine, de quinzaine, du mois, du trimestre, &c.” ["वाणिज्य सम्बंधी उधार की पत्ति उस समय भारम्भ हुई, जब मजदूर- उत्पादन का वह पहला कारीगर- अपनी बचायी हुई प्राय के प्रताप से अपनी मजदूरी के लिए सप्ताह , पखवाड़े, महीने या तीन महीने इत्यादि के अन्त तक इन्तजार करने को तैयार हो गया।"] (Ch. Ganilh, "Des Systèmes d'Economie Politique", Het facut, Paris, 1821, 14 २, पृ० १५०।) २ "L'ouvrier prete son industrie" [" मजदूर अपना उद्योग उधार देता है"],- स्तोत्र कहते हैं। लेकिन वह बड़ी चतुराई के साथ यह भी जोड़ देते हैं कि मजदूर "कोई जोखिम नहीं उठाता," सिवाय इसके कि "de perdre son salaire... Pouvrier ne transmet rien de materiel." [" उसकी मजदूरी जरूर डूब सकती है ... मजदूर कोई ठोस चीज नहीं सौंपता"]| (Storch, “Cours d Econ. Polit.", Petersbourg, 1815, ग्रंथ २, पृ० ३७।) एक मिसाल लीजिये । लन्दन में डबल रोटी बनाने वाले दो तरह के हैं : एक तो full priced" ("पूरे दाम वाले"), जो अपनी रोटी पूरे दामों में बेचते हैं, और दूसरे "undersellers" (" सस्ती बेचने वाले"), जो रोटी के मूल्य से कम दाम लेते हैं। रोटी बनाने वालों की कुल संख्या का तीन चौथाई से अधिक भाग दूसरे प्रकार के रोटी वालों का है। ("The grievances complai- ned of by the journeymen bakers etc." ["रोटी बनाने वाले कारीगरों की शिकायतों