२१० पूंजीवादी उत्पादन , . उत्पादन के साधनों का उपयोग कराता है। भम-प्रक्रिया के सामान्य स्वरूप में इस बात से, बाहिर है, कोई अन्तर नहीं पड़ता कि मजदूर यहां खुद अपने लिए काम करने के बजाय पूंजीपति के लिए काम करता है। इसके अलावा, जूते बनाने या कातने में जिन खास तरीकों पौर प्रक्रियामों का उपयोग किया जाता है, पूंजीपति के हस्तक्षेप से उनमें तुरन्त कोई परिवर्तन नहीं पा जाता है। मन्दी में जैसी भी प्रम-शक्ति मिलती हो, शुरू में पूंजीपति को उसी से प्रारम्भ करना पड़ता है, और इसलिए उसे. उसी प्रकार के मन से संतोष करना पड़ता है, जिस प्रकार का भम पूंजीपतियों के उदय के क पहले वाले काल में मिलता था। श्रम के पूंजी के अधीन हो जाने के कारण उत्पादन के तरीकों में होने वाले परिवर्तन केवल बाद के काल में पाते हैं, और इसलिए उनपर हम बाद के किसी अध्याय में विचार करेंगे। भम-प्रक्रिया जब उस प्रक्रिया में बदल जाती है, जिसके चरिये पूंजीपति श्रम-शक्ति का उपभोग करता है, तब उसमें दो बास विशेषताएं दिखाई देने लगती है। एक तो यह कि मजबूर उस पूंजीपति के नियंत्रण में काम करता है, जो उसके श्रम का स्वामी होता है, और पूंजीपति इस बात का पूरा खयाल रखता है कि काम ठीक ढंग से हो और उत्पादन के साधनों का बुद्धिमानी के साथ प्रयोग किया जाये, ताकि कच्चे माल का अनावश्यक अपव्यय न हो पौर काम में पौधारों की जितनी घिसाई लादिमी है, वे उससे ज्यादा न घिसने पायें। दूसरे यह कि अब पैदावार मजदूर की-यानी उसके तात्कालिक उत्पादक की- सम्पत्ति न होकर पूंजीपति की सम्पत्ति होती है। मान लीजिये कि एक पूंजीपति दिन भर की श्रम- शक्ति के दाम उसके मूल्य के अनुसार चुका देता है। तब उसको किसी भी अन्य माल की तरह मिसाल के लिए, दिन भर के वास्ते किराये पर लिये गये घोड़े की भांति उस श्रम- शक्ति के भी दिन भर के उपयोग का अधिकार होता है। किसी माल के उपयोग का अधिकार उसके खरीदार को होता है, और अब अम-शक्ति का विक्रेता अपना मम देता है, तब वह असल में इससे अधिक कुछ नहीं करता कि उसने जो उपयोग-मूल्य बेच दिया है, उसे प्रब वह हस्तांतरित कर देता है। वह विस क्षण से वर्कशाप में कदम रखता है, उसी मण से उसकी मम-शाक्ति के उपयोग मूल्य पर और इसलिए उसके उपयोग पर भी, अर्थात् मजदूर के श्रम पर भी, पूंजीपति का अधिकार हो जाता है। भम-शक्ति खरीदकर पूंजीपति पैदावार के निर्जीव संघटकों में सजीव किन्च के रूप में मम का समावेश कर देता है। उसके दृष्टिकोण से श्रम- प्रक्रिया खरीदे हुए माल का, अर्थात् भम-शक्ति का, उपभोग करने से अधिक और कुछ नहीं होती, लेकिन इस उपभोग को कार्यान्वित करने का इसके सिवा और कोई तरीका नहीं है कि मन-शक्ति को उत्पादन के सापन दिये जायें। भम-प्रक्रिया उन चीजों के बीच होने वाली प्रक्रिया है, जिनको पूंजीपति ने बरीद लिया है और वो उसकी सम्पत्ति हो गयी है। चुनांचे, जिस तरह पूंजीपति के तहखाने में होने वाली किन्चन की प्रक्रिया की पैराबार-शराब-पूंजीपति की सम्पत्ति होती है, ठीक उसी प्रकार मन-प्रक्रिया की पैदावार भी उसकी सम्पत्ति होती है। . . 1"पैदावार को पूंजी में बदलने के पहले उसे हस्तगत कर लिया जाता है; यह रूपान्तरण उसे हस्तगतकरण से नहीं बचा सकता।" (Cherbuliez, “Richesse ou Pauureter, Paris का संस्करण, 1841, पृ० ५४१) "जीवन के लिए प्रावश्यक वस्तुमों की एक निश्चित मात्रा के एवज में अपना श्रम बेचकर सर्वहारा पैदावार में हिस्सा बंटाने का अपना हर तरह का वावा त्याग देता है। पैदावार हस्तगत करने का ढंग पहले जैसा ही रहता है। ऊपर हमने
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