२२६ पूंजीवादी उत्पादन . श्रम द्वाराही-पैदावार के-अर्थात् एक नये उपयोग-मूल्य के-संघटक तत्त्व बन पाते हैं। प्रत्येक उपयोग-मूल्य गायब हो जाता है, लेकिन तुरन्त ही एक नये रूप में एक नये उपयोग मूल्य में प्रकट होता है। जिस समय हम मूल्य पैदा करने की प्रक्रिया पर विचार कर रहे थे, उस समय हमने देखा था कि यदि कोई उपयोग-मूल्य किसी नये उपयोग-मूल्य के उत्पादन में कारगर उंग से खर्च हो जाये, तो उपभोग की गयी वस्तु के उत्पादन में श्रम की जितनी मात्रा लगी होगी, वह नया उपयोग-मूल्य पैदा करने के लिए प्रावश्यक भन की मात्रा का एक भाग बन जायेगी। इसलिए, यह भाग वह मम होगा, जो उत्पादन के साधनों से नयी पैदावार में स्थानांतरित हो जाता है। पुनांचे, मजदूर जब उपभोग में लाये गये उत्पादन के साधनों के मूल्य को सुरक्षित रखता है या उनको पैदावार में उसके मूल्य के भागों के रूप में स्थानांतरित कर देता है, तब वह यह कार्य नया प्रमूर्त बम जोड़कर नहीं, बल्कि एक विशिष्ट प्रकार का उपयोगी श्रम करके, अपने बम के विशिष्ट उत्पादक स्वल्प के फलस्वरूप सम्पन्न करता है। इस तरह, जिस हद तक भम ऐसी विशिष्ट उत्पादक कार्रवाई है, यानी जिस हद तक वह कताई, बुनाई या गढ़ाई का मम है, उस हब तक वह महब अपने सम्पर्क से उत्पादन के साधनों को मुर्वा से जिन्दा कर देता है, उनको श्रम-प्रक्रिया के जीवन्त उपकरण बना देता है और उनके साथ जुड़कर नयी पैदावार की रचना करता है। यदि मजदूर का विशिष्ट उत्पादक मम कताई का मम न होता, तो वह कपास को सूत में नहीं बदल पाता और इसलिए कपास और तकुए के मूल्यों को सूत में स्थानांतरित नहीं कर सकता। मान लीजिये कि वह मजदूर अपना पेशा बदलकर फर्नीचर बनाने वाला बढ़ई बन जाता है। बढ़ई के रूप में भी वह जिस सामग्री पर काम करेगा, उसमें एक दिन का भम करके नया मूल्य जोड़ देगा। इसलिए पहली बात तो हम यह देखते हैं कि नया मूल्य इसलिए नहीं जुड़ता कि मजदूर का श्रम खास तौर पर कताई का श्रम है या खास तौर पर फर्नीचर बनाने का श्रम है, बल्कि वह इसलिए मुड़ता है कि मजदूर का मम अमूर्त श्रम अथवा समाज के सम्पूर्ण श्रम का एक भाग है। और दूसरी बात हम यह देखते हैं कि जो नया मूल्य जोड़ा जाता है, वह यदि एक निश्चित मात्रा का मूल्य होता है, तो इसका कारण यह नहीं है कि मजदूर का भम एक खास तरह की उपयोगिता रखता है, बल्कि इसका कारण यह है कि वह एक निश्चित समय तक किया जाता है। इसलिए, एक तरफ तो कताई कामम अपने सामान्य स्वरूप के कारण, यानी इस कारण कि उसमें प्रमूर्त मानव-मन-शक्ति वर्ष की जाती है, कपास और तकुए के मूल्यों में नया मूल्य जोड़ देता है, और दूसरी तरफ़ अपने विशिष्ट स्वरूप के कारण, पानी एक मूर्त, उपयोगी क्रिया होने के कारण, कताई का वही मन उत्पादन के साधनों के मूल्यों को पैदावार में स्थानांतरित कर देता है और साथ ही उनको पैदावार में सुरक्षित भी रखता है। यही कारण है कि एक ही समय में बोहरा परिणाम सम्पन्न होता है। श्रम की एक निश्चित मात्रा के केवल बुड़ जाने से नया मूल्य ना जाता है, और इस गोड़े हुए श्रम के विशिष्ट गुण के फलस्वरूप उत्पादन के साधनों के मूल मूल्य पैदावार में सुरमित रहते हैं। यह बोहरा प्रभाव, जो मम के दोहरे स्वरूप का परिणाम होता है, अनेक घटनामों में देखा जा सकता है। 1"जो सृष्टि मिट जाती है, उसके स्थान पर श्रम एक नयी सृष्टि उत्पन्न कर देता है।" ("An Essay on the Polit. Econ. of Nations” [zret अर्थशास्त्र पर एक निबंध'], London, 1821, पृ० १३।) .
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