पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/२३५

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२३२ पूंजीवादी उत्पादन . विस समय उत्पादक मन उत्पादन के साधनों को किसी भी पैदावार के संघटक तत्वों में बदलता है, उस समय उनके मूल्य का रेहान्तरण हो पाता है। वो बह पम-निया में प हो गयी है, मूल्य पी पात्मा उसे छोड़कर नव-उत्सावित ह में चली जाती है। पर यह देहान्तरण मानो मवर के पीठ पीछे होता है। वह उस बात तक नया मम जोड़ने या मया मूल्य पैदा करने में असमर्थ होता है, जब तक कि वह उसके साप-साथ पुराने मूल्यों को भी सुरक्षित न कर है, और वह इसलिए कि वह बो नया मम जोड़ता है, वह लाजिमी तौर पर किसी खास तरह का उपयोगी मन होता है, और यह उपयोगी बम वह उस वक्त तक नहीं कर सकता, जब तक कि उत्पादित बस्तुमों का नयी पैदावार के उत्पादन के साधनों के म में न प्रयोग करे और उसके द्वारा उनका मूल्य नयी पैदावार में न स्थानांतरित कर है। इसलिए, कार्यरत थम-शक्ति में-पीचन्त श्रम में-मूल्य बोड़ने के साथ-साथ मूल्य को सुरक्षित रखने का जो गुण होता है, यह प्रकृति की देन है, जिसके लिए मजबूर को कुछ नहीं करना पड़ता, लेकिन वो पूंजीपति के बड़े फायदे का गुण होता है, क्योंकि वह उसकी पूंजी के पूर्व विधमान मूल्य को सुरक्षित रखता है। जब तक व्यवसाय . प्रोफ़ेसर साहब - कहा है कि तेल निकालने की मिल जो मूल्य पैदा करती है, वह सारा वर्ष काटने के बाद कोई नयी पीष, कोई ऐसी चीज होती है, जो कि उस श्रम से बिल्कुल भिन्न होती है, जो मिल के निर्माण में वर्ष किया गया था।" (उप० पु०, पृ. ८२, फुटनोट।) सत्य वचन, तेल की मिल से जो तेल तैयार होता है, वह निश्चय ही उस श्रम से बहुत भिन्न होता है, जो पर मिल को बनाने में खर्च हुमा था! मूल्य को मि० रोश्चर "तेल" जैसी चीज समझते है, क्योंकि तेल में मूल्य होता है, हालांकि "प्रकृति" भी पेट्रोल पैदा करती है, भले ही वह अपेक्षाकृत "योड़ी मात्रा में" ऐसा करती हो, और इस बात को ध्यान में रखकर ही शायद मि० रोश्र ने मागे कहा है : “वह (प्रकृति) शायद ही कभी कोई विनिमय-मूल्य पैदा करती हो।" मि० रोश्चेर की "प्रकृति" और वह जो विनिमय-मूल्य पैदा करती है, वे उस मूर्य लड़की की तरह है, जिसने यह तो स्वीकार कर लिया था कि कुमारी होते हुए भी उसके एक बच्चा हो चुका है, पर साथ ही जिसने अपनी सफाई के तौर पर कहा था: "तो क्या हुमा, बच्चा जरा सा ही तो है !" इस "महान विद्वान" ("savant serieux") ने पागे कहा है : “रिकानें- सम्प्रदाय के प्रबंशास्त्रियों की पादत है कि वे पूंजी को संचित श्रम के रूप में श्रम की मद में शामिल कर देते है। यह. बुद्धिमानी का काम नहीं है, क्योंकि पाविर पूंजी का मालिक महब उसे पैदा नहीं करता और सुरक्षित ही नहीं रखता, वह कुछ मौर भी करता है, यानी वह उसका उपभोग करने का मोह संवरण करता है, जिसके एवज में वह, मिसाल के लिए, सूद चाहता है" (उप० पु०)। अर्थशास्त्र की यह "शरीर-रचना-शास्त्रीय देह-व्यापारीय" पद्धति भी कितनी बुद्धिमानी से भरी है जो कि "वास्तव में" महज एक इच्छा को "माविर" मूल्य कालोत बना देती है ! 'काश्तकार के व्यवसाय के जितने भी साधन होते है, उनमें मनुष्य का श्रम ही... ऐसा साधन होता है, जिसपर वह अपनी पूंजी को फिर से प्राप्त करने के लिए सबसे अधिक भरोसा करता है। दूसरी..दो किस्मों के साधन -बेती में काम. पाने वाले कास्तकार के डोर और... गाडियां, हल, फावड़े इत्यादि- पहली किस्म के साधन (श्रम) की एक निश्चित मात्रा के प्रभाव i foregur dan alat .." (Edmund Burke, "Thoughts and. Details on Scarcity, 1 14