स्थिर पूंजी और अस्थिर पूंजी २३१ . हालांकि यह १५ पौग कपास कभी सूत का संघटक तत्व नहीं बनती, फिर भी यदि यह मान लिया जाये कि इतनी कपास का वाया होना कताई की प्रोसत परिस्थितियों में एक सामान्य और अनिवार्य बात है, तो जिस तरह सूत का प्रब्य बनने वाली १०० पौण कपास का मूल्य सूत के मूल्य में स्थानांतरित हो जाता है, ठीक उसी तरह इस १५ पौग कपास का मूल्य भी उसमें स्थानांतरित हो जाता है। १०० पौड सूत तैयार होने के पहले यह जरूरी होता है कि १५ पौड कपास का उपयोग-मूल्य धूल में मिल जाये। इसलिए इस कपास का नष्ट होना सूत के उत्पादन की एक सरूरी शर्त है। और क्योंकि यह उसकी एक जरूरी शर्त है,-और किसी अन्य कारणवश नहीं, -इस कपास का मूल्य पैदावार में स्थानांतरित हो जाता है। श्रम-प्रक्रिया के परिणामस्वरूप यदि किसी भी तरह का कूड़ा-कचरा निकलता है, तो जिस हब तक इस कूरे-कचरे को फिर किन्हीं नये तथा स्वतंत्र उपयोग-मूल्यों के उत्पादन में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, उस हद तक उसपर यही बात लागू होती है। कूड़ा-कचरा किस तरह नये तथा स्वतंत्र उपयोग मूल्यों के उत्पादन में इस्तेमाल किया जा सकता है, यह मान्वेस्टर के मशीन बनाने वाले बड़े कारखाने में देखा जा सकता है, जहां रोज शाम को बराव से गिरी हुई लोहे की कतरनों के पहाड़ के पहाड़ गाड़ियों में लादकर ढलाई-घर में ले जाये जाते हैं और अगले रोज सुबह को वे लोहे के गेस टुकड़ों के रूप में वर्कशाप में फिर हाबिर हो जाते हैं। हम यह देख चुके हैं कि उत्पादन के साधन नयी पैदावार में केवल उसी हद तक मूल्य को स्थानांतरित करते हैं, जिस हद तक कि अम-प्रक्रिया के दौरान में ये उपयोग मूल्य के अपने पुराने रूप में अपना मूल्य तो देते हैं। इस प्रक्रिया में, जाहिर है, वे ज्यादा से ज्यादा जितना मूल्य तो सकते हैं, वह इस बात से सीमित होता है कि वे कितना मूल मूल्य लेकर इस प्रक्रिया में सम्मिलित हुए थे, या, दूसरे शब्दों में, यह उनके उत्पादन के लिए प्रावश्यक श्रम-काल से सीमित होता है। इसलिए उत्पादन के साधन जिस प्रम-प्रक्रिया में योग देते हैं, उससे स्वतंत्र उनमें जितना मूल्य होता है, वे उससे अधिक मूल्य कमी पैदावार में नहीं जोड़ सकते। कोई जास कच्चा माल, या कोई मशीन, या उत्पादन का कोई और साधन चाहे कितना ही उपयोगी क्यों न हो, यदि उसमें १५० पौड की लागत -या मान लीजिये ५०० दिन का भम-लगा हो, तो वह किसी भी हालत में १५० पौण से प्यारा का मूल्य पैदावार में नहीं जोड़ सकता। उसका मूल्य उस बम-प्रक्रिया से निर्धारित नहीं होता, जिसमें वह उत्पादन के साधन के रूप में प्रवेश करता है, बल्कि उसका मूल्य उस श्रम-अपिया से निर्धारित होता है, जिसमें से वह पैरावार के रूप में बाहर निकला है। श्रम-प्रकिया वह केवल एक उपयोग-मूल्य की तरह काम में प्राता है, केवल एक ऐसी वस्तु के रूप में काम में माता है, जिसमें कुछ उपयोगी गुण होते हैं, और इसलिए वह पैरावार में कोई ऐसा मूल्य स्थानांतरित नहीं कर सकता, बो उसमें पहले से मौजूद नहीं था।' . . , . , इससे हम जे० बी० से के बेतुकेपन का अनुमान कर सकते हैं, जो हमें यह बताने का प्रयत्न करते है कि उत्पादन के साधन-भूमि, मौजार और कच्चा माल-अपने उपयोग-मूल्यों के द्वारा श्रम-प्रक्रिया में जो "services productifs" ("उत्पादक सेवाएं") करते हैं, वही अतिरिक्त मूल्य का (सूद, मुनाफे और लगान का) कारण हैं। मि० विल्हेल्म रोश्चेर ने, जो पक्ष-पोषण वाली कल्पना की पटपटी उड़ानों को कागज पर दर्ज करने का अवसर कभी हाथ से नहीं बोते, यह नमूना हमारे सामने पेश किया है : “जे० बी० से ने (Traite, ग्रंथ १, प्रध्याय ४ में) सच ही
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