स्थिर पूंजी और अस्थिर पूंजी २३५ . , - श्रम-प्रक्रिया उसके बाद भी जारी रह सकती है। मान लीजिये, उसके लिए छः घण्टे काफी होते हैं, पर अम-प्रक्रिया बारह घन्टे तक जारी रह सकती है। इसलिए, अम-शक्ति के कार्य से केवल खुद उसके मूल्य का पुनरुत्पादन नहीं होता, बल्कि उसके अलावा और उससे अधिक भी कुछ मूल्य पैदा होता है। पैदावार के मूल्य और उसके उत्पादन में खर्च किये गये तत्त्वों के मूल्य -या, दूसरे शब्दों में, पैदावार के साधनों और श्रम-शक्ति के मूल्य -का अन्तर अतिरिक्त मूल्य होता है। पैदावार के मूल्य के निर्माण में श्रम-प्रक्रिया के विभिन्न उपकरण को अलग-अलग भूमिकाएं प्रदा करते हैं, उनकी व्याख्या करके हमने वास्तव में यह बात भी स्पष्ट कर दी है कि पूंजी के विभिन्न तत्वों को खुब पूंजी के मूल्य का विस्तार करने की क्रिया में कौन-कौन से कार्य करने पड़ते हैं। पैदावार के संघटक उपकरणों के मूल्यों के जोड़ से पैदावार का कुल मूल्य जितना अधिक होता है, वह विस्तारित पूंजी तथा पेशगी लगायी गयी मूल पूंजी का अन्तर होता है। जब मूल पूंजी मुद्रा से भम-प्रक्रिया के नाना प्रकार के उपकरणों में स्पान्तरित की जाती है, तब उसका मूल्य जो अलग-अलग प्रकार के अस्तित्व-रूप धारण कर लेता है, ही एक तरफ तो उत्पादन के साधन और दूसरी तरफ श्रम-शक्ति होते हैं। प्रतः पूंजी के उस भाग के मूल्य में कोई परिमाणात्मक परिवर्तन नहीं होता, जिसका प्रतिनिधित्व उत्पादन के साधन - कच्चा माल, सहायक सामग्री और श्रम के प्राचार-करते हैं। इसलिए इस भाग को मैं पूंजी का स्थिर भाग या, अधिक संक्षेप में, स्थिर पूंजी कहता हूं। दूसरी ओर, उत्पादन की प्रकिया में पूंजी के उस भाग के मूल्य में अवश्य परिवर्तन हो जाता है, जिसका प्रतिनिधित्व श्रम-शक्ति करती है। वह खुद अपने मूल्य के सम-मूल्य का पुनरूत्पादन भी करता है और साथ ही उससे अधिक एक अतिरिक्त मूल्य भी पैदा कर देता है, जो जुद परिस्थितियों के अनुसार कम या ज्यादा हो सकता है। पूंजी का यह भाग लगातार एक स्थिर मात्रा से अस्थिर मात्रा में स्पान्तरित होता रहता है। इसलिए उसे में पूंजी का अस्थिर भाग या, संक्षेप में, अस्थिर पूंजी कहता हूं.। पूंजी के जो तत्त्व अम-प्रक्रिया की दृष्टि से क्रमशः बस्तुगत पौर वैयक्तिक उपकरणों के रूप में -या उत्पादन के साधनों और श्रम- शक्ति के रूप में सामने पाते हैं, वे ही अतिरिक्त मूल्य पैदा करने की क्रिया की दृष्टि से स्थिर और अस्थिर पूंजी के रूप में प्रकट होते हैं। ऊपर हमने स्थिर पूंजी की जो परिभाषा दी है, उससे स्थिर पूंजी के विभिन्न तत्वों के मूल्य में परिवर्तन होने की सम्भावना बतम नहीं हो जाती। मान लीजिये कि एक दिन कपास का दाम छ: पेंस की पौण है और दूसरे दिन, कपास की फसल खराब हो जाने के फलस्वरूप, उसका नाम एक शिलिंग की पौण हो जाता है। पेंस के भाव पर खरीदी हुई कपास का हर बह पोच, जिसे कपास का भाव बढ़ जाने के बाद इस्तेमाल किया जाता है, पैदावार में एक शिलिंग का मूल्य स्थानांतरित करता है। और वो कपास भाव बढ़ने के पहले ही कात गली गयी थी और जो शायद मन्दी में सूत की शकल में घूम रही थी, वह भी इसी तरह अपने मूल मूल्य का दुगुना मूल्य पैरावार में स्थानांतरित करती है। लेकिन यह बात साफ है कि मूल्य के ये परिवर्तन उस वृद्धि से या उस अतिरिक्त मूल्य से स्वतंत्र होते हैं, जिसे गुर कताई ने कपास के मूल्य में जोड़ दिया है। परि पुरानी कपास कमी काती न गयी होती, तो कपास का भाव बढ़ जाने के बाद उसे छ: पेंस के बजाय एक शिलिंग फ्री पौडके भाव पर फिर से बेचा जा सकता था। इसके अलावा, कपास जितनी ही कम प्रक्रियाओं में से गुजरी
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