पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२२ भूमिका . . 1 . की सीमाओं के भीतर रहते हुए उनको वास्तविक एवं निष्पक्ष छानबीन करना असम्भव हो गया। जिस हद तक अर्थशास्त्र इस क्षितिज की सीमानों के भीतर रहता है, अर्थात् जिस हब तक पूंजीवादी व्यवस्था को सामाजिक उत्पादन के विकास की एक प्रस्थायी ऐतिहासिक मंजिल नहीं, बल्कि उसका एकदम अन्तिम स्वरूप समझा जाता है, उस हब तक अर्थशास्त्र केवल उसी समय तक विज्ञान बना रह सकता है, जब तक कि वर्ग-संघर्ष सुषुप्तावस्था में है या जब तक कि वह केवल इक्की-बुक्की और अलग-थलग घटनाओं के रूप में प्रकट होता है। हम इंगलण्ड को लें। उसका प्रशास्त्र उस काल का है, जब वर्ग-संघर्ष का विकास नहीं हुमा था। उसके अन्तिम महान प्रतिनिधि-रिकारों ने प्राविर में जाकर वर्ग-हितों के विरोष को, मजदूरी और मुनाके तमा मुनाने और लगान के विरोष को सचेतन ढंग से अपनी खोज का प्रस्थान-बिन्तु बनाया और अपने भोलेपन में यह समझा कि यह विरोष प्रकृति का एक सामाजिक नियम है। किन्तु इस प्रकार प्रारम्भ करके पूंजीवादी प्रशास्त्र का विज्ञान उस सीमा पर पहुंच गया था, जिसे लांघना उसकी सामय के बाहर पा। रिकार्ग के जीवन-काल में ही और उनके विरोष के तौर पर सिस्मोंवी ने इस दृष्टिकोण को कड़ी पालोचना की। इसके बाद जो काल पाया, अर्थात् १८२० से १५३० तक, वह इंगलैड में अर्थशास्त्र के क्षेत्र में वैज्ञानिक छानबीन के लिये उल्लेखनीय था। यह रिकार्ग के सिद्धान्त को प्रति- सरल बनाने की चेष्टा में उसे भड़े ढंग से पेश करने और उसका विस्तार करने और साथ ही पुराने मत के साथ इस सिद्धान्त के संघर्ष का भी काल था। बड़े शानदार बंगल हुए। उनमें जो कुछ हुमा, उसकी मोरपीय महाद्वीप में बहुत कम जानकारी है, क्योंकि शास्त्रार्थ का अधिकतर भाग पत्र-पत्रिकामों में प्रकाशित होने वाले लेखों, अब-तब प्रकाशित साहित्य तथा पुस्तिकामों में बिखरा हुआ है। इस शास्त्रार्थ के तटस्थ एवं पूर्व-पह-रहित स्वरूप का कारण- हालांकि कुछ खास-खास मौकों पर रिकारों का सिद्धान्त तमी से पूंजीवादी अर्थतन्त्र पर हमला करने के हथियार का काम देने लगा था- उस समय की परिस्थितियां थीं। एक और तो माधुनिक उद्योग जर उस समय केवल अपने बचपन से निकल रहा था, जिसका प्रमाण यह है कि १८२५ के प्रर्ष-संकट से उसके माधुनिक जीवन के नियतकालिक चक्र का पहली बार भीगणेश हुमा था। दूसरी ओर, इस समय पूंजी और श्रम का वर्ग-संघर्ष पृष्ठभूमि में पड़ गया पा,-और उसे पीछे धकेलकर राजनीतिक दृष्टि से एक तरफ़ पवित्र गुट (Holy Aillance) के इर्द-गिर्द एकत्रित सरकारों तथा सामन्ती अभिजात-वर्ग और दूसरी तरफ पूंजीपति-वर्ग के नेतृत्व में साधारण जनता का झगड़ा सामने आ गया था और मार्षिक दृष्टि से पौधोगिक पूंजी तथा प्रभिजात-वर्गीय भू-सम्पत्ति का मगड़ा सामने आ गया था। यह दूसरा पगडा फ्रांस में छोटी और बड़ी भू-सम्पत्ति के सगड़े से छिप गया था, और इंगलड में वह अनान-सम्बंधी कानूनों के बाद खुल्लमखुल्ला शुरू हो गया था। इस समय का इंगलड का प्रशास्त्र सम्बंधी साहित्य उस फ्रानी प्रगति की याद दिलाता है, वो फ्रांस में ग. वेखने की मृत्यु के बाद हुई थी, मगर उसी तरह से अक्तूबर को अल्पकालीन गरमी बसन्त की याद दिलाती है। १८३० में निर्णायक संकटमा पहुंचा। फ्रांस और इंगलैग में पूंजीपति-वर्ग ने राजनीतिक सत्ता पर अधिकार कर लिया था। उस समय से ही वर्ग-संघर्ष ग्यावहारिक तथा सैद्धान्तिक दोनों दृष्टियों से अधिकाधिक लाग . 1देखिये मेरी रचना "Zr Kritik der Politischen Oekonomie", पृ. ३९ ।