पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/२६३

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दसवां अध्याय काम का दिन अनुभाग १- काम के दिन की सीमाएं . हम यह मानकर चले थे कि बम-शक्ति अपने मूल्य के बराबर दामों पर खरीदी और बेची जाती है। अन्य सब मालों की तरह श्रम-शक्ति का मूल्य भी उसके उत्पादन के लिये पावश्यक भम-काल से निर्धारित होता है। मजदूर के लिये दैनिक जीवन-निर्वाह के प्रोसतन जितने साधनों की आवश्यकता होती है, यदि उनके उत्पादन में छः घण्टे लग जाते हैं, तो उसे दैनिक सम-शक्ति को पैदा करने के लिये, या अपनी श्रम-शक्ति की बिक्री से प्राप्त मूल्य का पुनरुत्पादन करने के लिये, मजदूर को रोजाना प्रोसतन छः घण्टे काम करना चाहिये। इस तरह, उसके काम के दिन का प्रावश्यक भाग छः घण्टे का होता है, और इसलिये जब तक अन्य परिस्थितियों में परिवर्तन नहीं होता, तब तक यह पावश्यक भाग एक निश्चित मात्रा बना रहता है। लेकिन इस निश्चित मात्रा के शान से अभी हमें यह नहीं मालूम होता कि जुब काम का दिन कितना लम्बा है। मान लीजिये कि रेखा क-ब प्रावश्यक बन-काल का प्रतिनिधित्व करती है, जो कि, मान लीजिये, छः घण्टे के बराबर है। यदि क-ख के पागे भम १,३ या ६ घन्टे और बड़ा दिया जाये, तो हमारे पास तीन रेखाएं और हो जाती हैं: काम का दिन १ काम का दिन २ काम का दिन ३ क---ख-ग क---ख--ग क-----ग ये तीन रेखाएं ७, ९ र १२ घण्टे के तीन अलग-अलग काम के दिनों का प्रतिनिधित्व करती है।'क' रेखा का 'बग' विस्तार अतिरिक्त मम की लम्बाई का प्रतिनिधित्व करता है। काम का दिन चूंकि 'क ब'+'बग', या 'क ग' है, इसलिये वह 'बग' नामक अस्थिर मात्रा के बदलने के साप-साथ बदलता रहता है। 'कब' चूंकि स्थिर है, इसलिये हिसाब लगाकर यह हमेशा पता लगाया जा सकता है 'कब' के साथ 'ख ग' का क्या अनुपात है। काम का दिन १ में यह अनुपात 'कब' का है, काम के दिन २ में वह 'क ख' का , ar los है और काम के दिन ३ में वह है। इसके अलावा, चूंकि अतिरिक्त अतिरिक्त कार्य-काल प्रावश्यक कार्य-काल के अनुपात से निर्धारित होती है, इसलिये वह 'क' मूल्य की पर