काम का दिन मजदूर को समय पूंजीपति को दे सकता है, यदि उसको बह पर अपने हित में वर्ष कर देता है, तो वह पूंजीपति को लूटता है।' तब पूंजीपति मालों के विनिमय के नियम को अपना प्राधार बनाता है। अन्य सब खरीदारों की तरह वह भी अपने माल के उपयोग मूल्य से अधिकतम लाभ उठाना चाहता है। पर तभी यकायक मजदूर की पावाब सुनाई पड़ती है, वो अभी तक उत्पादन प्रक्रिया के शोर-शराबे में , मैंने वो माल तुम्हारे हाप बेचा है, वह दूसरे मालों की इस भीड़ से इस बात में भिन्न है कि उसका उपयोग मूल्य का सृजन करता है, और वह मूल्य उसके अपने मूल्य से अधिक होता है। इसीलिये तो तुमने उसे खरीदा है। तुम्हारी दृष्टि से वो पूंजी का स्वयंस्फूर्त विस्तार है, वह मेरी दृष्टि से भम-शक्ति का अतिरिक्त उपभोग है। मग्गी में तुम पोर में केवल एक ही नियम मानते हैं, और वह है मालों के विनिमय का नियम। और माल के उपभोग पर बेचने वाले का, जो माल को हस्तांतरित कर चुका है, अधिकार नहीं होता; माल के उपभोग पर उस खरीदने वाले का अधिकार होता है, जिसने माल को हासिल कर लिया है। इसलिये मेरी दैनिक श्रम-शक्ति के उपभोग पर तुम्हारा अधिकार है। लेकिन उसका जो वाम तुम हर रोख देते हो, वह इसके लिये काफी होना चाहिये कि मैं अपनी मम-शक्ति का रोजाना पुनल्लावन कर सकूँ और उसे फिर से बेच सकू। बढ़ती हुई प्रायु इत्यादि के कारण शक्ति का नो स्वाभाविक हास होता है, उसको छोड़कर मेरे लिये यह सम्भव होना चाहिये कि में हर नयी सुबह को पहले से सामान्य बल, स्वास्थ्य तवा तापगी के साथ काम कर सकू। तुम मुझे हर घड़ी "मितव्ययिता" और "परिवर्जन" का उपदेश सुनाते रहते हो। अच्छी बात है! अब में भी विवेक और मितव्ययिता से काम लूंगा और अपनी एकमात्र सम्पत्ति-मानी अपनी मम-शक्ति-के किसी भी प्रकार के मुर्ततापूर्ण अपव्यय का परिवर्णन करूंगा। में हर रोख अब केवल उतनी ही मम-शक्ति वर्ष कलंगा, केवल उतनी ही मम-गापित से काम कहंगा, केवल उत ही मम-शक्ति को क्रियाशील ऊंगा, जितनी सकी सामान्य अवधि तवा स्वल्य विकास के अनुरूप होगी। काम के दिन का मनमाना विस्तार करके, मुमकिन है, तुम एक ही दिन में इतनी बम-शक्ति बर्ष कर गलो, जिसे मैं तीन दिन में भी पुनः प्राप्त न कर सकू। श्रम के रूप में तुम्हारा जितना लाभ होगा, श्रम के सारतत्व के रूप में उतना ही मेरा नुकसान हो जायेगा। मेरी मम-शक्ति का उपयोग करना एक बात है, और उसे लूटकर चौपट कर देना बिलकुल दूसरी बात है। यदि एक पोसत मखदूर (उचित मात्रा में काम करते हुए) मौसतन ३० वर्ष तक बिन्दा रह सकता है, तो मेरी मम-शक्ति का वह मूल्य, यो तुम मुझे रोज देते हो, उसके कुल मूल्य का वो भाग होता है। ३६५४३० १०,९५० किन्तु यदि तुम मेरी बम-शक्ति को ३० के बजाय १० वर्षों में ही सर्च कर गलते हो, तो . १ 1 "Si le manouvrier libre prend un instant de repos, l'économie sordide qui le suit des yeux avec inquiétude, prétend qu'il la vole” (“afa great काम करने वाला स्वतंत्र मजदूर क्षण भर के लिये विश्राम करने लगता है, तो लालची व्यवसायी, जो बड़ी बेचैनी के साथ उसे देख रहा है, दलील देता है कि मजदूर उसे लूट रहा है"]। ( N. Linguet, “Théorie des Lois Civiles, &c.", London, 1767, sa po go xef 1)
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