पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/२७६

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काम का दिन २७३ "इससे (फेक्टरी-कानूनों को तोड़कर मजदूरों से ज्यादा समय तक काम लेने से) जो नफा होता है, वह बहुतों के लिए इतने बड़े लालच को चीय है कि वे उसके मोह का संवरण नहीं कर सकते। वे सोचते हैं कि मुमकिन है कि वे पकड़ में न पायें; और जब वे यह देखते हैं कि जो लोग पकड़े जाते हैं, उनको भी जुर्माने और बर्षे के तौर पर बहुत थोड़े पैसे देने पड़ते हैं, तो वे सोचते हैं कि अगर पकड़े भी गये, तब भी फायदे में ही रहेंगे...जिन कारखानों में दिन भर में कई बार छोटी-छोटी चोरियां करके ("by a multiplication of small thefts") अतिरिक्त समय कमाया जाता है, उनके खिलाफ मुकदमा दायर करने और इलबाम साबित करने में इंस्पेक्टरों को ऐसी-ऐसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जिन पर काबू पाना उनके लिए असम्भव हो जाता है।" पूंजी मजदूरों के भोजन तथा विभाम करने के समय की जो "छोटी-छोटी चोरियो" करती है, उनको फैक्टरी-स्पेक्टर "petty pilferings of minutes" ("मिनटों की छोटी- मोटी चोरियां")", "snatching a few minutes" ("चन्द मिनट मार देना") या, जैसा कि खुब मजदूर अपनी खास बोली में कहते हैं, "nibbling and cribbling at meal- times" ("भोजन का समय कुतर-कुतरकर पुरा लेना")" नामों से भी पुकारते हैं। कहते हैं, जिसमें ऊन के फटे-पुराने कपड़ों को फाड़-फाड़कर छोटे-छोटे चिथड़े बनाये जाते हैं और जहां की हवा धूल और ऊन के रेशों वगैरह से इस बुरी तरह भरी रहती है कि वयस्क मजदूरों को भी अपने फेफड़ों को बचाने के लिए सदा मुंह पर रूमाल बांधे रहना पड़ता है ! अभियुक्त महानुभावों को क्वेकरों के समुदाय के मेम्बर होने के नाते धार्मिक सिद्धान्तों का इतना अधिक खयाल था कि वे ऐसे मामलों में ईश्वर की सौगंध नहीं खा सकते थे। चुनांचे उन्होंने केवल इस बात की अभिपुष्टि की कि उन्होंने तो इन प्रभागे बच्चों पर दया करके उनको चार घण्टे का समय सोने के लिए दिया था, मगर वे इतने जिद्दी थे कि बिस्तर पर लेटने को ही तैयार नहीं हुए। इन क्वेकर महानुभावों पर अदालत ने २० पौण्ड का जुर्माना किया। ड्रायडन ने शायद इन्हीं लोगों के बारे में यह लिखा था कि : "Fox full fraught in seeming sanctity, That feared an oath, but like the devil would lie, That 'look'd like Lent, and had the holy leer, And durst not sin ! before he said his prayer!" ("संन्यासी का बाना धारे, बड़ी लोमड़ी मन को मारे ! सत्य-धर्म को शीश नवाये, मूठों की सिरमौर कहाये ! व्रत-उपवास कभी ना टाला, नैनों में संयम की ज्वाला! जब तक प्रभु-गुण-गान न गा ले, पाप-कर्म में हाथ न डाले !") 1 "Reports, &c., 31st October, 1856" ('रिपोर्ट, इत्यादि, ३१ अक्तूबर १९५६'). पृ. ३४॥ 'उप. पु., पृ० ३५। पु., पृ. ४८॥ 'उप. पु., पृ० ४६ । पु०, पृ. ४८॥ 18-45 1 . उप. उप.