पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/२७७

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२७४ पूंजीवादी उत्पादन यह बात साफ है कि इस बातावरण में अतिरिक्त मम द्वारा अतिरिक्त मूल्य का निर्माण कोई गुप्त बात नहीं होती। "यदि पाप दिन भर में केवल बस मिनट तक मुझे मजदूरों से ज्यादा काम लेने की इजाजत दे",-एक बहुत ही प्रतिष्ठित मिल-मालिक ने मुझसे कहा पा,-"तो पाप मेरी बेब में हर साल एक हजार पौण की रकम गल देंगे। "मुनाफे इस दृष्टि से इससे अधिक स्पष्ट परित्रगत विशेषता और क्या हो सकती है कि पूरे बत काम करनेवाले मजदूरों को full times" ("पूर्णकालिक") और १३ वर्ष से कम उम्र के बच्चों को, जिनको केवल घण्टे काम करने की इजाजत है, "half times" ("प-कालिक") की संज्ञा दी जाती है। यहां मजदूर मूर्तिमान प्रम-काल के सिवा और कुछ नहीं है। अलग-अलग मजदूरों की तमाम व्यक्तिगत विशेषताएं यहाँ पर "full times" ("पूर्णकालिकों") और "halt times" ("पर्वकालिकों") में लोप हो जाती है। अनुभाग ३ - अंग्रेजी उद्योग की वे शाखाएं, जिनमें शोषण की कोई कानूनी सीमा नहीं है अभी तक हमने उस विभाग में काम के दिन को लम्बा खींचने की प्रवृति पर, या मनुष्य-ममी भेड़ियों की अतिरिक्त मम की भूत पर, विचार किया है, वहां मजदूरों को इस भयानक ढंग से चूसा जाता था कि, इंगलैग के एक पूंजीवाद प्रशास्त्री के शब्दों में, अमरीका के पारिवासियों पर स्पेनवासियों ने गो अत्याचार डाये में, वे भी उससे अधिक निर्दयतापूर्ण नहीं थे। और उसके फलस्वरूप पूंजी को पाखिरकार कानूनी प्रतिबंधों की संचारों से पका देना पड़ा। पाइये, अब हम उत्पादन की उन शाखामों पर विचार करें, जिनमें मम का शोषण या तो भान तक किसी भी प्रकार के प्रतिबंधों से मुक्त है, या अभी कल तक मुक्त था। उप. पु., पृ. ४८ । "Report of the Insp. &c., 30th April, 1860" ('89967 faute इत्यादि, ३० अप्रैल १८६०'), पृ० : ५६ । फैक्टरियों पोर इंस्पेक्टरों की रिपोर्टों में, दोनों जगह इन्हीं नामों का अधिकृत रूप से प्रयोग किया जाता है। "मिल मालिकों का लालच उन्हें नफे के लोभ में डालकर उनसे ऐसे-ऐसे निर्दय काम कराता है कि शायद सोने के लोभ में पड़कर अमरीका को जीतने वाले स्पेनवासी भी उससे ज्यादा बेरहमी के काम नहीं कर पाये थे।" (John Wade, "History of the Middle and Working Classes" [जान वेड, 'मध्य वर्ग और मजदूर-वर्ग का इतिहास]', तीसरा संस्करण, London, 1835, पृ०, ११४।) यह पुस्तक अर्थशास्त्र का एक तरह का गुटका है। पौर यदि उसके प्रकाशन के समय को ध्यान में रखा जाये, तो उसके सैदान्तिक भाग के कुछ अंश एकदम नये है, मिसाल के लिए, व्यापारिक संकटों से सम्बंधित हिस्सा। लेकिन पुस्तक के ऐतिहासिक हिस्से में बहुत हद तक सर एफ. एम. ईटेन की रचना 'गरीबों की अवस्था (Sir F. M. Eden, "The State of the Poor". London, 1797) # निर्लज्जतापूर्वक नकल की गयी है।