पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/२८९

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२९६ पूंजीवादी उत्पादन - ये मजदूर देव या दैत्य नहीं, बल्कि साधारण मनुष्य थे। पाखिर एक ऐसा बिन्तु पाया, अब उनकी मम-शक्ति जवाब दे गयी, चेतनाशून्यता ने उन्हें मारा, उनके दिमाग में सोचना पार पांतों ने देखना बन्द कर दिया। पर thoroughly respectable British jurymen (अंग्रेजी प्रदालत की पूरी के परम “संघात" सदस्यों) ने उनके मुकदमे का यह भैसला किया कि manslaughter (नर-हत्या) का धुर्म लगाकर उनको तो सेशन प्रदालत के सिपुर्व कर दिया, और अपने निर्णय के साथ एक नन सा ऐसा अंश भी जोड़ दिया, जिसमें प्राशा प्रकट की गयी थी कि रेलों के पूंजीवादी मालिक भविष्य में मन-शक्ति की पर्याप्त मात्रा खरीदने पर कुछ ज्यादा पैसा खर्च किया करेंगे और खरीदी हुई पम-शक्ति को धूसने में पहले से अधिक "मितव्ययिता", "कम-सों" और "अपरिग्रह" का परिचय वेगे।' U . . . 1"Reynolds' Newspaper", २० जनवरी १९६६।-यही मलबार हर सप्ताह रेलों पर होने वाली नयी-नयी दुर्घटनामों की पूरी सूची ऐसे "sensational headings" ("सनसनीखेज शीर्षक") देकर छापता है, जैसे “Fearful and fatal accidents", "Appalling trage- dies' ('भयानक और सत्यानाशी दुर्घटनाएं', 'भयंकर दुर्घटनाएं') इत्यादि। दुर्घटनामों के विषय में उत्तरी स्टफ्फर्डशायर लाइन पर काम करने वाले एक कर्मचारी ने लिबा है: "हर पादमी जानता है कि अगर किसी रेलवे-इंजिन का ड्राइवर और फायरमैन बराबर सतर्क न रहें, तो उसका क्या नतीजा होगा। पर जो भादमी २६ या ३० घण्टे से, मौसम की तमाम मुसीबतों को मेलते हुए और बिना एक क्षण माराम किये हुए, लगातार इस तरह का काम कर रहा है, वह बराबर सतर्क कैसे रह सकता है? नीचे जिस तरह की मिसाल दी गयी है, वैसी घटनाएं अक्सर होती रहती है। एक फायरमैन ने सोमवार की सुबह को बहुत तड़के ही काम शुरू कर दिया। जब उसने एक दिन का काम समाप्त किया, तब तक वह पूरे १४ घण्टे ५० मिनट काम कर चुका था। वह चाय भी नहीं पीने पाया था कि उसे फिर ड्यूटी पर बुला भेजा गया... जब अगली बार उसे काम से छुट्टी मिली, तब तक वह १४ घण्टे २५ मिनट और काम कर चुका था। इस तरह उसने बिना विराम के कुल २६ घण्टे १५ मिनट तक काम किया था। सप्ताह के बाकी दिन उसे इस तरह काम करना पड़ा : बुधवार को १५ घण्टे , बृहस्पतिवार को १५ घण्टे ३५ मिनट, शुक्रवार को १४ घण्टे और शनिवार को १४ घण्टे १० मिनट। इस तरह एक सप्ताह में उसने कुल ५८ घण्टे ४० मिनट काम किया। भव, जनाब, जरा सोचिये कि जब उसे इस तमाम काम के लिये केवल ६ दिन की मजदूरी मिली, तब उसे कितना पाश्चर्य हुमा होगा। यह सोचकर कि शायद हिसाब में गलती हो गयी है, वह टाइम-कीपर के पास गया... पौर उससे पूछा कि भई, एक दिन के काम का तुम क्या मतलब लगाते हो? उसको जवाब मिला कि जब भला-बंगा मादमी १३ घण्टे काम करता है, तब एक दिन का काम पूरा होता है (यानी हफ्ते में ७८ घण्टे काम करना जरूरी है) तब उसने कहा कि पच्छा, ७८ घण्टे प्रति सप्ताह से ज्यादा उसने जो काम किया है, उसके पैसे तो उसे मिलने चाहिए। जवाब मिला, नहीं मिलेंगे। परन्तु प्राबिर उससे कहा गया कि मच्छा, उसे १० पेंस और मिल पायेंगे।" ("Reynolds' Newspaper", ४ फरवरी १८६६।)