काम का दिन २८७ . .. हृत व्यक्तियों की पात्माएं मुलीसिस के चारों पोर इतने बोर-शोर से नहीं मंडरा रही थी, जितने जोर-शोर से अलग-अलग पेशों और उत्रों के मजदूरों और मरिनों की यह पंचमेल भीड़ हमारे चारों मोर मंडरा रही है। इनकी बाल में रखे हुए सरकारी प्रकाशनों की पोर यदि ध्यान न भी दिया जाये, तो इनके चेहरों पर एक नबर गलते ही हम अत्यधिक परिमन के चिन्ह साफ देख सकते हैं। इस भीड़ में से हम दो उदाहरण और लेंगे। उनकी स्थिति में वो स्पष्ट भेव विताई देगा, उससे यह बात बिल्कुल साफ हो जायेगी कि पूंजी की नजरों में सब पावनी बराबर है। इनमें से एक टोपी बनाने वाली औरत है और दूसरा एक लोहार है। चून १८६३ के पाखिरी सप्ताह में लन्दन के सभी वैनिक पत्रों ने एक समाचार छापा और उसपर यह "sensational (सनसनीलेव) शीर्षक दिया : "Death from simple over-work" ("केवल अत्यधिक काम करने के कारण मृत्यु')। यह मेरी एन बाल्कले नामक एक बीस वर्ष की टोपी बनाने वाली औरत की मृत्यु का समाचार पा, मो कपड़ों की एक बहुत ही प्रतिष्ठित दुकान में काम करती थी, जिसका संचालन एलीप से सुन्दर नाम की एक महिला करती थी। बह पुरानी कहानी, जिसे हम पहले भी अनेक बार सुन चुके हैं, एक बार फिर बोहरापी गयी। यह लड़की अविराम प्रीसतन १६७ घंटे रोग काम करती थी, और जब व्यवसाय की तेजी का मौसम होता था, तो अक्सर उसे तीस-तीस घण्टे तक लगातार काम करना पड़ता पा। जब उसकी मम-शक्ति जवाब देने लगती थी, तो समय-समय पर शेरी, पोर्ट या काफी पिलाकर उसे फिर काम में जुटा दिया जाता था। इन दिनों व्यापार खूब चमक रहा था। अभी हाल में विदेश से मंगायी गयी युवरानी के सम्मान में बॉल-नृत्य का एक समारोह होने वाला पा, और जिन महिलाओं को उसमें भाग लेने के लिये निमन्त्रित किया गया था, उनके लिये फटाफट शानदार पोशा तैयार करना बरी वा। मेरी एन बाल्कले ६० अन्य लड़कियों के साप घण्टे से अविराम काम कर रही पी। तीस-तीस लड़कियां एक-एक कमरे में जब भी। और कमरा भी ऐसा कि उनको जितनी क्यूबिक क्रीट हवा मिलनी चाहिये थी, उसकी केवल एक तिहाई मिलती थी। सोने का कमरा लकड़ी के तख्ते लगाकर कावुक के छोटे-छोटे, पम घोंटने वाले सूराखों में बांट दिया गया था। ऐसे प्रत्येक कबूतरखाने में रात को दो-दो लड़कियों को सोना पड़ता था। और यह लन्दन की एक सबसे अच्छी टोपियां बनाने वाली दूकान पी। देखिये फ्रेडरिक एंगेल्स की उपर्युक्त रचना, पृ. २५३, २५४ । IBoard of Health ( सरकारी स्वास्थ्य बोर्ड) के सलाहकार डाक्टर डा० लेथेवी ने कहा था: "हर वयस्क व्यक्ति के लिये सोने के कमरे में कम से कम ३०० क्यूबिक फीट और रहने के कमरे में कम से कम ५०० क्यूबिक फ़ीट हवा होनी चाहिये ।" लन्दन के एक अस्पताल के बड़े गक्टर डा. रिचार्डसन ने कहा है : "विभिन्न प्रकार का सीने-पिरोने का काम करने वाली औरतें, जिनमें टोपी बनाने वाली औरतें, पोशाक सीने वाली औरतें और साधारण दर्बिनें सभी शामिल है, तीन मुसीबतों का शिकार होती है : अत्यधिक काम, हवा की कमी पौर या तो पर्याप्त भोजन का प्रभाव और या पाचनशक्ति का प्रभाव... सीने-पिरोने का काम... पुरुषों की अपेक्षा प्रायः स्त्रियों के अधिक अनुरूप है। परन्तु इस व्यवसाय में, बास तौर पर राजधानी में, यह बुराई है कि उसपर लगभग छम्बीस पूंजीपतियों का एकाधिकार
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