२९४ पूंजीवादी उत्पादन माइये, अब बरा यह देखें कि २४ घण्टे काम लेने की प्रणाली के विषय में गुर पूंजी स्या सोचती है। इस प्रणाली के परम मों के बारे में-कान के दिन का "निर्दयतापूर्ण एवं अविश्वसनीय ढंग से" विस्तार करने के म में इस प्रणाली का जो दुरुपयोग किया जाता है, उसके बारे में-पूंची स्वभावतः पुप्पी साध लेती है। पूंजी इस प्रणाली के केवल "सामान्य" म की ही पर्चा करती है। पूछे गये, तो उसने जवाब दिया dog (कुत्ता), और रानी का नाम उसे मालूम नहीं था।" ("Ch. Employment Comm. v Report, 1866" ['बाल सेवायोजन आयोग की ५वीं रिपोर्ट, १९६६'], पृ० ५५, अंक २७८1) धातु-कर्मी कारखानों में जो व्यवस्था पायी जाती है और जिसका ऊपर वर्णन किया गया है, वही कांच और काग्रज के कारखानों में भी पायी जाती है। कागज की फैक्टरियों में, जहां पर मशीन से कागज बनाया जाता है, चिपड़े छांटने की प्रक्रिया को छोड़कर बाकी सब प्रक्रियाओं में रात में काम कराया जाता है। कुछ फैक्टरियों में पालियों की प्रणाली के द्वारा पूरे सप्ताह लगातार रात में काम होता रहता है; वह साधारणतया रविवार की रात को शुरू होता है और अगले शनीचर की पाधी रात तक चलता रहता है। जो मजदूर दिन-पाली में काम करते हैं, वे हर हफ्ते ५ दिन बारह-बारह घण्टे काम करते हैं और १ दिन १८ घण्टे ; जो रात-पाली में काम करते है, वे ५ रातों तक १२ घण्टे और एक रात छः घण्टे काम करते है। दूसरे कारखानों में जब साप्ताहिक पालियों का परिवर्तन किया जाता है, तो हर पाली लगातार २४ घण्टे काम करती है, यानी एक पाली सोमवार को ६ घण्टे और शनीचर को १८ घण्टे काम करके चौबीस घण्टे पूरे कर देती है। दूसरी फैक्टरियों में एक बीच की व्यवस्था पायी जाती है, जिसमें कागज बनाने की मशीन पर काम करने वाले तमाम मजदूर हर रोज १५ या १६ घण्टे मेहनत करते हैं। जांच-कमिश्नर लार्ड ने कहा है कि इस प्रणाली में, "मालूम होता है, १२ घण्टे की पाली और २४ घण्टे की पाली, दोनों की सारी बुराइयां पाकर इकट्ठी हो गयी है। १३ वर्ष से कम के बच्चों से, १८ वर्ष से कम के लड़के- लड़कियों से और स्त्रियों से भी रात में काम लिया जाता है। १२ घण्टे वाली व्यवस्था में कभी-कभी, जब दूसरी पाली के कुछ भादमी काम पर नहीं पाते, तो उन्हें २४ घण्टे की दो पालियों का काम निबटाना पड़ता है। जांच-कमिश्नरों के सामने दिये गये बयानों से यह बात साफ़ हो गयी है कि लड़के-लड़कियों को अक्सर प्रोवरटाइम काम करना पड़ता है, जो प्रायः २४ घण्टे और यहां तक कि ३६ घण्टे तक भी लगातार चलता रहता है। काचन की अनवरत तथा सदा एक ढंग से चलने वाली प्रक्रिया में १२-१२ बरस की लड़कियां काम करती पायी जाती है, जो पूरे महीने १४ घण्टे रोज काम करती है और जिनको “भोजन करने की पाप- माध घण्टे की २ या अधिक से अधिक ३ छुट्टियों के सिवा बीच में एक भी नियमित अवकाश नहीं मिलता।" कुछ मिलों में, जहां नियमित रूप से चलने वाला रात का काम बिल्कुल बन्द कर दिया गया है, मजदूर-मजदूरिनों से भयानक रूप में अत्यधिक काम लिया जाता है, “मौर अक्सर इस तरह का काम सबसे पयादा गन्दी, सबसे ज्यादा गरम और सबसे अधिक नीरस istuvat o ferent atat ti"( "Ch. Employment Comm. Report IV., 1865" ['बाल सेवायोजन पायोग की चौथी रिपोर्ट , १८६५'], पृ. xxxVII (अड़तीस) पौर xxXIX (उन्तालीस)।) " . .
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