३१६ पूंजीवादी उत्पादन पंपों की उत्पत्ति होते ही काम के दिन को बढ़ाने के लिये ऐसी भयानक नोचासोट शुरू हुई कि लगता था, जैसे हिमशिलास्मलन हो रहा हो। नैतिकता और प्रकृति की सारी सीमाएं, मायु और लिंग-भेद के तमाम बंधन पर दिन और रात की तमाम हरें तोड़पी गयीं। यहां तक कि दिन और रात की परणाएं, बो पुराने परिनियमों में प्रामीण जीवन की भांति सरली, पापस में इतनी उलझ गयी कि १८६० तक किसी भी अंग्रेस मन को "न्यायिक दृष्टि से" निर्णय करने में कि दिन क्या है और रात क्या है, सुलेमानी बुद्धि की बरत होती थी। इस काल में पूंची,ने वी भर अपना विजयोत्सव मनाया। उत्पादन की इस नयी व्यवस्था के शोर-शराबे से मजदूर-वर्ग हतप्रभ होकर रह गया था। जब उसे कुछ होश पाया, तो उसका प्रतिरोष प्रारम्भ हुमा। सबसे पहले बड़े पैमाने पर मशीनों के प्रयोग की मातृभूमि-इंगलड-में यह प्रतिरोष शुरू हुमा। लेकिन ३० वर्ष तक मेहनतकश जनता जितनी भी रियायतें पाने में कामयाब हुई, वे सब नाम मात्र की थीं। १८०२ और १८३३ के बीच संसद ने मजदूरों के सम्बंध में ५ कानून पास किये, लेकिन उसने यह चतुराई विलायी कि इन कानूनों को अमल में लाने के लिये, उसके लिये प्रावश्यक प्रक्रसरों को तनखाह मावि देने के लिये उसने एक पेनी का भी वर्ष मंदूर नहीं किया।' जोड़ दिया जाये, तो उसका असल में यह मतलब होता है कि इन लोगों को २४ घण्टे में से १४ घण्टे काम के लिये खर्च कर देने पड़ते हैं ... मजदूरों के स्वास्थ्य के प्रश्न पर न विचार करते हुए भी, मैं समझता हूं, यह मानने में किसी को भी हिचकिचाहट न होगी कि नैतिक दृष्टिकोण से यह बात बहुत ही हानिकारक और बहुत ही शोचनीय है कि १३ वर्ष की उम्र से ही-पौर जिन धंधों पर कोई कानूनी प्रतिबंध नहीं है, उनमें तो और भी कम उम्र से- मेहनतकश वर्गों का सारा समय हड़प लिया जाता है और उनको बीच में जरा भी छुट्टी नहीं मिलती... इसलिये सार्वजनिक नैतिकता की रक्षा के लिये, देशवासियों को व्यवस्था-प्रिय बनाने के लिये और साधारण जनता को जीवन का थोड़ा पानन्द देने के लिये यह बहुत जरूरी है कि सभी धंधों में काम के प्रत्येक दिन का. कुछ भाग पाराम और अवकाश के लिये सुरक्षित TI" ("Reports of Insp. of Fact. for 31st Dec., 1841" ["Stefcat i pet की रिपोर्ट, ३१ दिसम्बर १८४१'], लेमोनार्ड होर्नर की रिपोर्ट।) Tafert "Judgement of Mr. J. H. Otway, Belfast. Hilary Sessions, County Antrim, 1860" ('बेल्फास्ट के मि. जे. एच. मोटवे का फैसला । एण्ट्रिम काउंटी की हिलारी सेशन अदालत, १८६०')। 'पूंजीवादी बादशाह . लुई फ़िलिप के शासन पर इस बात से काफ़ी प्रकाश पड़ता है कि उसके राज्य-काल में जो एक फैक्टरी-कानून पास हुमा, यानी २२ मार्च १८४१ का कानून , वह कभी अमल में नहीं लाया गया। और यह कानून केवल बच्चों के श्रम से सम्बंध रखता था। उसमें ८ वर्ष से १२ वर्ष तक के बच्चों के लिये ८ घण्टे रोज की सीमा, १२ वर्ष से १६ वर्ष तक के बच्चों के लिये १२ घण्टे रोज की सीमा और इसी प्रकार अन्य सीमाएं निश्चित की गयी थीं। साथ ही अनेक अपवादों के लिये स्थान रखा गया था, जिनके मातहत ८ वर्ष के बच्चों से भी रात काम लेने की इजाजत मिल जाती थी। एक ऐसे देश में, जहां हर चूहे को पुलिस की निगरानी में रहना पड़ता है, इस कानून को अमल में लाने और उसकी देखरेख करने का काम "amis du commerce" ("व्यापार के मित्रों") की सद्भावना के .
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