काम का दिन ३१६ . बात की शिकायतों से भरी हुई है कि इस कानून को लागू करना असम्भव है। १८३३ के कानून ने यह बात पूंजी के मालिकों की मर्जी पर छोड़ दी थी कि सुबह के ५.३० बजे से शाम के ८.३० बजे तक वे हर "युवा व्यक्ति" तबाहर "बच्चे" से उसका १२ घन्टे या ८ घण्टे का काम पाहे जिस समय शुरू करायें, चाहे जिस समय उसे बीच में रोक, चाहे जिस वक्त उससे फिर काम करने को कहें और चाहे जिस वक्त उसका काम समाप्त करा। इसी प्रकार उनको अलग-अलग व्यक्तियों को अलग-अलग समय पर भोजन की छुट्टी देने का भी प्रषिकार पा। इस बीच से फायदा उगते हुए इन महानुभावों ने शीघ्र ही एक नयी "पालियों की प्रणाली" ("system of relays") मोज निकाली, जिसके अनुसार मेहनत करने वाले जानवरों को किन्हीं निश्चित नाकों पर नहीं बदला जाताया, बल्कि लोग इन्हें कभी इस नाके पर तो कभी उस नाके पर बार-बार काम में बोतते रहते थे। इस प्रणाली के सौंदर्य पर विचार करने के लिये अभी हमारे पास समय नहीं है। हम बाद में फिर इसकी चर्चा करेंगे। लेकिन पहली ही नबर में एक बात साफ हो जाती है। वह यह कि इस नयी प्रणाली ने पूरे पटरी-कानून को उनकर ताक पर रख दिया। यह प्रणाली न केवल इस कानून की भावना, बल्कि उसकी शनावली तक की अवहेलना करती थी। इस प्रणाली में हर बच्चे या हर युवा व्यक्ति के लिये बहुत ही पेचीदा ढंग का अलग हिसाब रखा जाता था। अब भला सोचिये कि ऐसी हालत में फैक्टरी स्पेक्टर इस बात की कैसे जांच कर सकते कि हर मजदूर से कानून द्वारा निश्चित सीमानों के भीतर काम लिया जा रहा है या नहीं, और उसे कानून के अनुसार भोजन मावि के लिये पर्याप्त छुट्टी. बी जाती है या नहीं? बहुत सी फ्रक्टरियों में वे ही पुरानी बर्बरताएं फिर जारी हो गयीं, और उनको रोकने की या उनके लिये सवा देने की कोई तरकीब नहीं रही। सरकार के गृहमंत्री से एक भेंट (१६४) के दौरान में फेक्टरी- इंस्पेक्टरों ने साबित किया कि पालियों की इस नव-माविष्कृत प्रणाली के जारी रहते मजदूरों के काम पर किसी तरह का भी नियंत्रण रखना असम्भव है। परन्तु इस बीच परिस्थितियां बहुत बदल गयी थीं। चुनाव के लिये फेक्टरी-मजदूरों ने जिस प्रकार चार्टर का नारा अपना मुख्य राजनीतिक नारा बना लिया था, उसी प्रकार, खास तौर पर १८३८ के बाद से, १० घण्टे के बिल का नारा उन्होंने अपना मुख्य प्रार्षिक नारा बना लिया था। कुछ ऐसे कारखानदारों ने भी संसद में भावेदन-पत्रों का ढेर लगा दिया था, को १८३३ के कानून के अनुसार अपनी फैक्टरियां चलाते पाये थे और इसलिये जिन्होंने इन भावेदन-पत्रों में अपने उन बेईमान भाई-विराबरों की अनैतिक प्रतियोगिता की शिकायतें की थी, जो अधिक सीनाजोर होने के कारण या कुछ विशेष प्रकार की स्थानीय परिस्थितियों से लाभ उठाकर कानून तोड़ने में कामयाब हो गये थे। इसके अलावा हर अलग-अलग कारखानेदार अपनी-अपनी जगह पर चाहे जैसे बेलगाम ढंग से अपने नक्के के पुरातन लालच को पूरा करने में लगा हो, परन्तु कारखानेदारों के वर्ग के प्रवक्तामों और राजनीतिक नेताओं ने उनको मादेश दिया कि अब से उनको अपने मजदूरों के साथ एक नये उंग से पेश पाना चाहिये और उनसे एक नये ढंग से बातचीत करनी चाहिये। यह इसलिये कि कारखानेवारों के राजनीतिक नेता अनाज के कानूनों को रहकराने के संघर्ष में लगे हुए थे और उसमें विजय प्राप्त करने के लिये उनको मजदूरों की सहायता की पावश्यकता थी। चुनांचे उन्होंने मजदूरों से वायदा किया कि यदि स्वतंत्र व्यापार के स्वर्ग-युग की विजय हो गयी, तो न सिर्फ उनको . 1 1 "Rept. of Insp. of Fact., 31st October, 1849" ('$afcuf * रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १८४६') पृ. ६।
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