पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/३४३

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३४० पूंजीवादी उत्पादन सासुर पटरियों पर कायम हो चुका था। इसलिये, धीरे-धीरे कानूनों को अपना मापवारिक स्वल्प त्याग देना पड़ा था,-गलब की तरह, वहां पर कानून रोमन मुतकियों की तरह चलता है,-हर उस मकान को, जिसमें काम होता है, फ्रेपटरी घोषित कर देना , दूसरी बात । उत्पादन की कुछ शाखामों में काम के दिन के नियमन का मो इतिहास रहा है और इस नियमन के प्रश्न को लेकर अन्य शालाओं में मान भी बो संघर्ष चल रहा है, उसमें यह बात निर्णायक ससे सिद्ध हो जाती है कि अब एक बार पूंजीवादी उत्पादन एक खास मंपिल पर पहुंच जाता है, तो अकेले मजदूर में, पानी अपनी मम-शक्ति को "स्वतंत्र" म से बेचने वाले मजदूर में, उसका तनिक भी विरोध करने की शक्ति नहीं रहती पौर वह उसके सामने प्रात्म-समर्पण कर देता है। इसलिये काम के सामान्य दिन को यदि मनवाया जा सका है, तो वह पूंजीपति-वर्ग और मजदूर वर्ग के बीच न्यूनाधिक छन्म देश में चलने वाले एक लम्बे गृह-पुट का फल है। चूंकि यह संपाम माधुनिक उद्योगों के मैदान में चलता है, इसलिये वह पहले-पहल इन उद्योगों की जन्मभूमि में-इंगलड में-शुरू हमा।' इंगलंग के फ्रैक्टरी-मजदूर न केवल अंग्रेस मजदूर वर्ग के, बल्कि समस्त माधुनिक मजदूर वर्ग के मलमवरवार , और उनके सिद्धान्तवेताओं ने पहले-पहल पूंजी के सिद्धान्तवेताओं को चुनौती वीपी।चुनाचे फैक्टरी का पार्शनिक उरे अंग्रेस मजदूस्वर्ग के लिये यह एक चिरस्थापी अपमान . 1 "पिछले अधिवेशन (१८६४) के कानून ... तरह-तरह के बहुत से धंधों से सम्बंध रखते है, जिनके रीति-रिवाज बहुत भिन्न-भिन्न प्रकार के है, और अब कानूनी भाषा में "फैक्टरी" कहलाने के लिये पहले की तरह यह जरूरी नहीं रह गया है कि मशीनों में गति पैदा करने के लिये यांत्रिक शक्ति का प्रयोग किया जाये।" ("Reports, &c.. for 31st October, 1864" ["रिपोर्ट, इत्यादि, ३१ अक्तूबर १८६४'], पृ. ८।) 'योरपीय उदारतावाद के स्वर्ग-बेल्जियम - में इस आन्दोलन का कोई चिन्ह दिखाई नहीं देता। यहां तक कि कोयला-बानों और धातुओं की खानों में भी पूंजी दिन या रात के किसी भी हिस्से में और किसी भी समय तक हर उम्र के मजदूरों और मजदूरिनों को पूर्ण "स्वतंत्रता" के साथ निचोड़ती रहती है। वहां काम करने वाले हर १,००० व्यक्तियों में से ७३३ पुरुष होते हैं, ८८ स्त्रियां, १३५ लड़के और ४ सोलह वर्ष से कम पायु की लड़कियां; हवा-भट्ठियों आदि पर काम करने वाले प्रत्येक १,००० व्यक्तियों में से ६८८ पुरुष होते है, १४६ स्त्रियां, ६८ लड़के और ८५ सोलह वर्ष से कम आयु की लड़कियां। चित्र को पूरा करने के लिये उसमें यह और जोड़ दीजिये कि इस परिपक्व एवं अपरिपक्व श्रम-शक्ति का जो भयानक शोषण होता है, उसके एवज में बहुत ही कम मजदूरी मिलती है। पुरुष की प्रोसत दैनिक मजदूरी २ शिलिंग ८ पेंस है, स्त्री की १ शिलिंग पेंस और लड़के की १ शिलिंग २३ पैस। परिणाम यह है कि १८६३ में बेल्जियम ने कोयले , लोहे आदि के अपने निर्यात का परिमाण तथा मूल्य दोनों को १८५० का लगभग दुगुना कर दिया था। 'रोबर्ट मोवेन ने १८१० के कुछ समय बाद ही न केवल सिद्धान्त के रूप में फैक्टरियों के काम के दिन को सीमित करने की पावश्यकता स्वीकार की थी, बल्कि न्यू लैनार्क में स्थित अपनी फैक्टरी में सचमुच १० घण्टे का दिन जारी कर दिया था। लोग इसे साम्यवादी स्वप्न-