काम का दिन ३४१ की बात समझता है कि "भम की पूर्ण स्वतंत्रता के लिये पौष के साथ लड़ने वाली पूंची के मुकाबले में मजदूरों ने अपनी पताका पर "फेक्टरी-कानूनों की पुलामी" का नारा अंकित फ्रांस लंगड़ाता हुमा धीरे-धीरे इंगलैग के पीछे पीछे चल रहा है। फ्रांस का १२ घण्टे का कानून जिस अंग्रेजी कानून की नकल है, उसके मुकाबले में वह बहुत ही दोषपूर्ण है। फिर भी, इस दुनिया में इस कानून को बबूब में लाने के लिये वहां फरवरी-कान्ति की पावश्यकता हुई। पर इन तमाम बातों के बावजूब फ्रांस की क्रान्तिकारी पति में कुछ विशेष गुण है। वह एक बार हमेशा के लिये और बिना किसी भेद-भाव के सभी कारखानों और फैक्टरियों में काम के दिन पर एक सी सीमा लगा देती है, जबकि इंगलैड के कानून बड़ी हिचकिचाहट दिखाते हुए कभी इस बात पर परिस्थितियों के बचाव के सामने झुक जाते हैं, तो कभी इस बात पर और परस्पर विरोधी धाराओं के एक बहुत ही उल्टे-सीधे गोरखधंधे में सोते जा रहे हैं। इंगलेज लोक बनाने की कोशिश समझकर उसपर हंसते थे। इसी तरह, मोवेन ने "बच्चों की शिक्षा के साथ उत्पादक श्रम को जोड़ने" का जो प्रयत्न किया था और उन्होंने मजदूरों की जो प्रथम सहकार समितियां बनायी थीं, उनपर भी लोग हंसे थे। माज वह पहला स्वप्न-लोक फैक्टरी-कानून बन गया है, दूसरे का हर "Factory Act" (फैक्टरी-कानून) में सरकारी तौर पर जिक्र रहता है और तीसरे का अभी से प्रतिक्रियावादी बकवास की पाड़ के रूप में प्रयोग होने लगा है। 1 Ure, “Philosophie des Manufactures” (goieiteit aqara ), Paris, 1836, खण्ड २, पृ० ३६, ४०, ६७, ७७ इत्यादि। २१८५५ में पेरिस में जो अन्तरराष्ट्रीय सांख्यिकी सम्मेलन हुआ था, उसकी Compte Rendu (रिपोर्ट ) में (पृष्ठ ३३२ पर) लिखा है : “फ्रांस के उस कानून के अनुसार, जो फैक्टरियों और वर्कशापों में दैनिक श्रम के काल को १२ घण्टे तक सीमित कर देता है, यह जरूरी नहीं है कि यह १२ घण्टे का काम कुछ खास और पहले से निश्चित समय के अन्दर समाप्त हो जाये। केवल बच्चों के काम का समय ते है। उनसे केवल ५ बजे सुबह से ६ बजे रात तक ही काम लिया जा सकता है। इसलिये इस नाजुक सवाल पर कानून की खामोशी से मिल- मालिकों को शायद एक इतवार के दिन को छोड़कर बाक़ी पूरे हफ्ते अपने कारखानों को दिन- रात लगातार चलाने का जो हक मिल गया है, उसका कुछ मालिक पूरा-पूरा इस्तेमाल करते है। इसके लिये वे मजदूरों की दो पालियों से काम लेते हैं, जिनमें से कोई पाली एक वक्त में १२ घण्टे से ज्यादा कारखाने में नहीं रहती, मगर फैक्टरी में दिन-रात काम होता रहता है। कानून का तकाजा पूरा हो जाता है, पर क्या मानवता का तकाजा भी पूरा हो जाता रात को काम करने का मानव-शरीर पर जो घातक प्रभाव पड़ता है,' उसके मलावा इस रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि "जब बहुत कम रोशनी वाली उन्हीं वर्कशापों में रात को स्त्रियों और पुरुषों को साथ-साथ काम करना पड़ता है, तो उसका बहुत ही घातक प्रभाव होता है।" "मिसाल के लिये, मेरे रिस्ट्रिक्ट में एक कारखानेदार है, जिसका एक ही कारदाना है और जो ‘कपड़े सफ़ेद करने और रंगने वाले कारखानों के कानून' के मातहत कपड़े सफ़ेद करने वाला पौर रंगने वाला है, “Print Works Act" ('कपड़े की छपाई करने वाले कारखानों . है?
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