३५६ पूंजीवादी उत्पादन . . . अब यदि ‘क ग' में, पानी १२ घन्टे के काम के दिन में, हम बिनु को पीछे धकेल कर 'ख' पर ले जायें, तो 'बग' रेता 'ब'ग' हो जायेगी., पानी अतिरिक्त भन में ५० प्रतिशत की वृद्धि हो जायेगी, वह २ घन्टे से ३ घन्टे का हो जायेगा, हालांकि काम का दिन पहले की तरह १२ घण्टे का ही रहेगा। लेकिन जाहिर है कि अतिरिक्त भम-काल को 'बग' से बढ़ाकर 'ख' ग' कर देना, २ घण्टे से बढ़ाकर ३ घण्टे कर बेना, उस वक्त तक सम्भव नहीं है जब तक कि उसके साथ-साथ प्रावश्यक श्रम-काल को 'क ख' से घटाकर 'क ख'-या १० घन्टे से घटाकर १ घन्टे-न कर दिया जाये। अतिरिक्त श्रम को उतना ही लम्बा किया जा सकेगा, जितना पावश्यक श्रम को छोटा करना सम्भव होगा, ,-या यूं कहिये, श्रम-काल का एक ऐसा हिस्सा, जो पहले प्रसल में मजबूर के अपने हित में खर्च होता था, वह अब पूंजीपति के हित में खर्च होने वाले भम-काल में बदल जायेगा। काम के दिन की लम्बाई में परिवर्तन नहीं होगा, बल्कि पावश्यक श्रम-काल तथा अतिरिक्त श्रम-काल के बीच उसका जिस तरह विभाजन होता है, उसमें परिवर्तन हो जायेगा। दूसरी पोर, यह बात स्पष्ट है कि जब काम के दिन की लम्बाई और श्रम-शक्ति का मूल्य पहले से मालूम होते हैं, तो अतिरिक्त बम की अवधि भी पहले से मालूम हो जाती है। श्रम- शक्ति का मूल्य, अर्थात् श्रम शक्ति के उत्पादन के लिये प्रावश्यक श्रम-काल, इस बात को निर्धारित कर देता है कि इस मूल्य के पुनरुत्पादन के लिये कितना श्रम-काल मावश्यक होगा। यदि काम का एक घण्टा ६ पेन्स में निहित हो और एक दिन की श्रम-शक्ति का मूल्य पांच शिलिंग हो, तो पूंजी ने मजदूर की भम-शक्ति के एवज में जो मूल्य दिया है, उसे पुनः पैदा करने के लिये,-या यूं कहिये कि मजदूर के लिये रोजाना जीवन-निर्वाह के जिन साधनों की भावश्यकता होती है, उनके मूल्य का सम-मूल्य पैरा करने के लिये,- उसे १० घण्टे रोजाना काम करना चाहिये। यदि जीवन-निर्वाह के इन साधनों का मूल्य पहले से मालूम हो, तो मजबूर की धम-शक्ति का मूल्य भी मालूम हो जाता है और यदि उसकी श्रम-शक्ति का मूल्य मालूम मजदूर की प्रोसत रोजाना मजदूरी का मूल्य इस बात से निर्धारित होता है कि मजदूर को “जिन्दा रहने , मेहनत करने और बच्चे पैदा करने के लिये" किन चीजों की आवश्यकता है। (Wm. Petty, "Political Anatomy of Ireland" [विलियम पेटी, 'पायरलैण्ड की राजनीतिक शरीर-रचना'], १६७२, पृ०६४।) "श्रम का दाम सदा जीवन के लिये प्रावश्यक वस्तुमों के दामों से ते होता है जब कभी श्रम करने वाले मादमी की मजदूरी उसकी छोटी हैसियत के अनुसार मजदूर के रूप में उतने बड़े परिवार के भरण-पोषण के लिये काफ़ी नहीं होती, जितना बड़ा परिवार अक्सर बहुत से मजदूरों के भाग्य में लिखा होता है," तब समझना चाहिये कि उसे उचित मजदूरी नहीं मिल रही है। (J. Vanderlint, "Morey answers all Things" [जे० वैण्डरलिण्ट, 'मुद्रा सब चीजों का जवाब है'], London, 1734, पृ०, १५।) “Le simple ouvrier, qui n'a que ses bras et son industrie, n'a rien qu'autant qu'il parvient à vendre à d'autres sa peine... En tout genre de travail il doit arriver, et il ar- rive en effet, que le salaire de l'ouvrier se borne à ce qui lui est nécessaire pour lui procurer sa subsistance." [" साधारण श्रमजीवी की सम्पत्ति केवल उसके हाथ और उसकी मेहनत होती है, मजदूर अपना श्रम दूसरों के हाथ जितनी मजदूरी के बदले में ...
पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/३५९
दिखावट