सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/३८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सहकारिता . . अपनी व्यक्तिगत शारीरिक मेहनत के सिवा लगभग पौर कुछ भी साथ लेकर नहीं पाते थे, परन्तु उनकी संख्या ही उनकी शक्ति होती थी, और इस विशाल संस्था का संचालन करने बाली ताकत ने ऐसे-ऐसे राजमहल, मंदिर, पिरामिड और अनगिनत बैत्याकार मूर्तियां खड़ी कर नीं, जिनके अवशेष प्राज भी हमें हतप्रभ और पाश्चर्यचकित कर देते हैं। इस विशाल संख्या का पेट जिस मामवनी से भरा जाता था, वह चूंकि किसी एक व्यक्ति या चन्द व्यक्तियों के हाथों में ही सीमित होती थी, इसीलिये ऐसे-ऐसे विराट निर्माण-कार्य सम्भव हो पाते थे। एशियाई तवा मिनी राजानों और एरिया के पुरोहित-राजाओं प्रादि की यह शक्ति माधुनिक समाज में पूंजीपतियों को हस्तांतरित हो गयी है, चाहे वह पूंजीपति कोई एक व्यक्ति हो और चाहे वह सम्मिलित पूंजी की कम्पनियों की तरह का कोई सामूहिक पूंजीपति हो । मानव-विकास के नवोदय के काल में शिकार से जीविका कमाने वाली नसलों में या, मान लीजिये, हिन्दुस्तानी प्राम-समुदायों की खेती में हमें जिस प्रकार की सहकारिता देखने को मिलती है, वह एक पोर तो इस बात पर आधारित थी कि उत्पादन के साधनों पर सब का सामूहिक स्वामित्व होता था, और, दूसरी पोर, वह इस तथ्य पर प्राधारित थी कि इन समाजों में व्यक्ति अपने कबीले अपवा अपने प्राम-समुदाय की नामि-नाल से अपने को काटकर अलग नहीं कर पाया था; जिस तरह शहब की मक्सी अपने छत्ते से अपना नाता नहीं तोड़ पाती, उस तरह वह भी अपने कबीले या प्राम-समुदाय से सम्बंध-विच्छेद नहीं कर पाया था। इस प्रकार की सहकारिता उपर्युक्त दोनों विशेषताओं के कारण पूंजीवादी सहकारिता से भिन्न होती है। प्राचीन काल में, मध्य युग में, और माधुनिक उपनिवेशों में इक्की पुक्की जगहों पर जिस बड़े पैमाने की सहकारिता का प्रयोग किया गया है, वह प्रभुत्व और दासत्व और मुख्यतया गुलामी के सम्बंधों पर भाषारित है। इसके विपरीत, सहकारिता का पूंजीवादी. रूप शुरू से प्राखिर तक यह मानकर चलता है कि पूंजी के हाथों अपनी श्रम-शक्ति बेचकर मजदूरी पर काम करने वाला मजदूर स्वतंत्र होता है। किन्तु इतिहास की दृष्टि से यह रूप किसानों की खेती और स्वतंत्र वस्तकारियों के विरोध में विकसित हुमा है, चाहे ये दस्तकारियां शिल्पी-संघों में संगठित हों या न हों। किसानों की खेती तथा स्वतंत्र बस्तकारियों के दृष्टिकोण . 1R. Jones, "Text-book of Lectures, etc." (भार• जोन्स, 'भाषणों की पाठ्य- पुस्तक, इत्यादि'), Hertford, 1852, पृ. ७७, ७८ । लन्दन में और योरप की अन्य राजधानियों में प्राचीन प्रसीरिया, मित्र तथा अन्य देशों के जो संग्रह मिलते हैं, उनकी मदद से हम अपनी मांखों से देख सकते हैं कि यह सहकारी श्रम किस तरह किया जाता था। 'लिंगुएत ने शायद सही बात कही थी, जब उन्होंने अपनी रचना "Theorie des Lois Civiles" में यह घोषणा की थी कि शिकार करना सहकारिता का पहला रूप था और इनसान का शिकार (युद्ध) शिकार का एक सबसे प्राचीन रूप था। 'छोटे पैमाने की किसानों की खेती और स्वतंत्र दस्तकारियां, ये दोनों मिलकर उत्पादन की सामन्ती प्रणाली का प्राधार बनाती हैं, और सामन्ती व्यवस्था के भंग हो जाने के बाद ये पूंजीवादी प्रणाली के साथ-साथ पायी जाती है। इसके अलावा, वे प्राचीन संसार के समुदायों के सर्वोत्तम काल में उनका भी पार्थिक प्राधार बनी हुई थीं। यह वह काल था, जब भूमि पर सामूहिक स्वामित्व का प्रादिम प नष्ट हो गया था, पर उत्पादन में अभी गुलामी की प्रया का पूरा दौर-दौरा कायम नहीं हुमा था।