३८६ पूंजीवादी उत्पादन . m सोचकर रखना पड़ता है, और वह इतना ज्यादा बड़ा हो जाता है कि कपड़ा बुनने वाले की झोपड़ी में समा नहीं पाता और इस कारण बुनकर को बाहर खुले में अपना पंधा करना पड़ता है, जहां मौसम की हर तबदीली उसके काम में बाधा बनती है। मकड़ी की तरह हिन्न को भी यह वक्षता केवल उस विशेष नैपुण्य से प्राप्त होती है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी संचित होता है और बाप से बेटे को मिलता जाता है। और फिर भी इस प्रकार के हिन्न बुनकर का काम हस्तनिर्माण करने वाले मजदूर की तुलना में बहुत पेचीदा ढंग का काम होता है। जो कारीगर एक तैयार चीन के उत्पादन के लिये प्रावश्यक विविध प्रकार की तमाम माशिक क्रियामों को बारी-बारी से करता है, उसे कभी अपनी जगह बदलनी पड़ती है और कभी अपने प्रोबार बदलने पड़ते हैं। एक क्रिया को छोड़कर दूसरी क्रिया प्रारम्भ करने में उसके भम का प्रवाह बीच में एक जाता है और उसके काम के दिन में मानों कुछ बरारें पैदा हो जाती है। जैसे ही वह कारीगर पूरे दिन के लिये एक ही क्रिया से बांध दिया जाता है, वैसे ही ये बरारें भर जाती है। जिस अनुपात में उसके काम में होने वाले परिवर्तन कम होते जाते है, उसी अनुपात में ये बरारें गायब होती जाती हैं। उसके फलस्वरूप उत्पादक शक्ति में जो वृद्धि होती है, उसका या तो यह कारण होता है कि एक निश्चित समय में पहले से ज्यादा बम- शक्ति खर्च होने लगती है, अर्थात् श्रम की तीव्रता बढ़ जाती है,-पौर या उसकी यह वजह होती है कि अनुत्पादक ढंग से खर्च होने वाली मम-शक्ति की मात्रा कम हो जाती है। विभामा- वस्था से गति में परिवर्तन होने पर हर बार शक्ति का जो अतिरिक्त व्यय होता है, उसे एक बार सामान्य वेग प्राप्त हो जाने के बाद श्रम की अवधि को लम्बा खींचकर पूरा कर लिया जाता है। दूसरी पोर, बराबर एक ही डंग का अम करते रहने से मनुष्य की तबीयत के जोश की तेजी और प्रवाह में कमी ना जाती है, जब कि, दूसरी पोर, महब काम की तबदीली से ही उसमें ताजगी मा जाती है और उसे पानन्द प्राप्त होने लगता है। मम की उत्पादकता न केवल मजदूर की निपुणता पर, बल्कि उसके पोखारों की श्रेष्ठता पर भी निर्भर करती है। एक ही तरह के प्राचार,-जैसे चाकू, परमे, गिमलेट, होड़े प्रादि- अलग-अलग तरह की क्रियाओं में इस्तेमाल किये जा सकते हैं। और एक ही पिया में उसी पौवार से कई तरह के काम लिये जा सकते हैं। लेकिन जैसे ही किसी श्रम-क्रिया की विभिन्न उप- क्रियाएं एक दूसरे से अलग कर दी जाती हैं और हर प्रांशिक उप-क्रिया तफसीली काम करने बाले के हाथ में एक उपयुक्त एवं विशिष्ट रूप प्राप्त कर लेती है, वैसे ही उन प्रोवारों में, जिनसे पहले एक से अधिक तरह के काम लिये जाते थे, कुछ परिवर्तन करने बरी होगाते हैं। ये परिवर्तन किस दिशा में होंगे, यह प्राचार के अपरिवर्तित रूप से पैदा होने वाली कठिनाइयों द्वारा निर्धारित होता है। हस्तनिर्माण की यह एक खास विशेषता है कि उसमें धम के प्राचारों में भेवकरण हो जाता है, ऐसा भेवकरण, जिससे एक बास डंग के प्रोबार कुछ . 1 1 "Historical and Descriptive Account of British India, etc.", by Hugh Murray, James Wilson, etc., Edinburgh, 1832 ('fofeu fergkia graeifur पौर वर्णनात्मक विवरण, इत्यादि', ह.यूह मरे और जेम्स विल्सन इत्यादि द्वारा लिखित, एडिनबरा, १८३२), बण्ड २, पृ. ४६। हिन्दुस्तानी करषा सीधा बड़ा होता है, यानी ताना ऊध्वाधर दिशा में खिंचा रहता है। -
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