पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/३९०

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श्रम का विभाजन पौर हस्तनिर्माण ३८७ . निश्चित ढंग की शक्लें हासिल कर लेते हैं, जिनमें से हरेक शक्ल एक विशिष्ट प्रयोजन के अनुरूप होती है। हस्तनिर्माण को यह भी एक खास विशेषता है कि उसमें इन पौनारों का विशिष्टीकरण हो जाता है, जिससे हर खास प्राचार केवल एक खास तरह का तफ़सीली काम करने वाले मजबूर के हाथों में ही पूरी तरह इस्तेमाल हो सकता है। अकेले बिर्मिघम में ५०० प्रकार के हथौड़े तैयार होते हैं, और न सिर्फ उनमें से हरेक किसी विशेष प्रक्रिया में काम पाने के लिये बनाया जाता है, बल्कि अक्सर कई प्रकार के हथौड़े एक ही प्रक्रिया की केवल कई अलग- अलग उपक्रियामों में काम पाते हैं। हस्तनिर्माण का काल श्रम के पौधारों को तफसीली काम करने वाले प्रत्येक मजदूर के विशिष्ट कार्य के अनुरूप ढालकर उन्हें सरल बना देता है, उनमें सुधार करता है और उनकी संख्या को बढ़ा देता है। इस प्रकार हस्तनिर्माण साथ ही मशीनों के अस्तित्व के लिये प्रावश्यक एक भौतिक परिस्थिति को भी तैयार कर देता है, क्योंकि मशीनें सरल प्रौजारों का ही योग होती हैं। तफसीली काम करने वाला मखदूर और उसके प्रौखार हस्तनिर्माण के सरलतम तत्व हैं। माइये, अब हम हस्तनिर्माण के सम्पूर्ण रूप पर विचार करें। 1 अनुभाग ३ - हस्तनिर्माण के दो बुनियादी रूप : विविध हस्तनिर्माण और क्रमिक हस्तनिर्माण हस्तनिर्माण के संगठन के दो बुनियादी कम होते हैं, जो कभी-कभी एक दूसरे में मिल जाने के बावजूद मूलतया अलग-अलग ढंग के रहते हैं। इतना ही नहीं, वे बाद को हस्तनिर्माण के मशीनों से चलने वाले प्रानिक उद्योगों में स्पान्तरित हो जाने की क्रिया में वो बिल्कुल विशिष्ट भूमिकाएं प्रदा करते हैं। यह बोहरा स्वरूप उत्पादित वस्तु के रूप से उत्पन्न होता है। यह वस्तु या तो स्वतंत्र रूप से तैयार की गयी कुछ मांशिक पैदावारों को महज यांत्रिक ढंग से जोड़ देने का नतीजा होती है और या उसका सम्पूरित रूप अनेक सम्बद्ध क्रियाओं और वन- प्रयोगों के एक कम का फल होता है। उदाहरण के लिये, रेल के इंजन में ५,००० से अधिक स्वतंत्र पुर्वे होते हैं। परन्तु उसको प्रथम प्रकार के वास्तविक हस्तनिर्माण का उदाहरण नहीं माना जा सकता, क्योंकि वह माधुनिक डार्विन ने जातियों की उत्पत्ति सम्बंधी अपनी युगान्तरकारी रचना में पौधों और पशुओं की प्राकृतिक इन्द्रियों की चर्चा करते हुए कहा है : "जब तक एक ही इन्द्रिय को कई प्रकार के काम करने पड़ते हैं , तब तक उसकी परिवर्तनशीलता का एक माधार सम्भवतया इस बात में मिल सकता है कि केवल एक खास उद्देश्य के लिये काम पाने वाली इन्द्रिया की तुलना में इस स्थिति में प्राकृतिक वरण हर छोटे रूप-परिवर्तन को सुरक्षित रखने या दबा देने में कम एहतियात बरतता है। चुनांचे, जिन चाकुओं से विभिन्न प्रकार की सभी चीजें काटी जा सकती है, वे मोटे तौर पर एक ही शकल के हो सकते हैं, पर जो प्रौजार केवल एक ही तरह के काम में भा सकता है, उसके हर अलग-अलग ढंग के इस्तेमाल के लिये उसकी एक अलग Pranet TETET TE ETET I" (Charles Darwin, "The Origin of Species, etc.", London, 1859, q • 988) - 25*