श्रम का विभाजन और हस्तनिर्माण ३९७ सीधे तौर पर उतना ही बढ़ जाता है। कारण कि हर वह चीज, बो भम-शक्ति के पुनरुत्पादन के लिये पावश्यक श्रम-काल को छोटा कर देती है, वह अतिरिक्त श्रम के क्षेत्र को विस्तृत कर देती है। अनुभाग ४- हस्तनिर्माण में श्रम-विभाजन और समाज में श्रम-विभाजन हमने पहले हस्तनिर्माण की उत्पत्ति पर विचार किया, फिर उसके सरल तत्वों पर- तफ़सीली काम करने वाले मजदूर तथा उसके पौधारों पर-और अन्त में इस यंत्र के सम्पूर्ण स्वल्प पर। अब हम घोड़ा इस विषय पर विचार करेंगे कि हस्तनिर्माण में पाये जाने वाले मम-विभाजन और उस सामाजिक अम-विभाजन के बीच क्या सम्बंध है, जो मालों की सभी प्रकार की उत्पादन-व्यवस्थाओं का प्राधार होता है। यदि हम केवल बम की मोर ही ध्यान दें, तो जब सामाजिक उत्पादन को उसके मुख्य भागों में, अथवा प्रजातियों में, जैसे कि खेती, उद्योगों मावि में बांट दिया जाता है, तब हम उसे सामान्य श्रम-विभाजन कह सकते हैं। और जब ये प्रजातियां जातियों तथा उप-जातियों में बांट दी जाती हैं, तब हम उसे विशिष्ट भम-विभाजन कह सकते हैं। और वर्कशाप के भीतर जो श्रम-विभाजन होता है, उसे हम व्यष्टिगत या तफसीली श्रम-विभाजन कह सकते हैं।' . .. 111 . श्रम-विभाजन अत्यधिक भिन्न प्रकार के धंधों को अलग करने के रूप में प्रारम्भ होता है और उस विभाजन तक बढ़ता चला जाता है, जिसमें कई मजदूर एक ही पैदावार की तैयारी के काम को आपस में बांट लेते हैं, जैसा कि हस्तनिर्माण में होता है।" (Storch, "Cours d Econ., Pol.", पेरिस संस्करण, ग्रंथ १, पृ० १७३ ।) "Nous rencontrons chez les peuples parvenus à un certain degré de civilisation trois genres de divisions d'industrie: la première, que nous nommerons générale, amène la distinction des producteurs en agriculteurs, manufacturiers et commerçants, elle se rap- porte aux trois principales branches d'industrie nationale; la seconde, qu'on pourrait appeler spéciale, est la division de chaque genre d'industrie en espèces ... la troisième division d'industrie, celle enfin qu'on devrait qualifier de division de la besogne ou de travail proprement dit, est celle qui s'établit dans les arts et les métiers séparés ... qui s'établit dans la plupart des manu- factures et des atellers." ["जो कौमें सभ्यता की एक खास मंजिल तक पहुंच गयी है , उनके यहां हमें श्रम का तीन प्रकार का विभाजन मिलता है। पहला वह , जिसे हम सामान्य विभाजन कहेंगे और जिसमें खेती, उद्योग और व्यापार सम्बन्धी उत्पादकों के बीच भेद किया जाता है, जो कि राष्ट्रीय उत्पादन की तीन प्रमुख शाखायें हैं। दूसरा वह, जिसे विशिष्ट विभाजन कहा जा सकता है और जिसमें प्रत्येक प्रकार का श्रम अपनी जातियों में बांट दिया जाता है ... और, अन्त में, श्रम का तीसरा विभाजन वह , जिसे सचमुच धंधों का अथवा कामों का विभाजन कहा जा सकता है और जो विभाजन अलग-अलग कलाओं या घंधों के भीतर होता है... तथा जो अधिकतर हस्तनिर्माणशालामों और वर्कशापों के भीतर पाया जाता है।"] (Skarbeck, उप० पु०, पृ. ६४, ८५1) . - .
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