३९८ पूंजीवादी उत्पादन . . समाज में जो भम-विभाजन होता है और उसके अनुरूप अलग-अलग व्यक्ति जिस प्रकार एक खास पंधे से बंध जाते हैं, वह ठीक हस्तनिर्माण की तरह दो विरोधी प्रस्थान-बिनुमों से विकसित होता है। परिवार के भीतर'-और कुछ और विकास होने के बाद कबीले के भीतर- लिंग और मायु के भेवों के कारण एक प्रकार का श्रम-विभाजन स्वाभाविक ढंग से पैदा हो जाता है, और इसलिए यह भम-विभाजन विशुद्ध बेहव्यापारिक कारणों पर प्राधारित होता है। समुदाय का विस्तार होने , पावादी के बढ़ने पर खास तौर से विभिन्न कबीलों के बीच झगड़े होने तथा एक कबीले के दूसरे कबीले के द्वारा जीत लिये जाने पर इस विभाजन की सामग्री भी बढ़ जाती है। दूसरी मोर, जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूं, जहां-वहां विभिन्न परिवार, कबीले तवा समुराय एकमूसरे के सम्पर्क में पाते हैं, उन बिंदुओं पर पैदावारों का विनिमय भारम्भ हो जाता है। कारण कि सम्यता के प्रारम्भ में अलग-अलग व्यक्ति नहीं, बल्कि परिवार, कबीले प्रावि स्वतंत्र हैसियत के साथ एक दूसरे से मिलते थे। अलग-अलग समुदायों को अपने प्राकृतिक वातावरण में अलग-अलग प्रकार के उत्पादन के और जीविका के साधन मिलते हैं। इसलिए उनकी उत्पादन की प्रणालियां, रहन-सहन की प्रणालियां और उनकी पैदावार भी अलग-अलग ढंग की होती हैं। जब विभिन्न समुदायों का एक दूसरे से सम्पर्क कायम होता है, तब इस स्वयंस्फूर्त ढंग से विकसित भेद के कारण ही उनके बीच पैदावारों का पारस्परिक विनिमय होने लगता है और तब पैदावार की ये बस्तुएं धीरे-धीरे मालों में बदल जाती हैं। विनिमय बुर उत्पादन के विभिन्न क्षेत्रों के बीच कोई भेद पैदा नहीं करता, बल्कि जो भेव पहले से मौजूद होते हैं, वह उनके बीच बस एक सम्बंध स्थापित कर देता है और इस तरह उनको एक परिवर्तित समाज के सामूहिक उत्पादन की न्यूनाषिक अन्योन्यापित शाखामों में बदल देता है। परिवर्तित समान में सामाजिक श्रम-विभाजन उत्पावन के उन अलग-अलग क्षेत्रों के बीच होने वाले विनिमय से पैदा होता है, जो मूलतया एक दूसरे से पृषक और स्वतंत्र होते हैं। परन्तु परिवार या कबीले में, जहाँ प्रस्थान-बिंदु देहव्यापारीय श्रम- विभाजन है, प्रधानतया दूसरे समुदायों के साथ मालों का विनिमय होने के कारण एक गंठी हुई इकाई की विशिष्ट इनियां ढीली पड़ जाती है, दूटकर अलग हो जाती है और अन्त में एक दूसरे से इतनी पृषक हो जाती हैं कि विभिन्न प्रकार के कामों के बीच केवल मालों के म में उनकी पैदावारों के विनिमय का ही एकमात्र नाता रह जाता है। एक जगह बो पहले स्वावलम्बी पा, उसे प्रवलम्बी बना दिया जाता है। दूसरी जगह को पहले प्रवलम्बी पा, उसे स्वावलम्बी कर दिया जाता है। ऐसे प्रत्येक बम-विभाजन का प्राधार, जो अच्छी तरह विकसित हो चुका है और वो मालों के विनिमय के कारण अस्तित्व में पाया है, शहर और देहात का मलगाव होता . . . तीसरे संस्करण का कुटनोट : बाद को मनुष्य की प्रादिम-कालीन अवस्था का बहुत गहरा अध्ययन करने के बाद लेखक इस नतीजे पर पहुंचा कि असल में परिवार ने विकसित होकर कबीले का रूप नहीं धारण किया था, बल्कि, इसके विपरीत, कबीला ही मानव-समुदाय का आदिम एवं स्वयंस्फूर्त ढंग से विकसित रूप था, जिसका प्राधार रक्त-सम्बंध था, कबीले के सूत्र पहले-पहल ढीले पड़ने शुरू हुए, तब उसी में से परिवार के विविध प्रकार के भनेक रूप निकले थे।-के. ए. और जब
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