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पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/४०७

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४०४ पूंजीवादी उत्पादन हिन्दुस्तान के ये छोटे-छोटे तथा अत्यन्त प्राचीन पाम समुदाय, जिनमें से कुछ पान तक कायम है, समीन पर सामूहिक स्वामित्व, लेती तवा बस्तकारी के मिलाप और एक ऐसे भम- विभाजन पर प्राधारित है, जो कभी नहीं बदलता, और जो अब कभी एक नया प्राम-समुदाय प्रारम्भ किया जाता है, तो पहले से बनी बनायी और तैयार योजना के रूप में काम में माता है। सौ से लेकर कई हबार एकड़ तक के रकबे में फैले हुए इन प्राम-समुदायों में से प्रत्येक एक गठी हुई इकाई होता है, जो अपनी बहरत की सभी पीयें पैरा कर लेती है। पैदावार का मुख्य भाग सीधे तौर पर समुदाय के ही उपयोग में प्राता है, और वह माल का रूप पारण नहीं करता। इसलिए यहां पर उत्पादन उस भम-विभाजन से स्वतंत्र होता है, जो मालों के विनिमय ने मोटे तौर पर पूरे हिन्दुस्तानी समाज में चालू कर दिया है। केवल अतिरिक्त पैदावार ही माल बनती है, और यहां तक कि उसका भी एक हिस्सा उस वक्त तक माल नहीं बनता, जब तक कि वह राज्य के हाथों में नहीं पहुंच जाता। अत्यन्त प्राचीन काल से ही यह रीति चली आ रही है कि इस पैदावार का एक निश्चित भाग सदा जिन्स की शकल में दिये जाने वाले लगान के तौर पर राज्य के पास पहुंच जाता है। हिन्दुस्तान के अलग-अलग हिस्सों में इन समुदायों का विधान अलग-अलग ढंग का है। जिनका सबसे सरल विधान है, उन समुदायों में जमीन को सब मिलकर बोतते हैं और पैदावार सदस्यों के बीच बांट ली जाती है। इसके साथ-साथ हर कुटुम्ब में सहायक पंषों के रूप में कताई और बुनाई होती हैं। इस प्रकार, उन माम लोगों के साथ-साथ, जो सदा एक ही प्रकार के काम में लगे रहते हैं, एक "मुलिया" होता है, जो जज, पुलिस और बसूलदार का काम एक साथ करता है। एक पटवारी होता है, जो खेती-बारी का हिसाब रखता है और उसके बारे में हर बात अपने कागजों में वर्ष करता जाता है। एक और कर्मचारी होता है, जो अपराधियों पर मुकदमा चलाता है, अजनबी मुसाफिरों की हिफाजत करता है और उनको अगले गांव तक सकुशल पहुंचा पाता है। पहरेदार होता है, जो पड़ोस के समुदायों से सरहद की रक्षा करता है; भावपाशी का हाकिम होता. है, गो सिंचाई के लिये पंचायती तालाबों से पानी बांटता है। ब्राह्मण होता है, वो पार्मिक अनुष्ठान कराता है; पाठशाला का पंडित होता है, जो बच्चों को बालू पर लिखना-पढ़ना सिखाता है। पंचांग वाला ब्राह्मण या ज्योतिषी होता है, जो बोवाई और कटाई और खेत के अन्य हर काम के लिये मुहूरत विचारता है। एक लोहार और एक बई होते हैं, जो खेती के तमाम पौवार बनाते हैं और उनकी मरम्मत करते हैं। कुम्हार होता है, जो सारे गांव के लिये वर्तन-भारे तयार करता है ; नाई होता है। धोबी होता है, वो कपड़े धोता है। सुनार . développe dans l'intérieur de l'atelier, et plus elle y est soumise á l'autorité d'un seul. Ainsi l'autorité dans l'atelier et celle dans la société, par rapport á la division du travail, sont en raison inverse l'une de l'autre." [" ya Elimu नियम के रूप में... हम यह कह सकते हैं कि समाज के भीतर पाये जाने वाले श्रम-विभाजन में प्राधिकार का प्रभुत्व जितना कम होता है, वर्कशाप में श्रम-विभाजन उतना ही अधिक विकसित हो जाता है और वह उतना ही एक अकेले व्यक्ति के प्राधिकार धीन बन जाता है। इस प्रकार, जहां तक श्रम-विभाजन का सम्बंध है, वर्कशाप में प्राधिकार और समाज में प्राधिकार एक दूसरे के प्रतिलोम अनुपात में होते हैं।"] (Karl Marx, “Misere, &c." [कार्ल मार्क्स, 'दर्शन की दरिद्रता'], Paris, 1847, पृ० १३०-१३१।) .