४०६ पूंजीवादी उत्पादन कर बेते , और इस तरह ये नियम उस्तार को पूंजीपति नहीं बनने देते थे। इसके अलावा, वह जिस पंधे का उस्ताद होता था, उसके सिवा किसी और बस्तकारी का काम वह अपने कारीगरों से नहीं करा सकता था। स्वतंत्र पूंजी का केवल एक ही रूप पा, जिसके सम्पर्क में ये शिल्पी संघ पाते थे। वह पा सौवागरों की पूंजी का प। पर उसके प्रत्येक पतिकमन को शिल्पी संघों के पोरवार प्रतिरोष का मुकाबला करना पड़ता पा। सौदागर हर प्रकार का माल खरीद सकता था, परन्तु मम को माल के रूप में वह नहीं खरीद सकता था। वह पति बस्तकारियों की पैराबार के व्यापारी के रूप में विन्दा पा, तो केवल इसीलिये कि शिल्पी संघों को उसके अस्तित्व पर कोई मापत्ति नहीं की। यदि परिस्थितियों के कारण मम का और विभाजन करना बरी हो जाता था, तो पहले से मौजूद शिल्पी संघ उपसंघों में बंट जाते बे या पुराने संघों के साब-साप नवे संघों की स्थापना कर दी जाती थी। यह सब होता था, मगर किसी एक वर्कशाप में तरह-तरह की अनेक वस्तकारियां केन्द्रीभूत नहीं हो पाती थीं। इसलिये, शिल्पी संघों के संगठन ने बस्तकारियों को एक दूसरे से अलग और पृषक करके तवा उनका विकास करके हस्तनिमा के अस्तित्व के लिये प्रावश्यक भौतिक परिस्थितियों को तैयार करने में चाहे जितनी सहायता की हो, पर उसके अन्तर्गत वर्कशाप के भीतर प्रम-विभाजन कभी नहीं हो सकता था। सामान्यतः मयूर अपने उत्पादन के साधनों के साथ घनिष्ठ स्म से पता रहता था, मैले घोषा अपने सोल से पड़ा रहता है, और, इस प्रकार, हस्तनिर्माण मुल्य मापार का प्रभाव पा, पानी मजदूर अपने उत्पादन के सापनों से अलग नहीं हुमा वा और ये सापन पूंजी में परिवर्तित नहीं हुए। मोटे तौर पर समान में भम-विभावन का होना-चाहे वह मालों के विनिमय का फल हो या न हो -समान की प्रत्यन्त मिल प्रकार की मार्षिक व्यवस्थामों की एक समान विशेषता है। परन्तु वर्कशाप का भम-विभावन, पैसा कि हस्तनिर्माण में होता है, केवल उत्पादन की पूंजीवादी प्रणाली की ही एक विशिष्ट पैदावार है। . अनुभाग हस्तनिर्माण का पूंजीवादी स्वरूप बड़ी संख्या में मजदूरों का एक पूंजीपति के नियंत्रण में काम करना जिस तरह से बात तौर पर हस्तनिर्माण का, उसी तरह से बह पाम तौर पर सभी प्रकार की सहकारिता का भी स्वाभाविक प्रस्थान-विंदु होता है। परन्तु हस्तनिर्माण में मन-विभाजन मजदूरों की संख्या की इस वृद्धि को एक प्राविधिक पावश्यकता बना देता है। यहां पर पहले से स्थापित भम-विभाजन ने ही यह से कर रहा है कि किसी पूंजीपति के लिये कम से कम कितने मारों को नौकर रखना बरी है। दूसरी मोर, और अधिक प्रम-विमावन से केवल उसी समय नाम उनमा वा सकता है, अब मजदूरों की संख्या में और वृद्धि कर दी जाये, और यह केवल इसी तरह हो सकता है कि हम तासीनी काम करने वाले विभिन्न दलों के जजों को बोरते बायें। परन्तु बब व्यवसाय में लगी हुई पूंजी के अस्थिर भाग में वृद्धि होती है, तो उसके भाग में-वर्कशापों, पौधारों पावि में और बास कर को माल में-भी पति करता भाषायक हो जाता है। कच्चे माल की मांग मजदूरों की संख्या की तुलना में कहीं अधिक तेजी से बढ़ती है। एक निश्चित समय में बम की एक निश्चित मात्रा कितने कच्चे माल -
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