श्रम का विभाजन पौर हस्तनिर्माण ४०७ . उपयोग करेगी, इसकी मात्रा उसी अनुपात में बढ़ती है, जिस अनुपात में मम के विभाजन के फलस्वरूप मम की उत्पादक शक्ति बढ़ जाती है। इसलिये, स्वर्ष हस्तनिर्माण के स्वरूप के मापार पर यह नियम बन जाता है कि प्रत्येक पूंजीपति के पास कम से कम जितनी पूंची होना पावश्यक होता है, उसकी मात्रा सबा बढ़ती जानी चाहिये। दूसरे शब्दों में, उत्पादन और जीवन-निर्वाह के सामाजिक साधनों का पूंजी में अधिकाधिक विस्तृत पैमाने पर पान्तरण होना , चाहिये। . सरल सहकारिता की तरह हस्तनिर्माण में भी सामूहिक कार्यकारी संघटन पूंची के अस्तित्व का एक प होता है। तफसीली काम करने वाले अनेक मजदूरों से मिलकर जो यंत्र बनता है, वह पूंजीपति की सम्पत्ति होता है। इसलिये मजदूरों के योग से बो उत्पादक शक्ति पैदा होती है, वह पूंजी की उत्पादक शक्ति प्रतीत होती है। सही पर्व में हस्तनिर्माण न केवल भूतपूर्व स्वतन्त्र मजदूरों को पूंजी के अनुशासन तथा समावेश के प्राचीन बना देता है, बल्कि खुब मजदूरों में भी एक भेषी-कम पैदा कर देता है। सरल सहकारिता व्यक्ति की कार्य-प्रणाली में प्रायः कोई बास परिवर्तन नहीं करती। पर हस्तनिर्माण उसमें एक पूरी क्रान्ति पैदा कर बेता है और श्रम-शक्ति की जड़ों तक पहुंच जाता है। वह मजदूर की एक तफसीली क्षमता का विकास करने के लिये उसकी अन्य समस्त क्षमतामों पर नैसर्गिक भावनामों को नष्ट करके उसे उसी तरह एक सुं-मुंब, मुरूम प्राणी में बदल देता है, जिस तरह ला प्लाता के राज्यों में एक साल या थोड़ी सी पी के लिये लोग एक पूरे जानवर को मार गलते हैं। न सिर्फ तफसीली काम अलग-अलग व्यक्तियों में बांट दिया जाता है, बल्कि खुद व्यक्ति को भी एक मांशिक जिया की स्वचालित मोटर बना दिया जाता है, और इस प्रकार मेनेनियस एपिप्पा की वह बेतुकी उपकवा भी चरितार्थ हो जाती है, जिसमें मनुष्य को उसके शरीर का एक अंश 'इतना काफ़ी नहीं है कि दस्तकारियों के उप-विभाजन के लिये आवश्यक पूंजी" (लेखक को यहां असल में "जीवन-निर्वाह के तथा उत्पादन के भावश्यक साधन" कहना चाहिये था) 'समाज में पहले से तैयार हो। इसके साथ-साथ यह भी पावश्यक है कि यह पूंजी मालिकों के पास इतनी मात्रा में संचित हो जाये, जो उनके लिये अपनी कार्रवाइयों को बड़े पैमाने परकरने के लिये काफ़ी हो... विभाजन जितना बढ़ता जाता है, मजदूरों की एक निश्चित संख्या को बराबर काम देते रहने के लिये यह उतना ही जरूरी होता जाता है कि प्रौजारों, कच्चे माल मादि के रूप में पहले से अधिक पूंजी लगायी जाये।" (Storch, “Cours Economie Politique", पेरिस-संस्करण, ग्रंथ १, पृ. २५० , २५११) "La concentration des instru- ments de production et la division du travail sont aussi inséparables l'une de l'autre que le sont, dans le régime politique, la concentration des pouvoirs publics et la division des interets prives." ["राजनीतिक जीवन के क्षेत्र में सार्वजनिक शक्ति के केन्द्रीकरण और निजी हितों के विभाजन में जैसा अविच्छिन्न सम्बंध है, उत्पादन के पौधारों के केन्द्रीकरण और श्रम के विभाजन के बीच उससे कम अविच्छिन्न सम्बंध नहीं है।"] (Karl Marx, उप. पु., पृ. १३४१) 'दूगल स्टीवर्ट ने हस्तनिर्माण करने वाले मजदूरों को "living automatons... em- ployed in the details of the work" ("तफसीली ढंग के कामों में लगी हुई... पीवित स्वसंचालित मशीनें") कहा है। (उप० पु., पृ० ३१८1)
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