पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/४१

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भूमिका . . . . को कोई उजरत नहीं मिलती. (और जिसे मार्स ने अतिरिक्त पैदावार का नाम दिया है), उसकी सम्पूर्ण प्रमण्डता में कमी विचार नहीं किया। इसलिये वह न तो कभी उसकी उत्पत्ति के रहस्य तथा उसके स्वरूप को साफ-साफ समझ पाया और न ही उन नियमों को, जिनके अनुसार बाद को इस हिस्से के मूल्य का वितरण होता है। इसी प्रकार, खेती और दस्तकारी को छोड़कर बाकी सारे उद्योग-पंचों को, बिना किसी भेद-भाव के हस्तनिर्माण शब में शामिल कर लिया जाता है और इस तरह पार्षिक इतिहास के दो बड़े और बुनियादी तौर पर भिन्न युगों का सारा अन्तर बातम कर दिया जाता है। ये वो काल हैं: एक तो बास हस्तनिर्माण का काल, जो हाथ के श्रम के विभाजन पर पाषारित था, और दूसरा प्राधुनिक उद्योगों का काल, जो मशीनों पर भाषारित है। इसलिये जाहिर है कि जो सिद्धान्त माधुनिक पूंजीवादी उत्पादन को मनुष्य-जाति के प्रार्षिक इतिहास की एक प्रस्थायी अवस्था मात्र समझता है, उसका काम उन पारिभाषिक शब्दों से नहीं चल सकता, जिनको वे लेखक इस्तेमाल करने के भावी है, जो उत्पादन के इस रूप को अजर-अमर और अन्तिम समझते हैं। दूसरी रचनामों के अंश उद्धृत करने का लेखक ने जो उंग अपनाया है, वो शब उसके बारे में कह देना अनुचित न होगा। जैसा कि साधारण चलन है, अधिकतर स्थानों पर उतरण मूल पाठ में दी गयी स्थापनामों के समर्थन में लिलित साक्य प्रस्तुत करने का काम करते हैं। लेकिन अनेक ऐसे स्थान भी है, जहां प्रशास्त्र के लेखकों के उबरण यह इंगित करने के लिये दिये गये है कि कोई स्थापना सबसे पहले किसने, कहां और कब स्पष्ट रूप में की थी। ऐसे उबरण उन स्थानों में दिये गये हैं, वहां उड़त स्थापना इसलिये महत्त्व रखती है कि वह अपने काल की सामाजिक उत्पादन एवं विनिमय की परिस्थितियों को कमोवेश पर्याप्त रूप में व्यक्त करती थी। मार्स उस स्थापना को ग्राम तौर पर सही समझते थे या नहीं, इसका उसे उबूत करने के सिलसिले में कोई महत्व नहीं है। इस तरह, इन उखरगों के रूप में मूल पाठ के साथ-साथ विज्ञान के इतिहास से ली गयी एक धारावाहिक टीका भी मिल जाती है। हमारे इस अनुवाद में इस पंप का केवल प्रथम बन ही पाया है। लेकिन यह प्रथम सण बहुत अंश तक अपने में सम्पूर्ण है और बीस साल से एक स्वतंत्र रचना माना जाता था। द्वितीय सम मैंने जर्मन भाषा में सम्पादित करके १८८५ में प्रकाशित किया था, लेकिन यह निश्चय ही तृतीय सण के बिना अपूर्ण है, और तृतीय सण १८८७ के खत्म होने के पहले प्रकाशित नहीं हो सकता। जब तृतीय सण मूल जर्मन में प्रकाशित हो जायेगा, तब इन दोनों सदों का अंग्रेजी संस्करण तैयार करने की बात सोचने का समय मायेगा। योरप में "Das Kapital" को अक्सर "मजदूर-वर्ग की बाइबिल" कहा जाता है। जिसे मजदूर-पान्दोलन की जानकारी है, वह इस बात से इनकार नहीं करेगा कि यह पुस्तक जिन निष्कर्षों पर पहुंची है, वे न केवल जर्मनी और स्वीटवरलैग में, बल्कि फ्रांस, हाल, बेल्जियम, अमरीका में और यहां तक कि इटली और स्पेन में भी दिन प्रति दिन अधिकाधिक स्पष्ट रूप में इस महान मान्दोलन के बुनियादी सिद्धान्त बनते जा रहे हैं और हर जगह मजदूर- वर्ग में इस बात की अधिकाषिक समान पैदा होती जा रही है कि उसकी हालत तथा उसकी माशाएं-पाकालाएं सबसे अधिक पर्याप्त रूप में इस पुस्तक के निष्कर्षों में व्यक्त हुई है। और इंगलैग में भी मास के सिद्धान्त इस समय भी उस समाजवादी पान्दोलन पर सशक्त प्रभाव गन रहे हैं, जो "सुसंस्कृत" लोगों में मजदूरवर्ग से कम तेजी से नहीं फैल रहा है। लेकिन बात इतनी ही नहीं है। वह समय तेजी से नजदीक पा रहा है, जब इंगलेश की -