पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/४२०

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श्रम का विभाजन और हस्तनिर्माण ४१७ . . « 11 " " में अनुशासन के प्रभाव की शिकायत सुनते रहते हैं। और इस विषय में यदि हमारे पास तत्कालीन लेखकों की रचनामों का प्रमाण न भी होता, तो भी इस प्रकार के साधारण तव्य से ही कि १६ वीं शताबी और माधुनिक उद्योग के युग के बीच के काल में पूंनी कमी हस्तनिर्माण करने वाले मजदूरों के समस्त प्राप्य अम-काल की मालिक नहीं बन पायी, या इससे कि हस्तनिर्माण प्रायः अल्पजीवी होते थे और एक देश से दूसरे देश को पाते-जाते रहने वाले मजदूरों के साफ-साथ अपना स्थान बदलते रहते थे, इस विषय पर काफ्री प्रकाश पड़ जाता है। "Essay on Trade and Commerce" ('व्यापार और वाणिज्य पर निबंध') के उस लेखक ने, जिसे हम कई बार उद्धृत कर चुके हैं, १७७० में घोषणा की: 'व्यवस्था किसी न किसी तरह कायम करनी ही पड़ेगी।" इसके ६६ वर्ष बाद ग. एम.यू उरे मानो उसके शवों को दोहराते हुए फिर मांग करते हैं: "व्यवस्था होनी चाहिये। उनके शब्दों में, "भम-विभाजन की पंडिताऊ रूढ़ि पर प्राधारित" हस्तनिर्माण में व्यवस्था का प्रभाव पा, और "व्यवस्था मार्फराइट ने पैदा की है।' इसके साथ-साथ हस्तनिर्माण या तो समाज के उत्पादन पर पूरी तरह अधिकार करने में असमर्थ रहता था और या वह इस उत्पादन की अन्तरात्मा में क्रान्ति नहीं पैदा कर पाता था। वह शहर की बस्तकारियों और देहात के घरेलू उद्योगों की विशाल नींव पर एक प्रार्षिक कलाकृति के रूप में सिर उठाये हुए बड़ा था। जब उसके विकास की एक खास मंखिल पायी, तो वह संकुचित प्राविधिक मापार, जिसपर हस्तनिर्माण टिका हुमा था, उत्पादन की उन पावश्यकताओं से टकराने लगा, जिनको स्वयं उसी ने जन्म दिया था। हस्तनिर्माण की एक सबसे अधिक परिष्कत सृष्टि बह वर्कशाप दी, जिस में खुद मम के पौवारों का उत्पादन होता था और जिसमें खास तौर पर वे पेचीदा यांत्रिक उपकरण तैयार किये जाते थे, वो उस समय तक उत्पादन में इस्तेमाल होने लगे थे। उरे ने कहा है कि "ऐसी वर्कशाप बहुसंख्यक सोपानों सहित श्रम-विभाजन का परिचय देती थी। रेती, बरमा, खराब का अलग-अलग मजदूर था, वो सोपान-कम के अनुसार अपनी निपुणता के स्तर के प्रापार पर एक या दूसरे ढंग से दूसरे मजदूरों से सम्बन्धित था।" (पृ. २१।) यह वर्कशाप, जो हस्तनिर्माण में पाये जाने वाले श्रम-विभाजन की पैदावार पी, मशीनें तैयार करती थी। ये मशीनें ही सामाजिक उत्पादन के नियामक सिखान्त के रूप में बस्तकार के काम को उठाकर अलग फेंक देती हैं। इस प्रकार एक तरफ तो मजदूर को सारी उन्न के लिये एक तफसीली काम से बांध देने का प्राविधिक कारण समाप्त हो गया। दूसरी तरफ, वे बंधन टूट गये, जो स्वयं इस सिद्धान्त ने पूंची के प्रभुत्व पर लगा रहे थे। . &6 . . , हालैण्ड की अपेक्षा फ्रांस के लिये और फ्रांस की अपेक्षा इंगलैण्ड के लिये यह बात अधिक सच है। 27-45