४१६ पूंजीवादी उत्पादन था, और रोमन साम्राज्य के काल के यूनानियों के लिये भी मित्र का यही महत्व बना रहा था। . जिसे सचमुच हस्तनिर्माण का काल कहा जा सकता है, अर्थात् जिस काल में पूंजीवादी उत्पादन का मुख्य रूप हस्तनिर्माण का होता है, उस काल में हस्तनिर्माण की विशिष्ट प्रवृत्तियों के पूर्ण विकास के रास्ते में बहुत सी बाधाएं पाती है। यद्यपि, जैसा कि हम पहले देख चुके है, हस्तनिर्माण मजदूरों में वर्गों का एक सोपान-कम पैदा करने के साथ-साथ उनके बीच निपुण पौर मनिपुण मजदूरों का एक सरल अलगाव भी पैदा कर देता है, तथापि निपुण मजदूरों का प्रभाव बहुत अधिक होने के कारण प्रनिपुण मजदूरों की संख्या बहुत सीमित रहती है। यद्यपि हस्तनिर्माण तफसीली कामों को श्रम के बीवित यंत्रों की अलग-अलग स्तर की परिपक्वता, शक्ति और विकास के अनुरूप बना देता है, जिससे स्त्रियों और बच्चों का शोषण करने में मदद मिलती है, फिर भी मोटे तौर पर यह प्रवृत्ति पुरुष मजदूरों की मारतों तथा उनके प्रतिरोध से टकराकर चकनाचूर हो जाती है। यद्यपि बस्तकारियों के छोटे-छोटे कामों में बंट जाने से मजदूर को तैयार करने का पर्चा कम हो जाता है और इस तरह उसका मूल्य गिर जाता है, पर स्थाना मुश्किल डंग के तफसीली काम के लिये अब भी स्यावा लम्बे समय तक काम सीखने की जरूरत पड़ती है, और कहीं-कहीं तो अनावश्यक होने पर भी मजदूर विश उसके लिये इसरार करते हैं। मिसाल के लिये, इंगलैग में हम पाते हैं कि हस्तनिर्माण के काल के अन्त तक वहां पर काम सीखने के ऐसे कानून लागू रहे, जिनके मातहत हर मजबूर को सात साल तक शागिर्वी करनी पड़ती थी और जब तक माधुनिक उद्योग का काल भारम्भ नहीं हो गया, तब तक इन कानूनों को एक तरफ नहीं फेंका गया। बस्तकारी की निपुणता चूंकि हस्तनिर्माण का प्राधार है और चूंकि मोटे तौर पर हस्तनिर्माण के यंत्र के पास जुर मजदूरों से अलग कोई ढांचा नहीं होता, इसलिये पूंजी को लगातार मजदूरों की अवमा से कुश्ती लड़नी पड़ती है। मित्र उरे में लिखा है : "मानव-स्वभाव के अवगुणों का यह परिणाम होता है कि मजदूर जितना अधिक निपुण होता है, उसके उतनी ही स्यावा मनमानी करने और बेकाबू हो जाने की सम्भावना बढ़ जाती है, और इसलिये जाहिर है कि वह उस यांत्रिक व्यवस्था का अंग बनने के उतना ही कम योग्य रह जाता है, जिसमें काम करते हुए ... वह पूरे यंत्र को भारी नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिये हस्तनिर्माण के पूरे काल में हम मजदूरों . पाते; मगर जो लोग सदा एक ही धंधे में लगे रहते हैं, वे उसका अधिक से अधिक पूर्ण विकास करने में सफल होते है। कलाओं और दस्तकारियों के मामले में तो हम यह तक पायेंगे कि एक उस्ताद एक नौसिबुए के मुकाबले में हमेशा जितना आगे रहता है, ये लोग अपने प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले में उससे भी ज्यादा मागे निकल गये है, और राजतंत्र को तथा अपने राज्य की अन्य संस्थानों को कायम रखने के लिये उन्होंने जो उपाय निकाले है, वे इतने प्रशंसनीय है कि सब से अधिक विख्यात दार्शनिक भी जब इस विषय की चर्चा करने बैठते है, तो अन्य राज्यों की अपेक्षा मिश्री राज्य की संगठना की अधिक प्रशंसा करते हैं।" (Isocrates, “Busirish (माइसोक्रेटस, 'बुसाइरिस'), अध्याय । Tafert Diodorus Siculus (“Diodor's V. Sicilien Historische Bibliothek", अन्य १, 1831)। "Ure, उप. पु., पृ० २०।
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