भाग '-(पूर्वानुबद्ध) सापेक्ष अतिरिक्त मूल्य का उत्पादन पन्द्रहवां अध्याय मशीनें और माधुनिक उद्योग अनुभाग १-मशीनों का विकास . जान स्टुअर्ट मिल ने अपनी पुस्तक “Principles of Political Economy" ('प्रशास्त्र के सिद्धान्त' ) में कहा है: "अभी तक जितने यांत्रिक माविष्कार हुए हैं, उनसे किसी भी मनष्य की' दिन भर की मेहनत जरा भी हल्की हो गयी हो, यह एक काफ़ी संशयास्पद बात है।" किन्तु मशीनों के पूंजीवादी उपयोग का यह उद्देश्य तो कदापि नहीं है। मम की उत्पादकता में होने वाली दूसरी प्रत्येक वृद्धि की भांति मशीनों का भी उद्देश्य मालों को सस्ता बनाना और काम के दिन के उस भाग को छोटा करके, जिसमें मजदूर खुद अपने लिये काम करता है, उस दूसरे भाग को लम्बा कर देना होता है, वो वह उसका सम-मूल्य पाये बिना ही पूंजीपति को दे देता है। संक्षेप में, मशीनें अतिरिक्त मूल्य पैदा करने का साधन होती हैं। हस्तनिर्माण में उत्पादन की प्रणाली में होने वाली क्रान्ति श्रम-शक्ति से शुरू होती है, माधुनिक उद्योग में वह श्रम के प्राचारों से शुरू होती है। इसलिये सब से पहले हमें यह पता लगाना है कि श्रम के प्रोबार मौवारों से मशीनों में कैसे बदल गये, या यह कि मशीन और बस्तकारी के प्राचारों में क्या फर्क होता है? हमारा सम्बंध यहां पर केवल उल्लेखनीय एवं सामान्य विशेषतामों से है, क्योंकि जिस प्रकार भूगर्भ-विज्ञान के युगों को एक दूसरे से अलग करने वाली कोई कोर और निश्चित सीमा-रेखाएं नहीं होती, उसी प्रकार समाज के इतिहास के युगों को अलग करने वाली भी नहीं होती। गणित और यांत्रिकी के विद्वान प्राचार को सरल मशीन और मशीन को संश्लिष्ट प्रोवार कहते हैं, और इंगलंग के कुछ प्रशास्त्री भी उन्हीं का अनुकरण करते हैं। वे उनमें कोई बुनियावी अन्तर नहीं देखते, और यहां तक कि उन्होंने सरल ढंग की यांत्रिक शक्तियों को, , , 1मिल को यहां असल में यह कहना चाहिये था: "किसी भी ऐसे मनुष्य की, जो दूसरों के श्रम.पर जीवित नहीं रहता, ," क्योंकि मशीनों ने धनी मुफ्तखोरों की संख्या निस्सन्देह बहुत बढ़ा दी है।
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