४२२ पूंजीवादी उत्पादन . से लीवर, गलू समतल, पेच, पन्चर प्रादि को भी मशीन का नाम दिया है। प्रत्येक मशीन असल में इन सरल शक्तियों का ही योग होती है, भले ही उन पर किसी भी प्रकार का प्रावरण गल दिया गया हो। पार्विक दृष्टिकोण से इस माल्या का कोई मूल्य नहीं है, क्योंकि इसमें ऐतिहासिक तत्व का प्रभाव है। प्राचार और मशीन के अन्तर की एक और ज्याच्या यह है कि प्राचार की चालक शक्ति मनुष्य होता है, जब कि मशीन की चालक शक्ति मनुष्य से भिन्न कोई बीच होती है, जैसे, मिसाल के लिये, कोई जानवर, पानी, हवा, प्रावि, मादि।' इस मत के अनुसार, बैलों द्वारा नीचा जाने वाला हल, जो एक दूसरे से प्रत्यन्त भिन्न युगों में समान रूप से पाया जाता है, मशीन है, मगर Claussen's circular loom (प्लोरसेन का वृत्ताकार करवा), जिसपर केवल एक मजदूर काम करता है और जो एक मिनट में ६६,००० फन्चे बुनता है, महब प्राचार है। इतना ही नहीं, यही loom (करमा) जब हाप से चलाया जायेगा, तो प्रोवार माना जायेगा, मगर यदि उसे भाप से चलाया गया, तो बह मशीन हो जायेगा। और चूंकि पशु-शक्ति का प्रयोग मनुष्य के सब से पहले प्राविष्कारों में से है, इसलिये मशीनों के द्वारा होने वाला उत्पादन, इस मत के अनुसार, बस्तकारियों वाले उत्पादन के भी पहले शुरू हो गया था। १७३५ में बब मान बाट ने अपनी कातने की मशीन तैयार की और १८ वीं शताब्दी की प्रौद्योगिक क्रान्ति का भीगणेश किया तो उन्होंने भावमी के बजाय गये के द्वारा इसके चलाये जाने के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा था, मगर फिर भी यह काम गरे के ही जिम्मे पड़ा। ब्याह ने उसका वर्णन इस तरह किया था कि यह "बिना उंगलियों के कातने की मशीन है।' उदाहरण के लिये, देखिये हट्टन की रचना 'गणित का पाठ्य-क्रम' (Hutton, "Course of Mathematics", खण्ड १-२)। 'इस दृष्टिकोण से हम प्रोजार और मशीन के बीच एक स्पष्ट सीमा-रेखा खींच सकते है। फावड़े, हथौड़े, छेनियां प्रावि लीवरों और पेचों के योग-इन सब में, और अन्य बातों में वे चाहे जितने पेचीदा क्यों न हों, चालक शक्ति मनुष्य होता है ये सारी चीजें मौजारों की मद में पाती है। लेकिन हल, जो पशु-शक्ति से बींचा जाता है, और पवन-चक्की प्रादि को मशीनों की मद में रखना पड़ेगा।" (Wilhelm Schulz, "Die Bewegung der Produktion", Zurich, 1843, पृ. ३८१) अनेक दृष्टियों से यह पुस्तक पठनीय है। 'व्याट्ट के काल के पहले भी मशीनों का इस्तेमाल हो चुका था, हालांकि वे मशीनें बहुत अधूरे ढंग की थीं। इटली में वे शायद सबसे पहले सामने पायी थीं। यदि प्रौद्योगिकी का कोई मालोचनात्मक इतिहास लिखा जाये, तो उससे यह बात स्पष्ट हो जाये कि १८ वीं सदी के किसी भी माविष्कार को किसी एक व्यक्ति का काम समझना कितना गलत है। अभी तक कोई ऐसी पुस्तक नहीं लिखी गयी है। डार्विन ने प्रकृति की प्रौद्योगिकी के इतिहास में, यानी पौधों और पशुओं की उन इन्द्रियों के निर्माण के इतिहास में, जो उनके भरण-पोषण के लिये उत्पादन के साधनों का काम करती है, हमारी रुचि पैदा कर दी है। तब क्या मनुष्य की उत्पादक इन्द्रियों का इतिहास-उन इन्द्रियों का इतिहास, जो समस्त सामाजिक संगठन का प्राधार होती है, -इस योग्य नहीं है कि उसकी पोर भी हम उतना ही ध्यान दें? और क्या इस तरह का इतिहास तैयार करना ज्यादा पासान नहीं होगा, क्योंकि, जैसा कि विको ने - 1 .
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