पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/४२८

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मशीनें और माधुनिक उद्योग ४२५ सम्पन्न करता है। पौधोगिक क्रान्ति बस्तकार के प्राचार के इस अन्तिम भाग पर सब से पहले अधिकार करती है, और अपनी प्रांतों से मशीन को बराबर देखते रहने और उसकी गलतियों को अपने हाथों से गैक कर देने का वो नया मम अब मजदूर को करना पड़ता है, उसके अलावा उसके निम्मे केवल यह यांत्रिक भूमिका ही रह जाती है कि वह मशीन की बालक शक्ति के म में काम पाये। दूसरी पोर, जिन पौवारों के सम्बंध में मनुष्य सवा एक सरल चालक शक्ति का काम करता रहा है,-जैसा कि वह, मिसाल के लिये, बाकी की कुहनी पकड़कर घुमाने, पम्म चलाने, चॉकनी का हैग्लि ऊपर-नीचे चलाने , कुंग में सोटे से पीटने प्रादि के समय करता है, -उन प्राचारों के लिये शीघ्र ही पशु, पानी' या हवा का चालक शक्तियों के म में उपयोग करने की मावश्यकता अनुभव होने लगती है। कहीं-कहीं पर हस्तनिर्माण के काल के बहुत पहले और कुछ हद तक उस काल में भी ये प्रोवार मशीनों का म धारण कर लेते है, लेकिन उससे उत्पादन की पद्धति में कोई कान्ति नहीं होती। किन्तु प्राधुनिक उद्योग के काल में यह बात स्पष्ट हो जाती है कि हाप से चलाये जाने वाले साधनों के रूप में भी ये प्रोबार मशीनों का रूप धारण कर चुके हैं। मिसाल के लिये, जिन पम्पों से ग्च लोगों ने १८३६-३७ में हालेम मील को खाली कर दिया था, वे साधारण पम्पों के सिमान्त के अनुसार ही बनाये गये थे। अन्तर केवल यह था कि उनके पिस्टन पावनियों द्वारा नहीं, बल्कि भाप के बैत्याकार इंजनों द्वारा चलाये जाते थे। इंगलैण में लोहार की साधारण तथा अत्यन्त पविकसित घाँकनी कभी-कभी अपने बस्ते को किसी भाप के इंजन के साथ जोड़कर इंजन-बाँकनी बन जाती है। खुद भाप के इंजन से, जैसा कि वह १७ वीं सदी के अन्त में, हस्तनिर्माण के काल में, अपने माविष्कार के समय वा और जैसा कि वह १७८० तक बना रहा, किसी प्रकार की प्रौद्योगिक . मूसा ने कहा है : “जो बैल अनाज मांड़ता है, उसके मुंह पर कभी छीका मत चढ़ा।" पर, इसके विपरीत, जर्मनी के ईसाई दानवीर, जब वे अर्द्ध-दासों से पाटा पीसने की क्रिया में चालक शक्ति का काम लेते थे, तो उनके गले में लकड़ी का एक तख्ता बांध देते थे, ताकि वे हाथ से उठाकर पाटा मुंह में न डाल सकें। 'डच लोग यदि चालक शक्ति के रूप में हवा का उपयोग करने पर मजबूर हो गये, तो इसका कुछ हद तक तो यह कारण था कि उनके देश में ऐसी नदियों की कमी थी, जो काफी ऊंचाई से गिरती हों, और कुछ हद तक यह कारण था कि उन्हें अक्सर अन्य क्षेत्रों में पानी की आवश्यकता से अधिक प्रचुरता के विरुद्ध संघर्ष करना होता था। पवन-चक्की खुद उन्हें जर्मनी से मिली थी, जहां पर उसके माविष्कार से सामन्तों, पादरियों और सम्राट के बीच इस बात पर एक अच्छा-खासा झगड़ा शुरू हो गया था कि हवा उनमें से किसकी "सम्पत्ति है"। सारे जर्मनी में शोर मच गया कि हवा लोगों को गुलामी में जकड़ देती है, जब कि वही हवा हालैण्ड को आजादी दे रही थी। वहां हवा के द्वारा हालैण्ड-वासी गुलामी में नहीं जकड़े गये, बल्कि जमीन हालैण्ड-वासियों की गुलाम बना दी गयी। १६३६ में भी हालैण्ड में ६,००० अश्व-शक्ति की १२,००० पवन-चक्कियां देश की दो तिहाई भूमि को फिर से दलदल बन जाने से बचाने के लिये इस्तेमाल हो रही थीं। 'वाट्ट के पहले तथाकथित एक-दिश-क्रिय इंजन का आविष्कार होने पर भाप का इंजन बहुत-कुछ सुधर गया था, पर इस रूप में वह महज पानी ऊपर उठाने और नमक की खानों में से नमक का पानी निकालने की मशीन बना रहा।