पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/४३२

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मशीनें और प्राधुनिक उद्योग ४२६ . अब हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि एक ही प्रकार की अनेक मशीनों के सहकार और मशीनों की एक संक्लिष्ट प्रणाली में क्या भेद है। पहली सूरत में पूरी वस्तु एक मशीन से तैयार होती है। यह मशीन तरह-तरह की उन तमाम पियानों को कर गलती है, जिन्हें पहले या तो कोई एक बस्तकार अपने प्राचार से करता था, जैसे, मिसाल के लिये, सुनकर अपने करघे द्वारा, या जिनको कई बस्तकार एक के बाद एक अलग-अलग रूप से प्रषवा हस्तनिर्माण की किसी प्रणाली के सदस्यों के रूप में करते ।' मिसाल के लिये, लिफाफों के हस्तनिर्माण में एक प्रावमी भांजने वाले मोबार से कान की तह करता पा, दूसरा गोद लगाता था, तीसरा बह सिरा मोड़ देता था, जिसपर कोई चिन्ह अंकित करना होता था, पौवा चिन्ह अंकित कर देता था और इसी तरह अन्य लोग अन्य प्रकार के काम करते जाते थे और इनमें से प्रत्येक पिया के लिये लिफाफे को एक नये हाव में पहुंचना पड़ता था। पर लिफ्राने बनाने वाली एक अकेली मशीन अब ये सारी क्रियाएं एक साथ करती जाती है और एक घन्टे में ३,००० लिफाफे बनाकर फेंक देती है। १८६२ की लन्दन की प्रदर्शनी में काग्रज की पैलियां बनाने वाली एक मशीन दिलायी गयी थी। वह काग्रब काटती पी, चिपकाती थी, मोड़ती थी और एक मिनट में ३०० बैलियां तैयार कर देती थी। यहां उस पूरी क्रिया को, बो कि हस्तनिर्माण के रूप में कई उपश्यिामों में बंटी हुईबी, अनेक प्रोवारों के योग से काम लेने वाली एक अकेली मशीन पूरा कर गलती है। अब, ऐसी मशीन चाहे किसी संश्लिष्ट ढंग के हाथ के मौवार का नवीन रूप मात्र हो या चाहे वह हस्तनिर्माण द्वारा विशिष्टीकृत अनेक प्रकार के सरल पोवारों का योग हो, बोनों सूरतों में फैक्टरी में, यानी उस वर्कशाप में, जिसमें केवल मशीनों का ही इस्तेमाल होता है, हमारी एक बार फिर सरल सहकारिता से भेंट होती है। और यदि फिलहाल मजदूर को एक तरफ छोड़ दिया जाये, तो यह सहकारिता सबसे पहले एक ही प्रकार की कई एक साथ काम करने वाली मशीनों के एक स्थान पर एकत्रित हो जाने के रूप में हमारे सामने पाती है। चुनांचे, बुनाई की फैक्टरी साप-साम काम करने वाले कई शक्ति-बालित करवों की और सिलाई की क्रैक्टरी एक ही मकान के अन्दर काम करने वाली सोने की बहुत सी मशीनों की बनी होती है। लेकिन यहां पर पूरी व्यवस्था में एक प्राविधिक एकता होती है, क्योंकि सब मशीनों को एक समान मूल चालक के स्पन्दनों से, संचालक यंत्र के माध्यम द्वारा एक साब और बराबर मात्रा में प्रावेग प्राप्त होता है। और यह संचालक यंत्र भी कुछ हद तक सब मशीनों का साक्षा ही होता है, क्योंकि उसकी केवल विशिष्ट उप-शालाएं ही प्रत्येक मशीन से जा मिलती हैं। इसलिये , जिस प्रकार कई मौजार किसी एक मशीन की इंद्रियां होते हैं, उसी प्रकार एक ही तरह की कई मशीनें चालक यंत्र की इंद्रियां होती हैं। 1हस्तनिर्माण में होने वाले श्रम-विभाजन की दृष्टि से बुनाई कोई सरल श्रम नहीं था, बल्कि, इसके विपरीत, वह एक पेचीदे ढंग का हाथ का श्रम था। और इसलिये ताक़त से चलने वाला करषा एक ऐसी मशीन है, जो बहुत पेचीदे ढंग का काम करती है। यह समझना बिल्कुल ग़लत है कि प्राधुनिक मशीनों ने शुरू में केवल उन क्रियामों पर अधिकार किया था जिनको श्रम-विभाजन ने सरल बना दिया था। हस्तनिर्माण के गल में कताई और बुनाई नयी प्रजातियों में बंट गयी थी और उनके औजारों में बहुत से परिवर्तन और सुधार कर दिये गये थे, लेकिन खुद श्रम किसी तरह नहीं बंटा था, और वह उस समय भी दस्तकारी ही बना हुमा था। इसलिये श्रम नहीं, बल्कि श्रम का पोषार मशीन के प्रस्थान-बिंदु का काम करता है।