४३० पूंजीवादी उत्पादन . . लेकिन बिसे सचमुच "मशीनों की संहति" कहा जा सकता है, वह इन स्वतंत्र मशीनों का स्थान उस बात तक नहीं ले सकती, जब तक कि श्रम की विषय-वस्तु उन तफसीली पियानों के एक सम्बर कम से नहीं गुजरती, जिनको एक दूसरे का काम पूरा करने वाली, नाना प्रकार की अनेक मशीनों की एक पूरी माला सम्पन्न करती है। यहां पर फिर वही मन-विमावन के द्वारा सम्पन्न होने वाली सहकारिता विलाई देती है, जो हस्तनिर्माण की मुख्य विशेषता है। किन्तु अब यहां तफसीली काम करने वाली मशीनों का योग होता है। तरह-तरह के तफसीली काम करने वाले मजदूरों के पोबार,-से ऊन के हस्तनिर्माण में ऊन छाटने वालों, न साफ़ करने बालों और मन कातने वालों प्रावि के प्राचार,-अब विशिष्टीकृत मशीनों के मोबारों में बदल जाते हैं, जिनमें से प्रत्येक मशीन पूरी प्रणाली की एक विशिष्ट इनिय होती है, जो एक बास काम करती है। उद्योग की जिन शालाओं में मशीनों की संहति का पहले-पहल उपयोग शुरू होता है, उनमें, मोटे तौर पर, स्वयं हस्तनिर्माण उत्पादन की क्रिया का विभाजन तवा, इसलिये, संगठन करने के लिये एक प्राकृतिक प्रापार प्रस्तुत कर देता है। फिर भी एक मूलभूत अन्तर तुरन्त प्रकट हो पाता है। हस्तनिर्माण में हर बास तफतीली मिया मजदूरों को या तो अकेले और या रन बनाकर अपने दस्तकारी के प्राचारों से पूरी करनी पड़ती है। उसमें एक मोर यदि मयूर को उत्पादन-प्रक्रिया के अनुरूप डाला जाता है, तो दूसरी पोर, उत्पावन-प्रक्रिया को भी पहले ही से मजदूर के योग्य बना दिया गया था। मम-विमानन का यह मनोगत सिवान्त मशीनों से होने वाले उत्पादन में लागू नहीं होता। यहां तो पूरी पिया को अलग करके उसका बस्तुगत ढंग से अध्ययन किया जाता है, यानी इस बात का सवाल किये बिना कि यह पिया यांत्रिक उद्योग के युग के पहले ऊन का हस्तनिर्माण इंगलैण्ड का सबसे प्रमुख हस्तनिर्माण था। यही कारण है कि पठारहवीं सदी के पूर्वार्ध में इस उद्योग में सबसे अधिक प्रयोग किये गये। ऊन के सम्बंध में जो अनुभव प्राप्त हुमा, उसका लाभ कपास ने उठाया, जिसे मशीन में गलने के वास्ते तैयार करने में कम एहतियात की जरूरत होती है। इसी तरह, बाद को मशीनों के द्वारा ऊन की कताई-बुनाई मशीनों के द्वारा कपास की कताई और बुनाई के रास्ते पर चलकर विकसित हुई। ऊन के हस्तनिर्माण के कुछ बास तफसीली काम, जैसे ऊन साफ़ करने का काम, १८५६ और १८६६ के बीच के दस वर्षों में ही फैक्टरी-व्यवस्था में शामिल किये गये है। "ऊन साफ़ करने की मशीन के और बास तौर पर लिस्टर की मशीन के इस्तेमाल में माने के समय से ही ऊन साफ़ करने की क्रिया में बड़े व्यापक पैमाने पर शक्ति का उपयोग हो रहा है पौर उसका निस्सन्देह यह प्रभाव हुमा है कि मजदूरों की एक बहुत बड़ी संख्या बेकार हो गयी है। पहले ऊन को हाथ से साफ़ किया जाता था, और वह भी बहुधा साफ़ करने वाले की झोपड़ी में। अब वह पाम तौर पर कारखाने में साफ़ किया जाता है, और कुछ खास तरह के कामों को छोड़कर, जिनमें अब भी हाप से साफ़ किया गया ऊन ही पसन्द किया जाता है, अब हाथ के श्रम के लिये स्थान नहीं रह गया। हाप से ऊन साफ़ करने वाले बहुत से कारीगरों को कारखानों में नौकरी मिल गयी, लेकिन हाथ से साफ़ करने वालों की पैदावार मशीनों की पैदावार के अनुपात इतनी कम बैठती है हात्र से ऊन साफ़ करने वाले कारीगरों की एक बहुत बड़ी संख्या को रोजी मिलना अब असम्भव हो गया है।" ("Rep. of Insp. of Fact. for 31st Oct., 1866" [फैक्टरियों के इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १८५६'], पृ. १६१) . . .