४५६ पूंजीवादी उत्पादन काम के दिन का लम्बा कर दिया जाना यदि मशीनें श्रम की उत्पादकता को बढ़ाने का-प्रर्वात् किसी माल के उत्पादन के लिये मावश्यक मम-काल को छोटा करने का-सबसे शक्तिशाली सापन है, तो जिन उद्योगों पर के पहले-पहल पढ़ाई करती है, उनमें वे पूंजीपति के हाथों में मानव-प्रकृति की तमाम सीमामों का अतिक्रमण करके काम के दिन को लम्बा खींचने का सबसे शक्तिशाली साधन बन जाती हैं। मशीनें एक तरफ तो ऐसी नयी परिस्थितियां पैदा कर देती हैं, जिनमें पूंजी को अपनी इस अनवरत प्रवृत्ति को सुली छूट दे देने का अवसर मिल जाता है, और, दूसरी तरफ, वे दूसरों के भम को हड़पने की पूंजी की भूल को तेज करने के लिये नये उद्देश्य पैदा कर देती हैं। सबसे पहली बात यह है कि मशीनों के रूप में मम के प्राचार स्वचालित बन जाते हैं। ऐसी बीचे बन जाते हैं, जो मजबूर से स्वाधीन रहते हुए खुब हरकत करती और चलती हैं। और इस समय से ही बम के प्राचार एक प्रौद्योगिक perpetuum mobile (चिरन्तन चालक शक्ति) बन जाते हैं। यदि इस शक्ति की देखरेख करने वाले इन्सानों के निर्वत शरीरों तथा इच्छामों के रूप में कुछ प्राकृतिक रुकावटें उसके रास्ते में न मा बड़ी होती, तो यह शक्ति निरन्तर काम करती रहती। पूंजी के रूप में, और चूंकि वह पूंजी है, इसलिये स्वचालित यंत्र को पूंजीपति की शकल में बुद्धि और इच्छा शक्ति मिल जाती है, उसमें यह इच्छा पैसा हो जाती है कि मनुष्य मी उस प्रतिकारक, किन्तु लोचदार प्राकृतिक रुकावट के प्रतिरोष को कम से कम करके। इसके अतिरिक्त, मशीन का काम चूंकि ऊपर से देखने में हल्का होता है और उसके लिये नौकर रखी गयी स्त्रियां और बच्चे चूंकि अधिक विनयी और बबू होते हैं, इसलिये भी यह प्रतिरोष कुछ कम हो जाता है। जैसा कि हम ऊपर - . 1" 'जब से पाम तौर पर मशीनों का इस्तेमाल होने लगा है, तब से इन्सानों से इतना ज्यादा काम लिया जाने लगा है, जो उनकी मौसत शक्ति से बहुत ज्यादा होता है।" (Rob. Owen, “Observations on the Effects of the Manufacturing System” [Tras aldet, 'कारखानेदारी व्यवस्था के प्रभावों के विषय में कुछ विचार'], दूसरा संस्करण, London, 1817 [पृ० १६]1) अंग्रेज़ लोगों में किसी भी चीज की अभिव्यंजना के सबसे प्रारम्भिक रूप को उसके अस्तित्व का कारण समझने की प्रवृत्ति है। इस प्रवृत्ति के कारण वे अक्सर यह कहते सुने जाते हैं कि फैक्टरियों में अगर बहुत ज्यादा देर तक काम कराया जाता है, तो इसका कारण यह है कि फैक्टरी-व्यवस्था के बाल्यकाल में पूंजीपति मुहताजड़ानों और अनाथालयों से बेशुमार बच्चों को उठा लाया करते थे और इस डकैती के जरिये उनको शोषण के लिये ऐसी सामग्री मिल जाती थी, जो उनके विरोध में कभी ची तक नहीं करती थी। मिसाल के लिये, फील्डेन ने, जो खुद भी एक कारखानेदार है, कहा है : "यह स्पष्ट है कि काम के ये लम्बे घण्टे इस बात का परिणाम है कि देश के विभिन्न भागों से कारखानों के मालिकों को इतनी अधिक संख्या में मुहताज बच्चे मिल गये थे कि उनको मजदूरों की कोई परवाह नहीं रह गयी थी, और इस प्रकार प्राप्त की गयी अभागी सामग्री की मदद से एक बार कोई रिवाज कायम करके वे फिर उसे अपने पड़ोसियों पर अधिक पासानी से लाद सकते थे।" (J. Fielden, "The Curse of the Factory System" [जे० फील्डेन, 'फैक्टरी-व्यवस्था का अभिशाप'], London, 1836, पृ० १११)
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