मशीनें और माधुनिक उद्योग ४५७ देख चुके हैं, मशीनों की उत्पादकता उस मूल्य के प्रतिलोम अनुपात में होती है, जिसे वे पैदावार में स्थानांतरित कर देती हैं। मशीन का जीवन जितना लम्बा होता है, उसके द्वारा स्थानांतरित किया गया मूल्य पैदावार की उतनी ही अधिक मात्रा पर फैल जाता है, और इस मूल्य का जो अंश हर अकेले माल में पड़ता है, वह उतना ही कम हो जाता है। किन्तु किसी भी मशीन का सक्रिय जीवन-काल स्पष्ट रूप से काम के दिन की लम्बाई -या दैनिक भम-प्रक्रिया की लम्बाई -और जितने दिनों तक यह प्रक्रिया चलायी जाती है, उनके गुणनफल पर निर्भर . किसी भी मशीन की घिसाई-बिजाई ठीक-ठीक उसके कार्य-काल के अनुपात में नहीं घटती- बढ़ती। और यदि ऐसा हो भी, तो वर्ष तक १६ घण्टे रोख काम करने वाली मशीन का कार्य-काल उतना ही होगा और वह कुल पैदावार में उतना ही मूल्य स्थानांतरित करेगी, जितना इस मशीन का कार्य-काल उस हालत में होगा और जितना मूल्य. वह उस हालत में स्थानांतरित करेगी, जब उससे १५ वर्ष तक केवल ८ घण्टे रोब काम लिया जायेगा। लेकिन दूसरी सूरत की अपेक्षा पहली सूरत में मशीन के मूल्य का पुनरुत्पादन दुगुनी तेजी से हो जायेगा और मशीन का इस तरह उपयोग करके पूंजीपति वर्षों में ही उतना अतिरिक्त मूल्य कमा लेगा, जितना दूसरी सूरत में बह १५ वर्षों में कमा पायेगा। मशीन की भौतिक घिसाई दो तरह की होती है। एक उपयोग के कारण होती है, जैसे सिक्के परिचलन में घिस जाते हैं। दूसरी उपयोग न होने के कारण होती है, जैसे अगर कोई तलवार बहुत दिन तक म्यान में पड़ी रहे, तो उसमें बंग लग जाता है। यह दूसरी प्रकार की बिलाई प्राकृतिक तत्वों के कारण होती है। पहली प्रकार की घिसाई न्यूनाधिक मशीन के उपयोग के अनुलोम अनुपात में होती है, दूसरी प्रकार की घिसाई कुछ हद तक इसी बीच के प्रतिलोम अनुपात में होती है। लेकिन भौतिक घिसाई-छिनाई के अलावा मशीन उस क्रिया से भी गुखरती है, जिसे हम नैतिक मूल्य-हास की क्रिया कह सकते हैं। उसका विनिमय-मूल्य या तो इसलिये कम हो जाता है कि उसी तरह की मशीनें उसकी अपेक्षा सस्ती तैयार होने लगती है और या इसलिये कि उससे बेहतर मशीनें उससे प्रतियोगिता करने लगती है। दोनों सूरतों में, मशीन चाहे जितनी स्त्रियों के श्रम के विषय में सौण्डर्स नामक फैक्टरी-इंस्पेक्टर ने १५४ की अपनी रिपोर्ट में लिखा है : “मजदूर औरतों में कुछ ऐसी औरतें है, जिनको दो-चार रोज छोड़कर बाक़ी कई-कई हफ्ते तक लगातार सुबह ६ बजे से प्राधी रात तक काम करना पड़ता है और जिनको बीच में केवल भोजन करने के लिये २ घण्टे से भी कम की एक छुट्टी मिलती है। इस तरह, इन स्त्रियों के पास हफ्ते में पांच दिन कारखाने से घर तक पाने-जाने पौर बिस्तर पर लेटकर माराम करने के लिये २४ घण्ठे में से केवल ६ घण्टे बचते हैं।" 'धातु का कोई यंत्र निष्क्रिय पड़ा रहेगा, तो उसके चलने वाले नाजुक कल-पुर्जी को नुकसान... पहुंच सकता है।" (Ure, उप० पु., पृ०२८।) 'मानचेस्टर के कताई के कारखाने के जिस मालिक ("Manchester Spinner") का ऊपर भी विक किया जा चुका है, उसने ("The Times' के २६ नवम्बर १८६२ के अंक में) इस 1 .
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