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पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/४६४

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मशीनें और माधुनिक उद्योग ४६१ कर देता है, हालांकि उसकी चेतना में यह चीज नहीं होती,-किबह काम के दिन को हर से ज्यादा लम्बा कर दे, ताकि उसके मजदूरों की संख्या में वो तुलनात्मक कमी मा गयी है। उसकी क्षति न केवल सापेन अतिरिक्त श्रम में, बल्कि निरपेक्ष अतिरिक्त मन में भी वृद्धि करके पूरी कर दी जाये। प्रतः मशीनों के पूंजीवावी उपयोग से यदि एक पोर काम के दिन को हब से ज्यादा लम्बा कर देने की प्रेरणा देने वाले नये पौर शक्तिशाली कारण उत्पन्न हो जाते हैं और सामाजिक कार्यकारी संघटन के स्वरूप के साथ-साथ श्रम के तरीके भी मौलिक रूप से इस तरह बदल जाते हैं कि इस प्रवृत्ति का सारा विरोष खतम हो जाता है, तो दूसरी मोर, उससे कुछ हद तक तो मजबूर-वर्ग के उन नये हिस्सों तक पूंजीपति की पहुंच हो जाने के फलस्वरूप, जिनतक पहले उसकी पहुंच नहीं थी, और कुछ हद तक उन मजदूरों के मुक्त हो जाने के फलस्वरूप, जिनका स्थान मशीनें ले लेती है, काम करने वालों की एक फालतू पावादी' पैदा हो जाती है, जिसे मजबूर होकर पूंजी का हुक्म बजाना पड़ता है। इसीलिये हमें प्राधुनिक उद्योग के इतिहास में यह विलक्षण बात विखाई पड़ती है कि काम के दिन को लम्बा करने के रास्ते में जितनी नैतिक और प्राकृतिक बाधाएं होती हैं, मशीनें उन सब को हटाकर साफ़ कर देती हैं। इसीलिये हमें यह मार्षिक विरोधाभास दिखाई देता है कि श्रम-काल को छोटा करने का सबसे शक्तिशाली प्रस्त्र ही मजदूर और उसके परिवार के समय का एक-एक क्षण पूंजीपति को सौंप देने का सबसे प्रषिक कारगर अस्त्र बन जाता है, ताकि वह इस समय का अपनी पूंजी के मूल्य का विस्तार करने के लिये उपयोग कर सके। प्राचीन काल के सबसे महान विचारक, परस्तू ने मानों स्वप्न देखते हुए लिखा था: "जिस प्रकार देवेलस के बनाये हुए यंत्र अपने पाप चला करते थे, या हेस्तोस को तिपाइयां खुद अपने पवित्र कार्य में व्यस्त हो जाती थी, उसी प्रकार यदि प्रत्येक औजार भी उसके बुलाये जाते ही या यहां तक कि खुद अपनी मर्जी से अपने योग्य काम को पूरा कर दिया करे, यदि बुनकरों की नलियां अपने पाप बुनाई करने लगें, तो न तो उस्तादों के लिये शागियों की जरूरत रहेगी और न ही मालिकों के लिये गुलामों की। और अनाज पीसने की पन-चक्की का प्राविष्कार सभी प्रकार की मशीनों का प्राथमिक रूप वा। सिसेरों के काल के ऐन्तीपत्रोस नामक एक कवि ने उस प्राविष्कार का यह कहकर अभिनन्दन किया था कि वह गुलाम स्त्रियों को मुक्त कर देगा और इस प्रकार स्वर्ग-युग वापिस ले पायेगा। ये काफ्रिर बेचारे। जैसा कि विद्वान बास्तियात ने और उनके पहले उनसे भी अधिक बुद्धिमान मैक्कुलक ने पता लगाया था, . . . पूंजीपतियों में मोर उन अर्थशास्त्रियों में, जिनके दिमागों में पूंजीपतियों के विचार भरे हुए है, इस भीतरी विरोध की चेतना क्यों नहीं होती, यह बात तीसरी पुस्तक के प्रथम भाग से स्पष्ट होगी। 'रिकामें का एक सबसे बड़ा गुण यह है कि उन्होंने मशीनों को केवल माल तैयार करने के साधन के रूप में ही नहीं देखा, बल्कि उनका यह रूप भी पहचाना कि वे "redundant population" ("फालतू पावादी") पैदा करने का साधन होती है। 'F. Biese, "Die Philosophie des oteles", २, Berlin, पृ. ४०८। 'नीचे में इस कविता का स्तोलवर्ग का किया हुमा अनुवाद दे रहा हूं, क्योंकि श्रम-विभाजन से सम्बंधित उपर्युक्त उद्धरणों की ही भांति यह कविता भी प्राचीन काल के लोगों और