४८४ पूंजीवादी उत्पादन अनुभाग ५ - मजदूर और मशीन के बीच चलने वाला संघर्ष पूंजीपति और मजदूर का संघर्ष पूंजी के जन्म के साथ ही शुरू हमा।हस्तनिर्माण के समूचे काल में यह प्रकोप दिलाता रहा। लेकिन यह बात केवल मशीनों का इस्तेमाल शुरू हो जाने के बाद ही देखने में पायी है कि मजदूर जुन श्रम के प्राचार से-पूंजी के मूर्त रूप से-लड़ने लगा है। साधनों का यह विशिष्ट म चूंकि उत्पादन की पूंजीवादी प्रणाली का भौतिक प्राधार होता है, इसलिये मजदूर उसके खिलाफ विद्रोह कर उठता है। १७ वीं सदी में लगभग पूरे योरप में रिवन करणे के खिलाफ मजदूरों के विद्रोह हुए थे। यह मशीन फ्रीते और मालर बनाने के काम में प्राती बी और जर्मनी में Bandmihle, Schnur- mihle और Mihlenstuhl कहलाती थी।इन मशीनों का प्राविष्कार जर्मनी में हुआ था। एक पुस्तक में, जो वेनिस से १६३६ में प्रकाशित हुई थी, परको लिखी १५७९ में गयी थी, पावरी लैसलोती ने लिखा है: "गजिग-निवासी एंपनी मुलर ने लगभग ५० वर्ष हुए उस शहर में एक बहुत ही बढ़िया मशीन देती थी, बो ४ से लेकर ६ दुकड़े तक एक बार में पुन गलती थी। लेकिन शहर के मेयर को यह र पा कि इस प्राविष्कार के फलस्वरूप कहीं बहुत से मजदूर सड़कों पर बेकार न फिरें, और चुनाचे उसने गुप्त रूप से प्राविष्कारक का गला घुटवाकर या उसे नदी में फिंकवाकर मार गला।" लेटेन में यह मशीन पहली बार १६२९ में इस्तेमाल हुई। वहां फ्रीते तैयार करने वाले बुनकरों के बलबों ने पाखिर शहर की कौंसिल को उसपर प्रतिबंध लगाने के लिये मजबूर कर दिया। लेन में इस मशीन का इस्तेमाल पहले-पहल किस तरह शुरु हुमा, इसका जिक्र करते हुए बोक्सहोर्न ने अपनी रचना "Institutiones Politicae" farartt: "In hac urbe, ante hos viginti circiter annos instrumentum quidam invenerunt textorium, quo solus plus panni et facilius conficere poterat, quam plures aequali tempore. Hinc turbae ortae et querulae textorum, tandemque usus hujus Instrumenti a magistratu prohibitus est" ("इस शहर में लगभग बीस वर्ष हुए बुनाई की एक ऐसी मशीन का माविष्कार हुमा था, जिससे एक पादमी इतने फ्रीते तैयार कर गलता था, जितने पहले उतने ही समय में बहुत से पानी नहीं तैयार कर पाते 1 अन्य पुस्तकों के अलावा देखिये जान हाउटन की रचना 'उन्नत खेती और व्यापार' (John Houghton, "Husbandry and Trade Improved", London, 1727) 14T “The Advantages of the East India Trade, 1720" ('ईस्ट इण्डिया के व्यापार के लाभ, १७२०' ) और जान बैलेर्स की वह पुस्तक जिसे हम ऊपर उवृत कर चुके हैं (John Bellers, "Proposals for Raising a College of Industry", London, 1696)"Hifare at उनके मजदूर दुर्भाग्यवश सदा एक दूसरे से लड़ते रहते हैं। मालिकों की इच्छा हमेशा यह होती है कि अपना काम अधिक से अधिक सस्ते में करा लें, और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये वे हर तरह की जुगत से काम लेते हैं। उधर मजदूरों को उतनी ही फ़िक इस बात की रहती है कि मौका हाथ पाते ही अपने मालिकों को अपनी पहले से बढ़ी हुई मांगों को मानने के लिये मजबूर कर दें।" ("An Enquiry into the Causes of the Present High Price of Provisions" ['बाय-पदायों के वर्तमान ऊंचे दामों के कारणों की जांच'], पृ० ६१-६२ । इस पुस्तक के लेखक, पादरी नपेनियल फोटर, मजदूरों के बासे पक्षपाती है।) - -
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