४८६ पूंजीवादी उत्पादन . प्राप्त नगरों की मार से होता था, न कि मजदूरों की मार से। इसीलिये, हस्तनिर्माण के काल के लेखक काम में लगे हुए मजदूरों का स्वान ले लेने के साधन के रूप में नहीं, बल्कि मुख्यतया मजदूरों की कमी को पूरा करने के साधन के रूप में श्रम-विभाजन की चर्चा करते हैं। यह भेद स्वतःस्पष्ट है। यदि यह कहा जाये कि पाजकल इंगलैग में ५,००,००० व्यक्ति न्यूलों के द्वारा जितनी कपास कातते हैं, उतनी कपास पुराने चलें से कातने के लिये १० करोड़ पारमियों की मावश्यकता होगी, तो इसका यह पर्व नहीं होता कि म्यूलों ने उन करोड़ों भादमियों का स्थान ले लिया है, वो कभी पैदा नहीं हुए थे। इसका केवल यह पर्व होता है कि कताई की मशीनों का स्थान लेने के लिये कई करोड़ पावमियों की बरत होगी। दूसरी पोर, यदि हम यह कहते है कि इंगलैण में शक्ति से चलने वाले करघे ने ८,००,००० बुनकरों को रोजगार कर दिया, तो हम पहले से मौजूब किन्हीं मशीनों का विक नहीं करते, जिनका स्थान मजदूरों की एक निश्चित संख्या को लेना होगा, बल्कि पहले से मौजूद उन बुनकरों की संख्या का निक करते हैं, जिनका स्थान सचमुच करषों ने ले लिया पाया जिनको उन्होंने बेकार कर दिया था। हस्तनिर्माण के काल का प्राधार भी बस्तकारी का मम ही था, हालांकि उसमें बम-विभाजन ने कुछ परिवर्तन कर दिया था। मध्य युग से विरासत में मिले हुए शहरी कारीगरों की अपेक्षाकृत छोटी संस्था के कारण नयी पोपनिवेशिक मणियों की मांगों को संतुष्ट करना सम्भव नपा। और जिनको वास्तव में हस्तनिर्माण कहा जा सकता था, ऐसे व्यवसायों में बेहात की उस पावादी के लिये उत्पादन के नये क्षेत्र सोल दिये, जिसे सामन्ती व्यवस्था के विसर्जन ने जमीन से भगा दिया था। इसलिये उस बात वर्कशाप के भीतर पाये जाने वाले श्रम-विभाजन तवा सहकारिता की पोर इस सकारात्मक दृष्टि से अधिक देखा जाता था कि इन चीजों से मजदूरों का श्रम अधिक उत्पादक हो जाता है। माधुनिक उद्योग के काल के बहुत पहले सहकारिता और चन्द भाव- 1 सर जेम्स स्टीवर्ट ने भी मशीनों को ठीक इसी प्रर्ष में समझा है । "Je considere donc les machines comme des moyens d'augmenter (virtuellement) le nombre des gens industrieux qu'on n'est pas obligé de nourrir... En quoi l'effet d'une machine diffère-t-il de celui de nouveaux habitants?" ["HTU #tat मेहनत करने वालों की संख्या को बढ़ाने का एक ऐसा साधन समझता हूं, जिसमें नये मजदूरों को खिलाने-पिलाने का खर्चा बर्दाश्त नहीं करना पड़ता मशीनों का प्रभाव मावादी के बढ़ने के प्रभाव से किस बात में भिन्न होता है ?"] (Sir James Steuart, "An Inquiry into the Principles of Political Economy" ['पर्यशास्त्र के सिद्धान्तों की जांच'], फ्रांसीसी अनुवाद, खण्ड १, पुस्तक १, अध्याय १९) इससे अधिक भोलेपन का परिचय पेटी देते हैं। वह कहते हैं कि मशीनें "बहुपत्नी प्रथा" का स्थान ले लेती हैं। यह दृष्टिकोण अधिक से अधिक संयुक्त राज्य अमरीका के कुछ भागों पर ही लागू होता है। दूसरी भोर, "किसी एक व्यक्ति का श्रम कम करने के उद्देश्य से मशीनों का बहुत मुश्किल से ही कभी सफलतापूर्वक उपयोग किया जा सकता है। उनके उपयोग से जितने समय की बचत होगी, उससे अधिक समय उनके बनाने में जाया हो जायेगा। मशीनें केवल उसी हालत में उपयोगी होती है, जब वे लोगों की बड़ी संख्या पर प्रभाव गलती है और बब एक मशीन हजारों के काम में मदद दे सकती है। चुनाचे मशीनें सबसे अधिक बहुतायत के साथ ज्यादा भावादी वाले देशों में पायी जाती है, जहां बेकार लोगों की संख्या .
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