मशीनें और प्राधुनिक उद्योग ४८७ मियों के हाथों में मम के पोचारों का केंद्रीकरण हो जाने के फलस्वरूप अनेक ऐसे देशों में, जिनमें इन तरीकों को खेती में इस्तेमाल किया गया था, उत्पादन की प्रनालियों में बड़ी-बड़ी पाकस्मिक क्रान्तियां जबर्दस्ती हो गयी थी. और उनके फलस्वरूप देहात की पाबाबी के जीवन की परिस्थितियों में और उसके जीविका के साधनों में भी बहुत बड़े-बड़े परिवर्तन हो गये थे। लेकिन शुरू-शुरू में यह संघर्ष पूंची पौर मजदूरों की अपेक्षा बड़े और छोटे भूस्वामियों के बीच स्यादा होता है। दूसरी मोर, पब मजदूरों का स्थान भन के प्राचार-या भेड़ें और घोड़े पावि- ले लेते हैं, तब ऐसी स्थिति में शुम्-शुरू में प्रौद्योगिक क्रान्ति की भूमिका के रूप में प्रत्यक्ष रूप से बल का प्रयोग किया जाता है। पहले मजदूरों को जमीन से सवेड़ दिया जाता है, फिर भे. मा जाती है। बड़े पैमाने की खेती की स्थापना के लिये क्षेत्र तैयार करने की क्रिया में पहला कदम खमीन को बड़े पैमाने की नोच-सोट होती है, जैसी कि इंगलेश में हुई थी। इसलिये खेती में होने वाला यह उलट-फेर शु-शुरू राजनीतिक क्रान्ति अधिक प्रतीत होता है। जब श्रम का प्राचार मशीन का रूप धारण कर लेता है, तब वह तत्काल ही खुब मजदूर का प्रतिद्वनी बन जाता है। मशीनों के द्वारा पूंजी का अपने पाप को विस्तार होता है, वह इसके बाद से उन मजदूरों की संख्या के अनुलोम अनुपात में होता है, जिनकी जीविका के साधनों को इन मशीनों ने नष्ट कर दिया है। पूंजीवादी उत्पादन की पूरी व्यवस्था इस तम्य पर पापारित है कि मजदूर अपनी पम-शक्ति को माल केस में बेचता है। भम-विभाजन इस श्रम-शक्ति को एक खास मौवार से काम लेने की निपुणता में परिणत करके उसका विशिष्टीकरण कर देता है। जैसे ही इस प्राचार से काम लेना किसी मशीन का कार्य बन जाता है, वैसे ही मजदूर की भम-शक्ति के उपयोग मूल्य के साथ-साथ उसका विनिमय-मूल्म भी पायब हो जाता है। उस कागजी मुद्रा की जिसे कानून बनाकर पलन के बाहर फेंक दिया गया है, यह मजबूर भी अब विकने के लायक नहीं रहता। इस प्रकार, मशीनें मजदूर वर्ग के जिस भाग को फालतू बना देती है, अर्थात् जिस भाग की पूंजी के प्रात्म-विस्तार के लिये तात्कालिक आवश्यकता नहीं रहती, वह या तो मशीनों के साथ पुरानी बस्तकारियों और हस्तनिर्माणों की प्रसमान प्रतियोगिता में परास्त होकर नेस्त-माबूब हो जाता है और या उद्योग की उन समस्त शालाओं में बाढ़ के पानी की तरह भर जाता है, जिनतक उसकी अधिक मासानी से पहुंच सम्भव होती है। . तरह . , 1 सबसे ज्यादा होती है मशीनों का उपयोग पादमियों की कमी के कारण नहीं होता, बल्कि वह इस बात पर निर्भर करता हैं कि किस पासानी के साथ भादमियों को बड़ी संख्यामों में काम करने के लिये इकट्ठा किया जा सकता है।" (Piercy Ravenstone, "Thoughts on the Funding System. and its Effects' [पियर्सी रैवेनस्टोन, 'निधिपन प्रणाली तथा उसके प्रभावों के विषय में कुछ विचार'], London, 1824, पृ० ४५।) चौपे गर्मन संस्करण में जोड़ा गया कुटनोट: यह बातं जर्मनी पर भी लागू होती है। वर्मनी में जहां कहीं बड़े पैमाने की खेती पायी जाती है, यानी खास तौर पर पूर्वी भाग में, वहां यह जागीरों को बाली कराने ("Bauernlegen") की उस प्रथा के कारण मस्तित्व में मा सकी है, जो १६ वीं सदी से ही प्रचलित है और जिसने १६४८ के बाद से खास तौर पर जोर पकड़ लिया है।- ]] "मशीनों पौर श्रम के बीच बराबर प्रतियोगिता चला करती है।" (Ricardo, उप० gº, go Yue 1)
पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/४९०
दिखावट