मशीनें और माधुनिक उद्योग ४६१ से १४ कम मजदूरों से काम ले रहे हैं, जिससे मजदूरी में १० पौग प्रति सप्ताह की बचत हो जाती है। हमारा अनुमान है कि जितनी कपास हम इस्तेमाल करते हैं, उसमें अब पहले से १० प्रतिशत कम कपास वाया हुमा करेगी।" "मानचेस्टर की एक दूसरी महीन कताई करने वाली मिल में मुझे बताया गया कि रफ्तार को बढ़ाकर और कुछ स्वचालित पियानों के उपयोग के द्वारा एक विभाग के मजदूरों की संख्या में चौवाई की कमी कर दी गयी है, एक दूसरे विभाग में पाये से ज्यादा मजदूर हटा दिये गये हैं, और दूसरी पुनाई की मशीन के स्थान पर तूमने की मशीन का इस्तेमाल करके बुनाई-विभाग में पहले जितने प्रावमी काम करते थे, उनमें काफी कमी कर दी गयी है।" अनुमान कि कताई करने वाली एक और मिल भम में १० प्रतिशत की बचत करने में सफल हुई है। मानचेस्टर में कताई का व्यवसाय करने वाली फर्म मेसर्स गिल्मूर ने बताया है : "हमारा विचार है कि हमारे blowing department (हवा-घर) में नयी मशीनों के फलस्वरूप मजदूरी और मजदूरों के खर्च में पूरी एक तिहाई की कमी हो गयी है... जैक-फेम और साइंग-कैम वाले विभाग का खर्चा लगभग एक तिहाई कम हो गया है पौर मजदूरों की संख्या में भी एक तिहाई की कमी हो गयी है। कताई-विभाग के सर्वे में करीब एक तिहाई की कमी मा गयी है। परन्तु इतना ही सब नहीं है। जब हमारा सूत कारखाने- वारों के पास पहुंचेगा, तो नयी मशीनों के प्रयोग के फलस्वरूप वह पहले से इतना बेहतर सूत होगा कि वे लोग पुरानी मशीनों से तैयार किये हुए सत से जितना और जैसा कपड़ा तैयार किया करते थे, अब उससे कहीं अधिक और कहीं बेहतर किस्म का कपड़ा तैयार कर सकेंगे। इसी रिपोर्ट में मि० रेव ने प्रागे कहा है : “उत्पादन के बढ़ने के साथ-साथ मजदूरों की संख्या में, मसल में, बराबर कमी होती जा रही है। ऊनी मिलों में यह कमी कुछ समय पहले ही शुरू हो गयी थी और अब भी जारी है। चन्द दिन पहले की बात है कि रोशडेल के पास के एक स्कूल के मास्टर ने मुझे बताया कि लड़कियों के स्कूल में विद्यार्षियों की संख्या में जो भारी कमी हो गयी है, उसका कारण केवल संकट ही नहीं है, बल्कि उसका कारण यह भी है कि ऊनी मिलों की मशीनों में बहुत सी तबदीलियां हो गयी है, जिनके परिणामस्वरूप कम समय काम करने वाले ७० मजदूरों की छटनी हो गयी है।" . 1"Rep. Insp. Fact., 31st Oct., 1863" (.'फेक्टरियों के इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १८६३'), पृ० १०८, १०६ । 'उप० पु०, पृ० १०६ । कपास-संकट के समय मशीनों में बहुत तेजी से जो सुधार हुए, उनकी मदद से अंग्रेज कारखानेदारों ने अमरीकी गृह युद्ध समाप्त होने के तत्काल बाद ही और देखते ही देखते एक बार फिर सारी दुनिया की मंडियों को अपने माल से पाट दिया। १९६६ के अन्तिम छः महीनों में यह हालत गयी थी कि कपड़े को बेच सकना लगभग असम्भव हो गया था। तब हिन्दुस्तान और चीन को माल भेजना शुरू हमा, जिससे स्वभावतया मंडियों में मालों की इफरात और भी बढ़ गयी। १८६७ के शुरू में कारखानेदारों ने इस कठिनाई से निकलने के लिये उसी उपाय का सहारा लिया, जिसका वे अक्सर सहारा लिया करते है,-यानी उन्होंने मजदूरों की मजदूरी में ५ प्रतिशत की कटौती कर दी। मजदूरों ने इसका विरोध किया और कहा कि समस्या का एकमात्र हल यह है कि उनसे कम समय काम लिया जाये और सप्ताह में ४ दिन काम कराया जाये। और मजदूरों की बात ही सही थी। उद्योग के मात्म-नियुक्त सेनापति मालिक कुछ समय तक तो अपनी बात पर स्टे रहे, पर बाद -
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