४९४ पूंजीवादी उत्पादन . " . . उसे पर काम नहीं करना होता, बल्कि मशीन के सुन्दर मम की देखरेख करनी होती है। केवल अपनी निपुणता पर निर्भर करने वाले मजदूरों का पूरा वर्ग अब समाप्त हो गया है। पहले मैं हर कारीगर के पीछे चार लड़कों को नौकर रखता था। अब इन नये यांत्रिक प्राविकारों के फलस्वरूप मैने बयस्क मजदूरों की संख्या को १,५०० से घटाकर ७५० कर दी है। नतीजा यह हुमा है कि मेरे मुनाफे में काफी इजाफा हो गया है। छीट की छपाई में इस्तेमाल होने वाली एक मशीन का विक करते हुए उरे ने कहा है: "पाखिरकार पूंजीपतियों ने इस प्रसहनीय बासता से" (यानी, मजदूरों के साथ किये गये करारों की उन शती से, जो पूंजीपतियों की दृष्टि में बहुत सख्त वी) "मुक्ति पाने के लिये विज्ञान की शक्ति का सहारा लिया, और उसके द्वारा शीघ्र ही, जिस प्रकार मस्तिष्क शरीर की गौण इलियों पर शासन करता है, उसी प्रकार का पूंजीपतियों का भी न्यायोचित शासन पुनःस्थापित हो गया।' ताना तैयार करने की एक मशीन के माविष्कार की चर्चा करते हुए उरे में लिखा है: "तब उन संघवा असंतुष्ट लोगों को, जो समझते थे कि मम-विभाजन की पुरानी सीमा-रेलामों के पीछे उनकी मोर्चेबंदी इतनी मजबूत है कि उसमें कोई व्यक्ति बरा भी बरार नहीं गल सकता, उनको पता चला कि मात्रु की फ्रोन बाजू से निकलकर उनके पीछे पहुंच गयी है और नयी यांत्रिक कार्य-नीति ने उनकी मोदी को बिल्कुल बेकार बना दिया और तब इन लोगों को मजबूर होकर इसीमें अपनी भलाई विताई कि प्रात्म-समर्पण कर।" Self-acting mule (स्वचालित म्यूल) के पाविष्कार के बारे में उरे ने कहा है: "यह पाविष्कार उचोगरत वर्गों में पुनः अनुशासन स्थापित करने का काम करेगा...यह पाविष्कार उस महान सिखान्त की पुष्टि करता है, जिसका पहले ही प्रतिपादन किया जा चुका है, वह यह कि जब कभी पूंजी विज्ञान को अपना सेवक बना लेती है, तब टीठ मजदूरों को सदा घोड़ा विनव्रता का पाठ सीलना पड़ता है। उरे की यह रचना ३० वर्ष पहले, उस समय प्रकाशित हुई थी, जब पटरी-व्यवस्था का अपेक्षाहत बहुत कम विकास हुआ था, तथापि यह फैक्टरी की भावना को भान भी पूरी तरह अभिव्यक्त करती है। कारण कि इस रचना में न केवल उसकी मास्वाहीनता सर्वचा मनावृतम्स में सामने मा जाती है, बल्कि वह पूंजीवादी मस्तिष्क के मूर्नतापूर्ण विरोषों को भी बड़े भोलेपन के साप बिना सोचे-समझे सोनकर रख देती है। उदाहरण के लिये, इस उपर्युक्त "सिवान्त" का प्रतिपादन करने के बार कि विज्ञान को अपना सेवक बनाकर पूंजी उसकी मदद से सदा डीठ मजदूर को बिना बना देती है, उरे इस बात पर अपना कोष प्रकट करते हैं कि "उसपर (भौतिक-यांत्रिक विमान पर) यह मारोप लगाया जाता है कि वह बनी पूंचीपति के हाथ में परीबों को सताने का साधन बन जाता है।" फिर मशीनों के तेच विकास से मजदूरों को कितना लाभ होता है, इस सम्बन्ध में ममजीवियों को एक लम्बा उपदेश सुनाने के बाद उरे उनको चेतावनी देते है कि अपनी विह तवा अपनी हड़तालों से विकास की इस गति को और तेच बना रहे हैं। उरे ने लिखा है: 'इस प्रकार की तीन वन-वन प्रदूरवर्षी मनुष्य को पुर अपने को सताने वाले व्यक्ति के नास्पद म में पेश करती है।" पर इसके कुछ पहले उन्होंने इसकी उल्टी बात कही है: "यदि कंपटरी-मजदूरों में पाये जाने वाले पलत विचारों के कारण इस तरह की तेच उपकरेंग होती पौर काम मारवार बीच में न कमाया करता, तो फ्रक्टरी-व्यवस्था का पोर भी तेजी से विकास होता, जिससे सबको लाभ पहुंचता।" मागे उन्होंने फिर यह कहा है कि "प्रेट जिनके । यद्यपि . Ure, उप.पु., पृ. ३६८-३७० । .
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