पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/५०९

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पूंजीवादी उत्पादन . जैसा कि हम इंगलैड की बढे हुए ऊन का सामान तैयार करने वाली मिलों और रेशान की फैक्टरियों के सिलसिले में देख चुके हैं, यह सच है कि कुछ सूरतों में फैक्टरी-व्यवस्था का प्रसाधारण विस्तार होने पर उसके विकास की एक खास अवस्था में इन उद्योगों में काम करने वाले मजदूरों की संख्या में केवल सापेक्ष ही नहीं, बल्कि निरपेक कमी भी मा पाती है। १९६० में संसद के मादेश पर संयुक्तांगल राज्य की तमाम पटरियों की एक विशेष गणना की गयी पी। उस समय लंकाशायर, शायर और योर्कशायर के उन हिस्सों में, बो मि. बेकर नामक फ़ैक्टरी-इंस्पेक्टर के क्षेत्र में पाते थे, ६५२ फैक्टरियां थीं। इनमें से ५७० पटरियों में शक्ति से चलने वाले ८५,६२२ करघे तवा ६८,१६,१४६ तकुए थे (गुणन करने वाले तकुए इस संख्या में शामिल नहीं थे), और उनमें २७,४३६ अश्व-शक्ति (भाप) और १,३६० अश्व- शक्ति (पानी) से तथा ६४,११६ व्यक्तियों से काम लिया जाता था। १८६५ में इन्हीं फैक्टरियों में ९५,१६३ करणे पार ७०,२५,०३१ तकुए लगे थे, और २८,९२५ अश्व- शक्ति की भाप की ताकत तथा १४५ अश्व-शक्ति की पानी की ताकत से और ८८,९१३ व्यक्तियों से काम लेती थीं। इसलिये, १९६० और १५६५ के बीच करघों की संख्या में ११ प्रतिशत की, तमों की संख्या में ३ प्रतिशत की और इंजन-शक्ति में ३ प्रतिशत की वृद्धि हो गयी थी और साथ ही काम करने वाले व्यक्तियों की संख्या में ५६ प्रतिशत की कमी प्रा गयी थी। १९५२ और १९६२ के बीच इंगलैग में उनके कारखानों का काफी . . bon marché des consommations. Dans cette direction, l'espèce humaine s'élève aux plus hautes conceptions du génie, pénètre dans les profondeurs mystérieuses de la religion, établit les principes salutaires de la morale (which consists in s'approprier tous les bienfaits, &c.), les lois tutélaires de la liberté (liberty of les classes condamnées à produire?) et du pouvoir, de l'obéissance et de la justice, du devoir et de 1'humanite" ["जिन वर्गों को पैदा करना और खर्च करना पड़ता है, उनकी संख्या कम हो जाती है , और जो वर्ग श्रम का संचालन करते हैं और जो पूरी भाबादी को सहायता, दिलासा और शिक्षा देते हैं, उनकी संख्या बढ़ जाती है और श्रम की लागत में कमी मा जाने से, पैदावार की बहुतायत से और उपभोग की वस्तुओं के सस्ती हो जाने से जितने प्रकार के लाभ होते है, उन सब पर ये वर्ग अधिकार कर लेते हैं। इस दिशा में मनुष्य-जाति प्रतिभा के उच्चतम स्तर पर पहुंच जाती है, धर्म की रहस्यमयी गहराइयों तक पैठती है और नैतिकता के हितकारी सिद्धान्तों को" (जिनके मातहत परजीवी वर्ग "सभी प्रकार के लाभ इत्यादि पर अधिकार कर लेते है"), "स्वतंत्रता के संरक्षक नियमों को" (सम्भवतया उन कुछ खास वर्गों की स्वतंत्रता के नियमों को, जिन्हें सदा "पैदा करना पड़ता है"? ) "मौर सत्ता, माज्ञापालन, न्याय, कर्तव्य तया मानवता के नियमों को स्थापित करती है"]। यह बकवास पापको M. Ch. Ganilh की रचना "Des Systemes dEconomie Politique, &c.", दूसरा संस्करण, Paris, 1821, ग्रंथ १ में मिल सकती है; देखिये पृ० २२४ और पृ० २१२ भी। 1 "Reports of Insp. of Fact., 31 Oct., 1865" ('forefcat fett i faute, ३१ अक्तूबर १८६५'), पृ. ५८ और उसके प्रागे के पृष्ठ। किन्तु इसके साथ-साथ ११० नयी . .