पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/५१०

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मशीनें और माधुनिक उद्योग ५०७ - 1 विस्तार हुमा था, पर उनमें काम करने वाले मजदूरों की संख्या ज्यों की त्यों रही थी। इससे पता चलता है कि मयी मशीनों के उपयोग ने किस हद तक बीते हुए कालों के मम का स्थान ले लिया था। कुछ सूरतों में काम करने वाले मजदूरों की संख्या में केवल विसावटी वृद्धि होती है, यानी यह वृद्धि पहले से कायम फैक्टरियों के विस्तार के कारण नहीं होती, बल्कि इसलिये होती है कि मशीनें धीरे-धीरे सम्बंधित पंधों पर भी अधिकार कर लेती हैं। उदाहरण के लिये, १९३० और १८५६ के बीच सूती व्यवसाय में शक्ति से चलने वाले करघों तथा उनपर काम करने वाले मजदूरों की संख्या में जो वृद्धि हुई थी, उसका कारण केवल यह था कि उद्योग की इस शाला का विस्तार हो गया था, लेकिन कुछ अन्य धंधों में करघों और मजदूरों की वृद्धि इसलिये हुई थी कि पहले भादमियों द्वारा चलाये जाने वाले कालीन बुनने वाले, क्रीते तैयार करने वाले और सन का कपड़ा तैयार करने वाले करों में अब भाप की ताकत इस्तेमाल होने लगी थी। इसलिये, इन पंषों में काम करने वाले मजदूरों की संख्या में जो वृद्धि हुई पी, वह केवल इस बात का प्रतीक थी कि कुल मजदूरों की संख्या में कमी मा गयी है। अन्तिम बात यह है कि इस प्रश्न पर विचार करते हुए हमने इस तव्य को सदा अलग रखा है कि पातु के उद्योगों को छोड़कर बाकी सब जगह फैक्टरी-मजदूरों के वर्ग में सबसे बड़ी संख्या (१८ वर्ष से कम उम्र के ) लड़के-लड़कियों, औरतों और बच्चों की होती है। फिर भी, इस बात के बावजूद कि मशीनें मजदूरों की एक बहुत बड़ी संख्या को सचमुच विस्थापित कर देती हैं और एक तरह से उनकी जगह ले लेती है, हम यह बात समझ सकते हैं कि किसी खास उद्योग में नयी मिलों के बनने और पुरानी मिलों का विस्तार होने के फलस्वरूप फेक्टरी-मजदूरों की संख्या किस तरह हस्तनिर्माण करने वाले उन मजदूरों और बस्तकारों की संख्या से बढ़ सकती है, जिनका इन फैक्टरी-मजदूरों ने स्थान ले लिया है। मिसाल के लिये, मान लीजिये कि प्रति सप्ताह ५०० पौण्ड की पूंजी से उत्पादन की पुरानी प्रणाली के अनुसार काम लिया जाता है और इसके पांच में से दो हिस्से स्थिर पूंजी के और तीन हिस्से अस्थिर पूंजी के हैं। कहने का मतलब यह है कि ५०० पौड की पूंजी में से २०० . मिलों की शकल में मजदूरों की एक पहले से बढ़ी हुई संख्या को नौकरी देने के साधन तैयार हो गये थे, जिनमें ११,६२५ करघे और ६,२८,५७६ तकुए लगे थे और जो कुल २,६९५ अश्व-शक्ति की भाप और पानी की ताकत का इस्तेमाल करती थीं। 1 "Reports,etc.,for 31st October, 1862" ('रिपोर्ट, इत्यादि, ३१ अक्तूबर १८६२'), पृ०७६ । १८७१ के अन्त में फैक्टरी-इंस्पेक्टर मि० ए० रेड्व ने ग्रेडफ़ोर्ड के "New Mechanic's Institution" में एक भाषण देते हुए कहा था: "पिछले कुछ समय से मेरा ध्यान इस बात की भोर जा रहा है कि ऊनी फैक्टरियों की शकल-सूरत बदली हुई दिखाई देती है। पहले उनमें औरतें और बच्चे भरे रहते थे। अब लगता है, जैसे सारा काम मशीनें कर डालती है। मैंने एक कारखानेदार से इसका कारण पूछा, तो उसने मुझे यह जवाब दिया : 'पुरानी व्यवस्था में मैंने ६३ व्यक्तियों को नौकर रख रखा था।सुधरी हुई मशीनें लग जाने के बाद मैंने मजदूरों की संख्या को घटाकर ३३ कर दिया, पौर हाल में कुछ नवीन एवं व्यापक परिवर्तनों के फलस्वरूप में इन ३३ को घटाकर १३ कर देने में सफल हुमा हूं।" 'देखिये "Reports, &c., 31st Oct., 1856" ('रिपोर्ट, इत्यादि, ३१ अक्तूबर १८५६'), पृ. १६॥