पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/५१४

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मशीनें और माधुनिक उद्योग ५११ बीच विभिन्न प्रकार के कुल कितने मनान, मक्का और पाटे का मायात हुमा और वहां से निर्यात किया गया है। इस जांच का जो नतीजा निकला, उसका सारांश में नीचे दे रहा हूं। प्राटे की मात्रा प्रल्ले के चार्टरों में बदल दी गयी है। (देखिये पृ० ५१२।) फैक्टरी-व्यवस्था में यकायक छलांग मारकर विस्तृत होने की जो प्रचन शक्ति होती है, उसका तथा इस व्यवस्था के दुनिया की मण्डियों पर निर्भर रहने का लादिमी मतीजा यह होता है कि उत्पावन अंधाधुंध होता है, जिसके फलस्वरूप मणियां माल से बंट जाती है, और तब मण्डियों के सिकुड़ जाने के कारण उत्पादन को लकवा मार जाता है। माधुनिक उद्योग का जीवन संयत क्रियाशीलता, समृद्धि, पति-उत्पादन, संकट और ठहराव के एक कम का रूप धारण कर लेता है। मशीनों के कारण नौकरी के बारे में, और इसलिये मजदूरों के जीवन की परिस्थितियों में जो अनिश्चितता तथा अस्थिरता पैदा हो जाती है, वह पौधोगिक चक के इन नियतकालिक परिवर्तनों के कारण उनके जीवन की सामान्य बात बन जाती है। समृद्धि के कालों को छोड़कर पूंजीपतियों के बीच सदा मणियों की हिस्सा-बांट के लिये प्रत्यन्त तीव संघर्ष चला करता है।हरेक का हिस्सा प्रत्यक रूप से इस बात पर निर्भर करता है कि उसकी पैदावार कितनी सस्ती है। इस संघर्ष से नयी-नयी, सुघरी हुई मशीनों का इस्तेमाल करने के मामले में होड़ शुरू हो जाती है, ताकि उनसे श्रम-शक्ति के स्थान पर काम लिया जा सके, मौर उत्पादन के नये तरीके इस्तेमाल करने के मामले में भी होड़ चलने लगती है। इसके मलावा, हर प्रौद्योगिक चक के दौरान में एक ऐसा समय भी प्राता है, जब मालों को सस्ता करने के लिये मजदूरी को जबर्दस्ती घटाकर भम-शक्ति के मूल्य से भी कम कर देने की कोशिश की जाती है। , संयुक्त राज्य अमरीका से ब्रिटेन को गल्ले प्रादि का निर्यात " " १८५० १,६२,०२,३१२ ३६,६६,६५३ ३१,७४,८०१ ३,८८,७४६ ३८,१९,४४० १,०५४ ५४,७३,१६१ गेहूं (हण्ड्रेडवेट में) जो जई रई माटा मोथी मक्का Bere a bigg (एक किस्म का जो) मटर सेम की फलियां" १८६२ ४,१०,३३,५०३ ६६,२४,८०० ४४,२६,६६४ ७,१०८ ७२,०७,११३ १९,५७१ १,१६,९४,८१८ 21 11 1 00 २,०३९ ८,११,६२० १८,२२,९७२ ७,६७५ १०,२४,७२२ २०,३७,१३७ कुल निर्यात - ३,४३,६५,८०१ ७,४०,८३,३५१ 1लीसेस्टर के जूते बनाने वालों ने, जो तालाबन्दी के कारण बेरोजगार हो गये थे, जुलाई १८६६ में "Trade Societies of England" ("इंगलैण्ड की घंधों की समितियों") से एक अपील की थी। उसमें कहा गया पा: “बीस वर्ष हुए जब सीने के बजाय रिपट करने की प्रथा का