५१४ पूंजीवादी उत्पादन फैक्टरी-मजदूरों के भाग्य की कुछ जानकारी प्राप्त करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि इंगलैड के सूती उद्योग के इतिहास का बल्दी से सिंहावलोकन कर गला जाये। १७७० से लेकर १८१५ तक इस पंधे में केवल ५ वर्ष के लिये मंत्री या व्हराब रहा। ४५ वर्ष के इस काल में अंग्रेस कारखानेवारों का मशीनों पर और दुनिया की मणियों पर एकाधिकार था। १८१५ से १८२१ तक मन्त्री रही। १८२२ पौर १८२३ समृद्धि के वर्ष थे। १८२४ में दे-यूनियनों के खिलाक बनाये गये कानूनों को रद्द कर दिया गया और हर जगह फैक्टरियों का बड़ा विस्तार हुमा। १८२५ में संकट पाया। १५२६ में फेक्टरी-मजदूरों की हालत बहुत खराब हो गयी और जगह-जगह पर मजदूरों के उपाय हए। १८२७ में स्थिति में कुछ सुधार हुमा। १५२८ में शक्ति से चलने वाले करघों की संख्या में और निर्यात में भारी वृद्धि हुई। १८२९ में निर्यात, खास कर हिन्दुस्तान को जाने वाला निर्यात, पिछले सभी वर्षों से बढ़ गया। १८३० में मण्डियां माल से मंट गयीं और हर तरफ़ मुसीबत मा गयी। १८३१ से १८३३ तक लगातार मंदी रही और ईस्ट इण्डिया कम्पनी से हिन्दुस्तान और चीन के साथ व्यापार करने का एकाधिकार छीन लिया गया। १८३४ में फैक्टरियों और मशीनों की संख्या में भारी वृद्धि हुई और मजदूरों की कमी हुई। गरीबों के बारे में जो नया कानून बना, उससे लेतिहर मजदूरों को प्रौद्योगिक रिस्ट्रिक्टों में जाकर बस जाने के लिये बढ़ावा मिला। देहाती इलाके बच्चों से बाली हो गये। लड़कियों से बेश्या-वृत्ति कराने के लिये उनकी विक्री शुरू हो गयी। १८३५ महान समृद्धि का वर्ष था, पर इसी समय हाय का करघा इस्तेमाल करने वाले बुनकर भूखों मर रहे थे। १८३६ महान समृद्धि का वर्ष था। १८३७ पौर १५३८ मंदी और संकट के वर्ष थे। १८३६ में उद्योग का पुनरुत्थान हुमा। १८४० में भयानक मंदी पायी और ऐसे भयंकर मजदूर उपाय हुए, जिनको दबाने के लिये सेना को बुलाना पड़ा। १८४१ और १८४२ में फैक्टरी-मजदूरों को भयानक कष्ट उठाना पड़ा। १८४२ में कारखानदारों ने गल्ले कानून को मंसूज कराने के लिये फ्रक्टरियों में ताले गल बिये। मजदूर हजारों की संख्या में लंकाशापर और यार्कशायर के शहरों में भर गये। वहां से क्रोज ने उन्हें जबर्दस्ती बाहर निकाला, और उनके नेताओं पर लांकेस्टर में मुकदमा चलाया गया। १८४३ बड़ी मुसीबत का बर्व वा। १८४ में फिर पुनवत्वान हुमा । १४५ में महान समृद्धि का काल पाया। १८४६ में शुरू में स्थिति का सुपरना जारी रहा, फिर प्रतिक्रिया प्रारम्भ हो गयी ; गल्ले के कानून मंसूज कर दिये गये। १८४७ में संकट माया, “big loaf" ("मोटी रोटी") के सम्मान में मजदूरी में सामान्य रूप से १० प्रतिशत और उससे भी अधिक की कटौती कर दी गयी। १८४८ में मंदी जारी रही, मानचेस्टर सैनिक संरक्षण में रहा। १८४६ में उद्योग का पुनवत्थान हुमा। १८५० में समृद्धि का समय पाया। १८५१ में नाम गिरे, मजदूरी गिरी और अक्सर हरताले हुई। १८५२ में परिस्थिति सुधरनी शुरू हुई, पर हड़ताले बारी यहीं; कारखानेवारों ने धमकी दी कि वे विदेशों से मजदूर बुला लेंगे। १८५३ में निर्यात बढ़ने लगे, ८ महीने तक हड़ताल चली और प्रेस्टन में मजदूरों को भयानक गरीबी का सामना करना पड़ा। १८५४ में फिर समृद्धि का समय मा गया और मलियां माल से अंट गयीं। १८५५ में बराबर संयुक्त राज्य अमरीका, कनाग और पूरब की मणियों से लोगों के विवाले निकलने की खबरें माती रहीं। १८५६ महान समृद्धि का पर्व रहा। १८५७ में संकट पाया। १८५८ में कुछ सुधार हमा। १८५६ में फिर महान समृद्धि का समय माया, पटरियों की संख्या में वृद्धि हो गयी। १८६० में इंगम का सूतीचा अपने चरमोत्कर्ष पर पांचा; इस साल हिन्दुस्तान, मास्ट्रेलिया . .
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