पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/५१८

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मशीनें और माधुनिक उद्योग ५१५ तथा अन्य देशों की मल्टियां माल से इस पूरी तरह बंट गयीं कि १८६३ तक भी वे इस माल को पूरी तरह हजम नहीं कर सकौं ; व्यापार की फांसीसी संषि सम्पन्न हुई; फैक्टरियों और मशीनों की संख्या में बहुत भारी वृद्धि हुई। १८६१ कुछ समय तक समृद्धि जारी रही,फिर प्रतिक्रिया प्रारम्भ हुई, अमरीका का गृह युद्ध छिड़ गया, कपास का अकाल पड़ गया। १९६२ से १८६३ तक व्यवसाय पूरी तरह चौपट रहा। कपास के प्रकाल का इतिहास इतना प्रर्वपूर्ण है कि उसपर थोड़ा विचार किये बिना हम मागे नहीं बढ़ सकते। १८६० और १८६१ दुनिया की मणियों की हालत को जो मलामतें देखने को मिली थीं, उनसे पता चलता है कि कारखानेदारों के दृष्टिकोण से कपास का अकाल बिल्कुल ठीक समय पर पाया था, और उन्हें कुछ हद तक उससे लाभ हुमा था। इस तव्य को मानचेस्टर की व्यापार परिषद (चेम्बर माफ कामर्स) की रिपोर्टों में स्वीकार किया गया, पाल्मर्टन और रवी ने संसद में उसकी घोषणा की और घटनामों ने उसे प्रमाणित कर दिया। इसमें कोई सन्देह नहीं कि संयुक्तांगल राज्य में १८६१ में जो २,८८७ सूती मिलें थीं, उनमें से अनेक का प्राकार छोटा था। मि० ए० रेव की रिपोर्ट के मुताबिक, उनके जिले में जो २,१०६ मिलें थीं, उनमें से ३९२-या १६ प्रतिशत-में प्रति मिल बस प्रश्व-शक्ति से कम, ३४५-या १६ प्रतिशत-में प्रति मिल १० प्रश्व-शक्ति या उससे अधिक, पर २० अश्व-शक्ति से कम ताकत इस्तेमाल होती थी और १,३७२ मिले २० प्रश्व-शक्ति या उससे अधिक ताकत का प्रयोग करती थीं। छोटी मिलों में से अधिकतर इससे ज्यादा कुछ नहीं थी कि वहां छप्पर गलकर बुनाई का इन्तजाम कर दिया गया था। १८५८ के बाद जब समृद्धि का काल पाया था, तब इन्हें बनवाया गया था। इनमें से ज्यादातर सट्टेबाजों द्वारा बनवायी गयी थीं। एक सट्टेबान सूत लाता था, दूसरा मशीन और तीसरा मकान खड़ा कर देता था। और उनको चलाते वे लोग थे, जो मिलों में overlookers (फोरमैन) रह चुके थे, या कम साधनों वाले ऐसे ही लोग। इन छोटे-छोटे कारखानेवारों में से अधिकतर का जल्दी ही दिवाला निकल गया। उस व्यापारिक संकट में भी उनका यही हाल हुमा होता, जो केवल कपास के अकाल के कारण रुक गया था। यद्यपि कारखानेदारों की कुल संख्या का एक तिहाई भाग इन छोटे-छोटे कारखानेदारों का पा, तथापि उनकी मिलों में सूती बंधे में लगी हुई कुल पूंजी का अपेक्षाकृत बहुत छोटा भाग ही लगा हुमा था। जहां तक काम के बीच में रुक जाने का सवाल है, प्रामाणिक अनुमानों से प्रतीत होता है कि अक्तूबर १८६२ में ६०.३ प्रतिशत तकुए और ५८ प्रतिशत करणे बेकार बड़े थे। ये मांकड़े पूरे सूती बंधे के सम्बंध में हैं, और बाहिर है कि अलग-अलग मिस्ट्रिक्टों की स्थिति जानने के लिये उनमें काफी संशोधन करना होगा। बहुत कम मिलें पूरेसमय (६० पच्छे प्रति सप्ताह) काम करती थीं। बाक़ी सक-शककर चलती थीं। जिन बन्न मिलों में पूरे समय काम होता था और माम तौर पर कार्यानुसार मजदूरी मिलती थी, उनमें भी मजदूरों की मजदूरी अनिवार्य रूप से कम हो गयी थी। इसका कारण यह था कि अच्छी कपास की जगह पर खराब किस्म की कपास इस्तेमाल होने लगी थी, जैसे (महीन सूत कातने वाली मिलों में) Sea Island की कपास की जगह पर मिमी कपास, अमरीकी पौर मिमी कपास की - - i afard "Reports of Insp. of Fact., 31st October, 1862 (superscut इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १८६२'), पृ. ३० । 'उप० पु०, पृ० १९॥ 33*