मशीनें और प्राधुनिक उद्योग ५२५ - रिपोर्टों में बहुतायत से मिल जाती है। वहां हमें workshops (कारखानों) का पौर बास तौर पर छापेखानों तथा पर्ची-घरों का जैसा लोमहर्षक वर्णन पढ़ने को मिलता है, उसके सामने हमारे उपन्यासकारों की प्रत्यन्त घिनौनी कल्पनाएं भी फीकी पड़ जाती है। इसका मजदूरों के स्वास्थ्य पर बो प्रभाव पड़ता है, वह स्वतःस्पष्ट है। Privy Council के प्रधान गक्टर और "Public Health Reports' ('सार्वजनिक स्वास्थ्य की रिपोर्टो') के सरकारी सम्मावक ग साइमन ने कहा है : "अपनी चौथी रिपोर्ट (१८६१) में मैंने यह बताया था कि किस तरह व्यावहारिक रूप में मजदूरों के लिये सफाई के सम्बंध में अपने पहले अधिकार पर भी इसरार करना असम्भव हो गया है। अर्थात् वे यह भी मांग नहीं कर सकते कि मालिक उनको चाहे जिस काम के लिये कारखाने में इकट्ठा करे, पर यहां तक यह बात उसपर निर्भर करती है, उसको ऐसी तमाम प्रस्वास्थ्यप्रद परिस्थितियों से मजदूरों को मुक्त कर देना चाहिये, जिनको दूर किया जा सकता है। मैंने बताया था कि सफाई के मामले में मजबूर खुब अपने साथ यह न्याय करने में तो असमर्थ होते ही है, सफ़ाई-विभाग की पुलिस के वेतन पाने वाले अधिकारियों से भी उनको कोई कारगर मदद नहीं मिल पाती असंख्य मजदूरों और मरिनों का जीवन अन्तहीन कष्ट में बीतता है, जो महब उनके पंधे से उत्पन्न होता है। उनको व्यर्थ की यातनाएं उठानी पड़ती है, और पाखिर उनकी असमय मृत्यु हो जाती है। कारखानों की कोठरियों का मजदूरों के स्वास्थ्य पर जो प्रभाव पड़ता है, उसके एक उदाहरण के रूप में ग. साइमन ने मृत्यु-संख्या के प्रांकड़ों को निम्नलिखित तालिका दी है।' मृत्यु-संख्या (प्रति १ लाख व्यक्ति) अलग-अलग उद्योगों स्वास्थ्य की दृष्टि से में हर मायुक कुल अलग-अलग उद्योग एक २५पौर ३५/३५ और ४५ कितने व्यक्ति काम दूसरे की तुलना में वर्ष की पाय वर्ष की प्रायु ५५ वर्ष की ४५ और मायु के बीच १,५८,२६५ इंगलेस पोर बेल्स में ती ७४३ 50% १,१४५ लन्दन के बी-घर. १,२६२ २,०६३ २२,३०१ १२,३७६ स्त्रियां १३,०३ लन्दन के चापेखाने. ९४ १,७४७ २,३६७ . 1 u Public Health. Sixth Rep." ('ardurata Farhan it got foute'), London, 1864, पृ० २६,३१। .'उप० पु०, पृ. ३०। डाक्टर साइमन ने लिखा है कि लन्दन के दर्जियों और छपाई का काम करने वाले मजदूरों की २५ वर्ष और ३५ वर्ष के बीच की मृत्यु-संख्या वास्तव में इससे भी कहीं अधिक बैठती है। कारण कि लन्दन के दर्षी-परों और छापेखानों के मालिक ३० वर्ष तक की मायु के बहुत से नौजवानों को "शागिर्यो" और "improvers' (घोड़े पारिश्रमिक पर काम सीखने वालों) के रूप में देहात से मंगा लेते है। ये लोग धंधा सीखने के उद्देश्य से लन्दन चले माते है। जन-गणना में ये लोग लन्दनवासियों में गिने जाते है, और इस तरह लन्दन की जिस कुल पावावी के अनुपात में इस शहर की मृत्यु-संख्या निकाली जाती है,
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